अजय सिंह चौहान || आधुनिक दवा उद्योग यानी वर्तमान मेडिकल विज्ञान ने आम शाकाहारी हिन्दू लोगों के मन में इस प्रकार की झूठी धारणा को बैठाना शुरू कर दिया है कि यदि आप अपने नियमित खानपान में मांशाहारी भोजन को भी शामिल नहीं करेंगे तो आपके लिए लम्बी उम्र तक स्वस्थ रूप से ज़िंदा रहना मुस्किल होता जाएगा। यानी मेडिकल साइंस कहना चाहता है कि आप लोगों को कुछ न कुछ तो नॉन-वेजिटेरियन फूड खाना ही पडेगा, ताकि उसके माध्यम से आपको पर्याप्त न्यूट्रिशन मिलता रहे और उसके लिए सबसे अच्छे उदाहरण चिकन-अंडा, मचली आदि नॉन-वेजिटेरियन फूड खाना जरूरी बताया जाता है।
डॉक्टर अब ये भी कहने लगे हैं कि क्योंकि हमारे वेजिटेरियन फूड में प्रोटीन और विटामिन जैसे कई सारे पोषक तत्व जो कि सेहत के लिए आवश्यक होते हैं उनकी बेहद कमी होती है इसलिए हमें नॉन-वेजिटेरियन फूड खाना चाहिए। यानी डॉक्टर सीधे-सीधे यही कहना चाहते हैं कि नॉन-वेजिटेरियन फूड खाने की आदत डाल ली जाय।
लेकिन, यह एक 100 प्रतिशत झूठ है, क्योंकि हमारे सनातन के हज़ारों ही नहीं बल्कि लाखों करोड़ों वर्षों के इतिहास पर नज़र डालें तो हमारे धर्म और परंपरा में कहीं से भी नॉन-वेजिटेरियन फूड खाने का उल्लेख नहीं मिलता है। क्योंकि जिस किसी भी प्राचीन ग्रन्थ में यदि भारतियों के द्वारा नॉन-वेजिटेरियन फूड खाने का उल्लेख मिलता भी है तो यहाँ ये भी जान लेना चाहिए कि उन ग्रंथों के अनुवादकों ने जानबूझकर उनमें इस प्रकार के प्रसंगों को शामिल किया है ताकि हिन्दुओं का धर्म किसी भी प्रकार से नष्ट हो जाय।
हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हमारे दैनिक जीवन शैली में अनादिकाल से दाल-चावल जैसे सबसे अधिक उत्तम, पोस्टिक और स्वादिष्ट आहार यानी दाल चावल को ही हमने सबसे अधिक महत्त्व दिया है, क्योंकि यह आहार हमारे लिए सदियों से सबसे अधिक प्रमुख और फायदेमंद है। दाल-चावल का सेवन कश्मीर से कन्याकुमारी तक के ज्यादातर राज्यों का सबसे मुख्य भोजन है। पोषक तत्वों से भरपूर दाल-चावल एक बहुत ही हल्का और पोस्टिक भोजन है, जो सेहत के लिए अन्य किसी भी प्रकार के पश्चिमी या वैज्ञानिक स्तर पर प्रचारित किये जाने वाले किसी भी अप्राकृतिक आहार से आधिक फायदेमंद होता है।
हमारे प्राकृतिक आहार दाल-चावल में वे सभी आवश्यक पोषक तत्व हमें आसानी से प्राप्त हो जाते हैं जो एक शुद्ध शाकाहारी भारतीय परिवार के हर एक उम्र के किसी भी सदस्य को चाहिए। दाल-चावल प्रोटीन, विटामिन, आयरन, कैल्शियम और फाइबर से भरपूर हैं जो शरीर के लिए सबसे अच्छा आहार है। जब दाल को चावल के साथ मिला कर खाया जाता है, तो यह शरीर के पोषण को खोए बिना भूख को कम करने में मदद करता है। साथ ही यह भोजन प्रोटीन युक्त और कम कार्ब वाला भोजन है इसलिए पेट की आँतों के अनुकूल भी है। और यदि आप दाल-चावल के साथ स्प्राउट्स, पापड़, हलवा, इडली, अचार, लड्डू या फिर गुड का स्वाद भी लेते हैं तो किसी भी पांच सितारा होटल में जाकर खाए गए किसी भी महंगे से महंगे भोजन से कहीं अधिक पोस्टिक और स्वास्थ्यवर्धक होजाता है।
