अजय सिंह चौहान || मैंने अपने पहले लेख में मिस्टर एल.पी. फैरेल के साथ घटित एक घटना का जिक्र किया था। जबकि दूसरे लेख में यह जानने की कोशिश की थी कि, क्या वास्तव में ऐसा संभव हो सकता है? आज के इस तीसरे लेख में, मैं, उसी प्रकार की, कुछ दूसरी, दिलचस्प और आश्चर्य और चमत्कारों से भरी जानकारियां देने का प्रयास कर रहा हूं और ऐसे ही कुछ अन्य लोगों के विषय में भी बताने जा रहा हूं जिन्होंने हिमालय के उन घने क्षेत्रों में उपस्थित उन शक्तियों और महान आत्माओं तथा व्यक्तियों से ना सिर्फ मुलाकात की है बल्कि उनके साथ समय भी बिताया है। उसलेखकालिंकभीमैंयहाँदेरहाहूँ।इसकेअलावाअगलेसभीलेखोंकालिंकभीआपदेखसकतेहैं –
विदेशियों की नजर में हिमालय के सिद्ध ऋषि-मुनि – भाग #2
ये बात एक दम सच है कि एक आम व्यक्ति के जीवन में कभी-कभी कुछ ऐसी घटनाएं भी घट जाती हैं जिनको हम या तो महसूस ही नहीं कर पाते या फिर, उन्हें ये कह कर भूल जाते हैं कि ऐसा तो संभव ही नहीं है या फिर ये एक चमत्कार हो सकता है। जबकि बहुत ही कम लोग उन घटनाओं को संसार के सामने ला पाते हैं।
इस लेख में हम जिस विषय पर बात करने वाले हैं उसे स्पष्ट शब्दों में ये जानना भी जरूरी है कि हमारे शास्त्रों में शिव, भैरव, परशुराम, हनुमान और अश्वत्थामा जैसे अन्य और भी कई सारे सिद्ध पुरूषों और अमर आत्माओं का विस्तार से वर्णन है।
कोई माने या ना माने, लेकिन, उदाहरण के तौर यहां हम कल्कि पुराण की एक कहानी को आधार मान सकते हैं, जिसके अनुसार- जब भगवान कल्कि ने देखा कि पूरी दुनिया, भोग-विलास, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार और आलस्य जैसी तमाम विकृतियों और बुराईयों में डूब गई हैं, जिसके कारण अच्छे लोगों का, या अच्छी आत्माओं का प्रकाश धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है। इसलिए उन्होंने ऐसी ही आत्माओं के द्वारा एक बार फिर से जनसमूह का मार्गदर्शन करने का फैसला किया।
लेकिन, भगवान कल्कि को महसूस हुआ कि उनके पास जनता में जागरण के लिए आवश्यक शक्तियों का अभाव था। तब उनके आध्यात्मिक गुरु परशुराम जी ने उन्हें हिमालय पर बुलाया और एक ऐसी जगह पर तपस्या करने को कहा जहाँ गुरु परशुराम ने स्वयं तपस्या की थी। इस तपस्या ने भगवान कल्कि के भीतर की उस प्रचंड शक्ति को फिर से जगा दिया, जिसकी उन्हें युग परिवर्तन के लिए आवश्यकता हो रही थी।
यानी कि यहां इस उदाहण में यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि भगवान परशुराम का जन्म तो बहुत पहले हो ही चुका था। और यहां, उनकी उपस्थिति, उस अमरता का संकेत देती है और इस तथ्य की गवाही भी देती है कि उन्हीं के जैसी और भी अन्य कई अमर आत्माएं हिमालय में आज भी मौजूद हैं।
ठीक इसी प्रकार से हिमालय क्षेत्र में आज भी प्रकृति के अनगिनत चमत्कार देखने को मिलते हैं। हजारों किलोमीटर क्षेत्र में फैले हिमालय के हजारों-लाखों ऐसे स्थान हैं जहां आज भी मानव की पहुंच नहीं हुई है। इन क्षेत्रों में जहां एक ओर सुंदर और अद्भुत झीलें हैं तो दूसरी ओर सैकड़ों-हजारों फूट ऊंचे हिमखंड भी हैं। कहा जाता है कि हिमालय के इन्हीं दुर्गम क्षेत्रों में प्राचीन काल में देवी-देवता निवास करते थे और संभव है कि आज भी वे वहीं रहते हों।
महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित ‘मुण्डकोपनिषद्’ के अनुसार, हिमालय की वादियों को सूक्ष्म-शरीरधारी आत्माओं का एक संघ कहा जाता है। और ये स्थान या ये केंद्र उत्तराखंड क्षेत्र में स्थित हिमालय की वादियों में कहीं है। ऐसे में यदि हम भारतीय शास्त्रों और धर्म-दर्शन की गहराईयों में जायें तो ठीक इसी प्रकार की अन्य अनेकों घटनाएं भी हैं जो बताती हैं कि आज भी हिमालय के इन क्षेत्रों में उसी प्रकार की अमर आत्माएं, यानी साधू-सन्यासी आज भी मौजूद हैं जो युगों पहले भी हुआ करते थे।
