नवरात्र के परम पावन अवसर पर संपूर्ण देश और दुनियाभर के हिन्दू जहां कहीं भी होते हैं वे वहीं आनंदित और उत्साहित होकर इस उत्सव का आनंद लेते हैं। इस अवसर पर आदि शक्ति के सभी 51 पीठों और अन्य सभी सिद्ध और प्रसिद्ध मंदिरों में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ने लग जाती है। लेकिन अगर कोई मंदिरों में नहीं जा पाता है तो वे लोग अपने घर ही में रहकर माता शक्ति का आह्वान करते हैं।
नवरात्र हिन्दू धर्म के लिए सबसे पवित्र और प्रमुख पर्वों में से एक है। नवरात्र का यह पर्व कोई चार या पांच हजार वर्ष पहले मनाया जाना शुरू हुआ हो ऐसा नहीं है। नवरात्र ना ही अंधविश्वासों पर आधारित है और ना ही इस पर्व को किसी साधारण मानव द्वारा प्रारंभ किया गया।
सही उच्चारण –
हालांकि, आजकल अधिकतर वे हिंदू भी जो इस पर्व को बड़े ही उत्साह से मनाते हैं वे भी इस पर्व के नाम का उच्चारण सही ढंग से नहीं कर पाते हैं। तो, ऐसे लोगों के लिए यहां हम बता दें कि इस पर्व का सही उच्चारण नवरात्री नहीं बल्कि नवरात्र है।
संस्कृत व्याकरण के अनुसार नौ रात्रियों का समूह होने के कारण से यह शब्द पुलिंग रूप यानी शुद्ध रूप में ‘नवरात्र’ माना जाता है और यही यानी ‘नवरात्र’ उच्चारण ही सही होता है। जबकि नवरात्री कहना एकदम त्रुटिपूर्ण या गलत है।
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क्यों है विशेष –
इसके अलावा नवरात्र हमारे लिए इसलिए भी विशेष है क्योंकि इस दौरान इसमें नव अहोरात्र यानी विशेष रात्रियों का भी पता चलता है। और क्योंकि, ‘रात्रि’ शब्द सिद्धि का प्रतीक है इसलिए, मान्यताओं के अनुसार, इन नव अहोरात्र यानी विशेष रात्रियों के दौरान शक्ति के नव रूपों की विशेष उपासना की जाती है।
दरअसल, अमावस्या की रात से अष्टमी तक, या फिर, पड़वा से नवमी की दोपहर तक व्रत नियमों के चलने से, ‘नवरात्र’ यानी नौ रात नाम सार्थक होता है। हमारे शरीर को नौ द्वारों वाला कहा जाता है। और इसके भीतर निवास करने वाली जीवन शक्ति का एक नाम दुर्गा भी है।
इन्द्रियों की स्वच्छ्ता के लिए –
और हमारे शरीर के इन सभी नौ द्वारों को, यानी कि, मुख्य रूप से इन्द्रियों के अनुशासन, उनके आपसी तालमेल संबंधी कार्य और उन इन्द्रियों की स्वच्छ्ता करने के तौर पर या उन्हें एक बार फिर से शुद्ध करके, हमारे शरीर तंत्र को आने वाले पूरे वर्ष के लिए सुचारू रूप से क्रियाशील और गतिमान बनाये रखने के लिए उन सभी नौ द्वारों की शुद्धि का यह पर्व नौ दिनों तक मनाया जाता है।
आप यहां इसे इस तरह से भी कह सकते हैं या मान सकते हैं कि नवरात्र के ये नौ दिन आपकी आत्मा, आपके जीवन तथा आपके शरीर के भीतर के अनेकों प्रकार के व्यक्तिगत तौर पर कुविचारों यानी बुरे विचारों को पूरी तरह से शुद्ध करने के बाद, उन्हें नये रूप में, आत्मशक्ति प्रदान करने के लिए ही नौ दिन या नौ दुर्गाओं के रूप में आते हैं।
– अनोक सिंह