देश की राजधानी दिल्ली में सियासत ऐसे मुकाम पर पहुंच गई है जिसे ‘छिछोरगिरी’ की पराकाष्ठा कहा जा सकता है। जो लोग कभी डीगें मारते हुए कहते थे कि वे सिर्फ देश एवं समाज बनाने के लिए आये हैं, किन्तु राजनीति में आने के बाद उनकी कार्यप्रणाली एवं सोच पहले से स्थापित राजनीतिक दलों से भी बहुत गई-गुजरी निकली। पहले से स्थापित दलों में लाख कमियों के बावजूद कुछ तो राजनीतिक संस्कार हैं ही किन्तु दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार एवं पूरी पार्टी राजनीतिक मर्यादाओं एवं संस्कारों को एकदम ताक पर रख चुकी है।
आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल जब से पार्टी बनी है, तब से पार्टी का मुखिया बने हुए हैं। इस दौरान भारतीय जनता पार्टी में कई लोग अध्यक्ष बन चुके हैं। इस दृष्टिकोण से देखा जाये तो व्यक्तिवादी राजनीति को आगे बढ़ाने में अरविंद केजरीवाल एवं आम आदमी पार्टी की भूमिका अन्य दलों से कम नहीं है।
हिन्दुस्तान की राजनीति में अभी तक जितने भी घिसे-पिटे फार्मूले रहे हैं, उन पर आम आदमी पार्टी न सिर्फ चलने का काम कर रही है बल्कि उन्हें आगे बढ़ाने में अन्य दलों से बहुत आगे है। आजकल धर्मनिरपेक्षता के नाम पर तुष्टीकरण का खेल देश में बहुत तेज चल रहा है। अल्पसंख्यक समाज के किसी व्यक्ति के साथ यदि कोई दुर्घटना हो जाती है तो वहां अरविंद केजरीवाल जरूर पहुंचते हैं, साथ ही आर्थिक मदद भी करते हैं किन्तु बहुसंख्यक यानी हिंदू समाज के किसी व्यक्ति या बहन-बेटी के साथ कोई अप्रिय घटना हो जाती है तो वहां जाने में ऐसे भयभीत हो जाते हैं जैसे उनकी राजनीति ही समाप्त हो जायेगी या फिर अल्पसंख्यक समाज के वोटर नाराज हो जायेंगे।
राजधानी दिल्ली में अल्पसंख्यक समाज के मतदाताओं को साधने के लिए मौलवियों को वेतन दे रहे हैं किन्तु मंदिरों के पुजारियों के लिए उनके पास कोई योजना नहीं है। ऐसी स्थिति में कहा जा सकता है कि मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति या यूं कहें कि सांप्रदायिकता को आगे बढ़ाने में अरविंद केजरीवाल अन्य सेकुलर दलों को बहुत पीछे छोड़ चुके हैं। कुल मिलाकर कहने का आशय यही है कि अलग रजनीति का दंभ भरने वाली पार्टी के पास पहले से चली आ रही घिसी-पिटी राजनीति या यूं कहें कि रूटीन राजनीति पर चलने के अलावा कुछ भी नया नहीं है।
जहां तक दिल्ली के विकास की बात की जाये तो दिल्ली सरकार राजधानी दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी के साथ-साथ राष्ट्रीय शराबी राजधानी बनाने पर तुली हुई है। विपक्ष कितना भी शराब के ठेकों का विरोध कर ले किन्तु दिल्ली सरकार को शराब सिर्फ कमाऊ पूत के रूप में ही नजर आता है। आबकारी नीति के संदर्भ में दिल्ली सरकार ने अपना स्तर इतना गिरा लिया कि उसने शराब उत्पादकों को ही वितरक बना दिया जबकि शराब उत्पादक वितरक नहीं हो सकता है। सारे नियमों-कानूनों को ताक पर रखकर पंजाब के शराब उत्पादकों को वितरक बनाया गया।
पूरे देश में सबसे बड़े विज्ञापनबाज के रूप में शुमार अरविंद केजरीवाल बांग्लादेशी एवं रोहिंग्या घुसपैठियों की मदद करने में सबसे आगे हैं किन्तु उन्हें इस बात की जरा भी परवाह नहीं है कि इन्हीं घुसपैठियों की वजह से दिल्ली एवं पूरा देश बारूद के ढेर पर बैठा है। देश की आंतरिक सुरक्षा खतरे में है। कई स्थानों पर हुई घटनाओं में यह सब देखने एवं सुनने को मिल भी चुका है।