यहां अगर हम एक बार फिर, मिस्टर एल.पी. फैरेल के साथ वर्ष 1942 में घटित उस घटना की तरह ही एक अन्य घटना का उदाहरण देखें तो स्वामी योगानंद द्वारा लिखित प्रसिद्ध पुस्तक ‘एक योगी की आत्मकथा’ के माध्यम से भी हमारे सामने कुछ ऐसे ही उदाहरण सामने आते हैं।
श्री श्यामा चरण लाहिड़ी, जो कि ‘लाहिड़ी महाशय’ के नाम से भी प्रसिद्ध थे उन्होंने अपनी ‘एक योगी की आत्मकथा’ नाम की पुस्तक में बताया है कि उन्हें भी हिमालय के एक अमर सिद्ध बाबा द्वारा वहां बुलाकर ‘क्रिया योग’ का विज्ञान सिखाया गया था, ताकि यह ज्ञान विलुप्त न हो।
ठीक इसी प्रकार की एक अन्य घटना के विषय में, डाॅ. हरि दत्ता भट्ट ’शैलेश’ ने भी हिंदी साप्ताहिक धर्मयुग में 23 अगस्त 1964 के अंक में गढ़वाल की एक पहाड़ी के अपने पर्वतारोहण के अनुभव का दिलचस्प वर्णन किया है। डाॅ. हरि दत्ता भट्ट ’शैलेश’ बताते हैं कि उन्हें पक्का विश्वास है कि किसी अलौकिक और पवित्र शक्ति ने ही उन्हें और उनके ग्रुप को भूस्खलन के नीचे दबने से बचाया था।
ये सभी घटनाएं स्पष्ट रूप से प्रमाणित करती हैं कि, अमर अलौकिक शक्तियों वाली अमर आत्माएँ, अब भी हिमालय के क्षेत्रों में मौजूद हैं और वे अनंत समय तक वहाँ विचरण करती रहेंगी।
इसी विषय पर एक और लेखक है ब्रिटेन के सी. क्लार्क। सी. क्लार्क द्वारा वर्ष 1968 में लिखी गई अपनी पुस्तक ‘स्पेस ओडिसी’ में उन्होंने स्पष्ट रूप से लिखा है कि हिमालय के बारहमासी बर्फ से जमे रहने वाले क्षेत्रों में अमर प्राणियों के अस्तित्व को एक मिथक के रूप में नहीं माना जा सकता।
और क्योंकि कठिन साधना सदैव उपयुक्त वातावरण पर निर्भर करती है। इसलिए कई वैज्ञानिकों ने उन्हीं अमर प्राणियों के अस्तित्व को लेकर दुनिया को इस बात के सुझाव भी दिये हैं कि वायुमंडलीय तापमान को कम करना चाहिए। ताकि उन अमर प्राणियों के अस्तित्व को बचाया जा सके।
दुनिया के तमाम जानकारों और जानकारियों के आधार पर यहां यह कहना सरल है कि आज भी हिमालयी क्षेत्रों में ऐसे सैकड़ों योगी हैं जिनको हिमालय के दुर्गम पहाड़ों के आंतरिक क्षेत्रों में तमाम रहस्यों के विषय में विस्तृत जानकारियां हैं।
हिमालयी क्षेत्र में ऐसे कई सिद्धाश्रम मौजूद हैं जो भौतिकतावाद और चहल-पहल से एक दम अलग-थलग हैं और भौतिकतावादी दुनिया तथा सामान्य व्यक्तियों की पहुंच से एक दम बाहर हैं। यानी सामान्य तौर पर वे दृश्यमान नहीं है, और केवल मानसिक रूप से जागृत और विशेष सिद्धियों के ज्ञाता योगियों को ही इन सिद्धाश्रमों में प्रवेश का सौभाग्य प्राप्त होता है।
आज भी हिमालय में निवास करते हैं हमारे देवी-देवता – भाग #4
ऐसे में इस विषय पर विस्तृत चर्चा होनी चाहिए कि आखिर ये सिद्ध बाबा और अमर बाबाओं का रहस्यमयी संसार क्या है और कहां है, या फिर यह मात्र एक कोरी कल्पना ही है। इस प्रकार के रहस्यों को जानने के लिए हमें भारतीय धर्मग्रंथों, शास्त्रों और पुराणों का सहारा भी लेना चाहिए।
इसी सीरिज के अगले लेख में, मैं यह बताने का प्रयास करूंगा कि कैसे हिमालय के दुर्गम और एकांत क्षेत्रों में ये ऋषि-मुनि हजारों वर्षों से आश्रम बनाकर आज भी तपस्या में लीन हैं, वहीं इनके बारे में एक आम आदमी को कुछ भी जानकारी नहीं है कि आखिर वे रहते कहां हैं और हर किसी को वे दिखना क्यों नहीं चाहते।