शाक्तसम्प्रदायोक्त राजदन्तोपासनान्तर्गत पञ्चसप्तद्वादशाग्निसाधनम् …
राजदन्तोपासना क्या है? जैसे दृढ़ दांतों वाला व्यक्ति कठोर वस्तुओं को भी बलपूर्वक चबाकर पिष्ट कर देता है और सुगमता से निगल जाता है, वैसे ही (विशेषतः कादिमत में) देवी महाकाली अपने तीखे और दृढ़ दांतों से उपासक के विशाल पाप समूहों को चबाकर नष्ट कर देती हैं। इसमें उनके दांतों के रूप में अग्निदेव की प्रतिष्ठा होती है और उन्हें ही राजदन्त कहते हैं।
सामान्यतः सांसारिक वस्तुओं को भस्म करने हेतु अग्निदेव का जो लौकिक स्वरूप है, वह दस कलाओं से युक्त होता है किन्तु राजदन्तप्रारूप में अग्निदेव एक सौ आठ कलाओं से युक्त होते हैं। पूर्वकाल में त्रिभुवनवर्मा नामक क्षत्रिय थे जिनके पुत्र का नाम जयदेववर्मा था। जयदेव का अगला जन्म ब्राह्मणकुल में देवपालशर्मा के रूप में हुआ था। ये बाद में श्रीविरजेशानन्द नामक निग्रहाचार्य बने थे। राजदन्तोपासना के माध्यम से अग्निनिग्रहादि में इनकी विशेष संसिद्धि थी। राजदन्तोपासना एक प्रायश्चित्तपरक साधना है।
– निग्रहाचार्य श्रीभागवतानंद गुरु जी के फेसबुक वाल से