अजय सिंह चौहान || भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से 10 वां ज्योतिर्लिंग नागेश्वर, यानी नागों के ईश्वर का है। शिव महापुराण के अनुसार नागेश्वर ज्योतिर्लिंग (Nageshwar Jyotirling) दारुक वन में स्थित है और दारुक वन का वर्णन हमें कई महाकाव्यों जैसे दंदकावना, दैत्यवाना और कम्यकावना में मिलता है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों के पाठ में भी नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का उल्लेख नागेश दारूकावने के नाम से मिलता है।
लेकिन, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग (Nageshwar Jyotirling) के नाम से इस मंदिर के अलावा भी ऐसे दो अन्य प्रसिद्ध मंदिर हैं जिनको लेकर विवाद है। इसमें पहला मंदिर गुजरात के द्वारका में है जो द्वारका से लगभग 25 किलोमीटर दूर है। दूसरा मंदिर उत्तराखंड के अल्मोड़ा में स्थित जागेश्वर (Jageshwar Jyotirling)के नाम से जाना जाता है। और तीसरा महारष्ट्र के हिंगोली जिले में स्थित औंढा नागनाथ (Aundha Nagnath Hingoli) नामक जगह पर है। इन तीनों ही मंदिरों को लेकर धर्म के जानकारों और इतिहासकारों में कई मतभेद हैं। इसीलिए कुछ धर्माचार्य इसे एक विवादास्पद ज्योतिर्लिंग मंदिर मानते हैं।
द्वादश ज्योतिर्लिंगों के पाठ में नागेश्वर ज्योतिर्लिंग (Nageshwar Jyotirling) का उल्लेख नागेश दारूकावने के नाम से मिलता है। जबकि, अल्मोड़ा के समीप स्थित शिवलिंग मंदिर जागेश्वर के नाम से जाना जाता है।
हालांकि इतिहासकारों और जानकारों ने इसके नाम को लेकर भी कुछ ऐसे तर्क दिए हैं जिनके अनुसार यह माना जा सकता है कि जागेश्वर का यह मंदिर भी नागेश्वर ज्योतिर्लिंग हो सकता है। लेकिन, कुछ अन्य धर्माचार्यों और जानकारों का मानना है कि इस तर्क से भी स्पष्ट नहीं होता कि कौन-सा मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक मंदिर है।
इतिहासकारों और धर्म के ज्ञाताओं के द्वारा जागेश्वर शिवलिंग को नागेश्वर ज्योतिर्लिंग (Nageshwar Jyotirling) कहने या मानने के जो प्रमुख कारण और तथ्य दिए हैं, उसके अनुसार, स्कन्द पुराण के मानस खण्ड और रेवा खण्ड में गढ़वाल तथा कुमाऊँ के पवित्र तीर्थों का वर्णन मिलता है।
इतिहासकारों के अनुसार अल्मोड़ा में जागेश्वर शिवमन्दिर (Jageshwar Jyotirling) जिस स्थान पर है, उसके आसपास आज भी वेरीनाग, धौलेनाग, कालियनाग जैसे कुछ पौराणिक स्थान मौजूद हैं, जिनमें मौजूद ‘नाग’ शब्द उस नाग जाति की याद दिलाता है। उन्हीं के आधार पर यह बात तर्कसंगत लगती है कि इन नाग-मन्दिरों के बीच ‘नागेश’ नामक कोई प्रसिद्ध, बड़ा प्राचीनकाल का मन्दिर कुमाऊँ क्षेत्र में मौजूद है।
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इसी प्रकार के कई प्राचीन ऐतिहासिक साक्ष्यों और अवलोकनों से हमें यह पता चलता है कि, जागेश्वर मन्दिर अत्यन्त प्राचीन काल का है और नाग जातियों के द्वारा इस शिवलिंग की पूजा होने के कारण इसे ‘यागेश’ या ‘नागेश’ कहा जाने लगा। और यही कारण है कि इसे ‘नागेश्वर ज्योतिर्लिंग’ मानने के पर्याप्त आधार भी हैं।
हालांकि, इन सारे मतभेदों के बावजूद गुजरात के द्वारका में स्थित भगवान नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर (Nageshwar Jyotirling) की मान्यता ही सबसे अधिक मानी जाती है, इसलिए हर वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु दूर-दूर से भगवान नागेश्वर के दर्शन, पूजन और अभिषेक के लिए आते हैं।
यह ज्योतिर्लिंग नागेश्वर, (Nageshwar Jyotirling) यानी नागों के ईश्वर को समर्पित है और शास्त्रों में भी इस ज्योतिर्लिंग की महिमा की गयी है, जिसके अनुसार नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से साक्षात् शिव भगवान के दर्शन हो जाते हैं, भक्तगण संकटों से मुक्त होते हैं व मोक्ष की प्राप्ति करते हैं।