लगभग हर भारतीय परिवार अपने दोपहर के भोजन के रूप में दाल करी और चावल का सेवन करता है। यह न केवल स्वादिष्ट है बल्कि बहुत ही संतोषजनक भी है। जहां यह आत्मा भोजन भूखे पेट को शांत करता है, वहीं वजन घटाने के लिए यह दिनचर्या में भी अच्छी तरह से फिट बैठता है। हैरान? चावल और दाल का एक साधारण भोजन आपका वजन कैसे कम कर सकता है? खैर, यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध है कि चावल और दाल (दाल) का संयोजन उन अतिरिक्त किलो को कम करने के लिए रात के खाने में सबसे अच्छा संयोजन है। वास्तव में, यहां तक कि पोषण विशेषज्ञ भी इसकी कसम खाते हैं और इस सरल कॉम्बो को अपने दैनिक आहार में शामिल करने का सुझाव देते हैं।
हमें यहाँ यह भी जान लेना चाहिए कि इस झूठे और भ्रामक प्रचार के पीछे का सच यह है कि किसी भी प्रकार से हमारे सनातन धर्म और हमारी जीवनशैली को भ्रष्ट कर उसे नष्ट करने की जो अंतर्राष्ट्रीय शाजिशें चल रहीं हैं और यह उसी का एक भाग है। अंतर्राष्ट्रीय दवा कंपनियां और दवा उद्योग ऐसा बिलकुल भी नहीं चाहते हैं कि भारत के मूल धर्म से जुड़े लोग अपना जीवन और स्वस्थ पूर्ण रूप से प्रकृति पर निर्भर रहकर ही गुजारें। क्योंकि प्रकृति में स्वस्थ और लम्बी आयु का वरदान है, और यही उनके लिए परेशानी का कारण है कि यदि भारतीय लोग बीमार ही नहीं होंगे तो भारत में उनका धंधा कैसे चलेगा?
इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय दवा कंपनियां उस स्वदेशी और भारतीय दवा उद्योग “आयुर्वेद” को भी बर्बाद करना चाहते हैं, जो शत प्रतिशत प्रकृति पर आधारित है और सनातनधर्मी इसी के कारण स्वस्थ और लम्बी आयु को प्राप्त करते हैं । यदि कोई भारतीय आयुर्वेद कंपनी विदेशों में अपने उत्पाद बेचना चाहती हैं तो वही अंतर्राष्ट्रीय दवा कंपनियां आयुर्वेद के खिलाफ दुष्प्रचार कर उसे विज्ञान की कसोटी पर कसने और उसमें कमियां निकाल कर आस्था के साथ जोड़ने का षड्यंत्र करने लगते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय दवा कंपनियों के दबावों के चलते आजकल के तमाम डॉक्टर्स को यह भी यही पढ़ाया जाता है कि खासतौर पर भारत के उन लोगों को अब अप्राकृतिक बनाना है और उनका धर्म भ्रष्ट करना है जो कि शुद्ध रूप से अनादिकाल से प्राकृतिक जीवनशैली पर आधारित जीवन शैली जी रहे हैं। यही कारण है कि अंतर्राष्ट्रीय दवा कंपनियों के दबावों के चलते हमारी सरकारे और मंत्रालय भी भ्रामक प्रचारों के माध्यमों से सीधे-सीधे प्रोटीन और अन्य पोषक तत्वों के लालच देकर अंडा, चिकन, मछली आदि को प्रोटीन का सबसे अच्छा खजाना बताकर सनातन प्रेमियों का धर्म भ्रष्ट कर दिया जाता है।