देवी सती की अर्धभस्म देह को अपने कन्धों पर उठाकर जब भगवान शिव तांडव कर रहे थे उस समय इस संपूर्ण संसार में हाहाकार मच गया था। ऐसे में इस जगत के कल्याण हेतु श्री विष्णु जी ने देवी सती की अर्धभस्म देह पर अपने सुदर्शन चक्र से प्रहार कर के उसके उसे भागों में विभक्त कर दिया। और इस पृथ्वी पर जहां-जहाँ भी वे अंग और उनके वस्त्र तथा आभूषण आदि गिरे उन सभी स्थानों को शक्तिपीठ के रूप में स्थापित कर दिया गया।
हमारे सभी पुराणों में इन शक्तिपीठों के विषय पर विस्तृत विवरण और चर्चा पढ़ने को मिलती है। इसके अलावा यहां यह भी देखने को मिला है कि लगभग उन सभी पुराणों में इन शक्तिपीठों की संख्या भी अलग अलग बताई जाती है। किसी पुराण में ये संख्या 51 है तो किसी पुराण में 52 या फिर उससे भी अधिक। दुर्गा शप्त सती और तंत्र चूड़ामणि के 52 शक्तिपीठ, देवी भागवत पुराण के 108 शक्तिपीठ, कालिका पुराण के 26 शक्तिपीठ और शिवचरित्र में 51 शक्तिपीठ बताये गये हैं। इसी तरह देवीगीता के अनुसार देवी पीठों की संख्या 72 बताई गई है। कुछ अन्य ग्रन्थों में पीठों की संख्या भिन्न-भिन्न दी गयी है ।
तो चलिए देखते हैं कि महर्षि वेदव्यास जी ने शक्तिपीठों से संबंधित जनमेजय के एक प्रश्न के उत्तर में जिन शक्तिपीठ स्थानों और उनके नामों को उल्लेखित किया है, वे कौन-कौन से हैं –
क्रम – स्थान – शक्तिपीठों के नाम
- वाराणसी – विशालाक्षी
- नैमिषारण्य – लिङ्गधारिणी
- प्रयाग – ललिता
- गन्धमादन – कामुकी
- दक्षिणमानस – कुमुदा
- उत्तरमानस – विश्वकामा
- गोमन्त – गोमती
- मन्दर – कामचारिणी
- चैत्ररथ – मदोत्कटा
- हस्तिनापुर – जयन्ती
- कान्यकुब्ज – गौरी
- मलय – रम्भा
- एकाग्र – कीर्तिमती
- विश्व – विश्वेश्वरी
- पुष्कर – पुरुहूता
- केदार – सन्मार्गदायिनी
- हिमवतपृष्ठ – मन्दा
- गोकर्ण – भद्रकर्णिका
- स्थानेश्वर – भवानी
- बिल्वक – बिल्वपत्रिका
- श्रीशैल – माधवी
- भद्रेश्वर – भद्रा
- वराहशैल – जया
- कमलालय – कमला
- रुद्रकोटि – रुद्राणी
- कार्लजर – काली
- शालग्राम – महादेवी
- शिवलिङ्ग – जलप्रिया
- महालिङ्ग – कपिला
- माकोट – मुकुटेश्वरी
- मायापुरी – कुमारी
- सन्तान – ललिताम्बिका
- गया – मङ्गला
- पुरुषोत्तम – विमला
- सहस्त्राक्ष – उत्पलाक्षी
- हिरण्याक्ष – महोत्पला
- विपाशा – अमोघाक्षी
- पुण्ड्रवर्धन – पाटला
- सुपार्श्व – नारायणी
- त्रिकटु – रुद्रसुन्दारी
- विपुल – विपुला
- मलयाचल – कल्याणी
- सह्याद्रि – एकवीरा
- हरिश्चन्द्र – चन्द्रिका
- रामतीर्थ – रमणी
- यमुना – मृगावती
- कोटितीर्थ – कोटवी
- मधुवन – सुगन्धा
- गोदावरी – त्रिसन्ध्या
- गङ्गाद्वार – रतिप्रिया
- शिवकुण्ड – शुभानन्दा
- देविकातट – नन्दिनी
- द्वारावती – रुक्मणी
- वृन्दावन – राधा
- मथुरा – देवकी
- पाताल – परमेश्वरी
- चित्रकूट – सीता
- विन्ध्य – विन्ध्यवासिनी
- करवीर – महालक्ष्मी
- विनायक – उमादेवी
- वैद्यनाथ – आरोग्या
- महाकाल – महेश्वरी
- उष्णतीर्थ – अभया
- विन्ध्यपर्वत – नितम्बा
- माण्डव्य – माण्डवी
- माहेश्वरीपुर – स्वाहा
- छगलण्ड – प्रचण्डा
- अमरकण्टक – चण्डिका
- सोमेश्वर – वरारोहा
- प्रभास – पुष्करावती
- सरस्वती – देवमाता
- तट – पारावारा
- महालय – महाभागा
- पयोष्णी – पिङ्गलेश्वरी
- तशौच – सिंहिका
- कार्तिक – अतिशाङ्करी
- उत्पलावर्तक – लीला (लोहा)
- शौणसङ्गंम – सुभद्रा
- सिद्धवन – लक्ष्मी
- भरताश्रम – अनङ्गा
- जालन्धर – विश्वमुखी
- किष्किंधापर्वत – तारा
- देवदारुवन – पुष्टि
- काश्मीरमण्डल – मेधा
- हिमाद्रि – भीमादेवी
- विश्वेश्वर – तुष्टि
- शंखोद्वार – धरा
- पिण्डारक – धृति
- चन्द्रभागा – कला
- अच्छोद – शिवधारिणी
- वेणा – अमृता
- बदरी – उर्वशी
- उत्तरकुरु – ओषधि
- कुशद्वीप – कुशोदका
- हेमकूट – मन्मथा
- कुमुद – सत्यवादिनी
- अश्वत्थ – वन्दनीया
- कुबेरालय – निधि
- वेदवदन – गायत्री
- शिवसन्निधि – पार्वती
- देवलोक – इन्द्राणी
- ब्रह्मामुख – सरस्वती
- सूर्यविम्ब – प्रभा
- मातृमध्य – वैष्णवी
- सतीमध्य – अरुन्धती
- स्त्रीमध्य – तिलोत्तमा
- चित्रमध्य – ब्रह्मकला
- सर्वप्राणीवर्ग – शक्ति
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