मुस्लिम तुष्टीकरण, मौलवियों को वेतन, घुसपैठियों एवं टुकड़े-टुकड़े गैंग के प्रति सहानुभूति की चर्चा जब सर्वत्र होने लगती है तो केजरीवाल तिरंगा झंडा लेकर कट्टर देशभक्त होने की नौटंकी करने लगते हैं जबकि कट्टर देशभक्त को कभी यह बताने की जरूरत ही नहीं पड़ती कि वह कट्टर देशभक्त है। उदाहरण के तौर पर यदि कोई अंजान व्यक्ति आधी रात को कहीं पर खड़ा होकर ‘भारत माता की जय’ एवं ‘वंदे मातरम’ के नारे लगा दे तो लोग यही कहेंगे कि भाजपा या संघ परिवार के लोग आ गये हैं।
ऐसी स्थिति में कोई यह नहीं कहेगा कि आम आदमी पार्टी एवं कांग्रेस के लोग आ गये क्योंकि सार्वजनिक स्थानों पर कांग्रेस एवं आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता ‘भारत माता की जय’ एवं ‘वंदे मातरम’ बोलने से कतराते हैं क्योंकि उन्हें यह अच्छी तरह पता है कि ऐसा करने से उनके वोटर नाराज हो सकते हैं। सही मायनों में विश्लेषण किया जाये तो इसे तुष्टीकरण नहीं तो और क्या कहा जायेगा?
राजधानी दिल्ली को शराब की राजधानी बनाकर यहां के बच्चों एवं युवाओं का भविष्य खराब करने का कार्य करने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री पूरे देश में घूम कर कह रहे हैं कि हम बच्चों का भविष्य बनाने आये हैं। यह काम तो आप दिल्ली में भी कर सकते हैं। दिल्ली तो संभल नहीं रही है, चले हैं देश संभालने। इसी को कहते हैं, ‘आधी छोड़ पूरी को धावे, न आधी मिले न पूरी पावै’ यानी जो काम दिल्ली वालों ने अरविंद केजरीवाल को दिया है, उसे करने के बजाय उन्हें पूरे देश को सुधारना है। इससे बड़ा मजाक और क्या हो सकता है?
अपने देश में एक पुरानी कहावत है कि ‘काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती है।’ विज्ञापनों के सहारे कब तक अपनी कमियों को छिपाओगे दिल्ली के मुख्यमंत्री? जनता धीरे-धीरे अब आप को अच्छी तरह समझ चुकी है। अब आपके बहकावे में दिल्ली के लोग आने वाले नहीं हैं। जल बोर्ड़ का घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है। बिजली कंपनियों को दी जाने वाली सब्सिडी में भी लगातार इजाफा होता जा रहा है। मुफ्त बिजली-पानी के नाम पर लोगों को छलने का काम किया जा रहा है। बिजली एवं पानी के भारी-भरकम बिल लोगों को भेजे जा रहे हैं।
आम आदमी पार्टी से देश को एक बड़ा खतरा यह भी है कि वह लोगों की आदतें खराब करने में लगी है। यदि कोई व्यक्ति हर दृष्टि से अभाव में हो तो उसकी मदद की जा सकती है किन्तु यदि कोई व्यक्ति स्वभाव से ही अभावग्रस्त हो तो उसकी मदद किसी भी रूप में नहीं की जा सकती है क्योंकि अभाव की कमी तो पूरी की जा सकती है किन्तु स्वभाव से अभावग्रस्त व्यक्ति की समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता है।
राजधानी दिल्ली में बसों में महिलाओं के लिए यात्रा मुफ्त भले ही है किन्तु राजधानी दिल्ली की सड़कों पर दौड़ रही अधिकांश खटारा बसें दिल्ली की पहचान बन चुकी हैं। इस प्रकार यदि देखा जाये तो दिल्ली सरकार दिल्ली को सजाने-संवारने में सर्व दृष्टि से नाकाम रही है और यह सब जनता की समझ में आ भी चुका है। निश्चित रूप से दिल्ली सरकार का भांडा फूटने वाला ही है और ‘काठ की हांडी’ अब नहीं चढ़ने वाली है। दिल्ली सरकार दिल्ली से जितनी जल्दी जाये, उतना ही दिल्लीवासियों के हित में है। यह बात हर दिल्लीवासी के मन में घर कर चुकी है। केवल इंतजार है तो सिर्फ वक्त का…।
– हिमानी जैन