अजय सिंह चौहान || हम अक्सर सुनते हैं कि ‘‘सिंगल यूज प्लास्टिक’’ (Single use plastic in India) को भारत में बैन कर दिया गया है। लेकिन, हमें अपनी दिनचर्या में इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं है कि कब, कहां और कैसे हम इस सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तमाल आज भी करते ही जा रहे हैं। जबकि सच तो ये है कि खबरों के अनुसार सिंगल यूज प्लास्टिक को भारत में बीती 1 जुलाई 2022 से पूरी तरह से बैन किया जा चुका है। अगर इसको पूरी तरह से बंद करने का आदेश दिया जा चुका है तो फिर क्यों और कैसे यह प्लास्टिक आज भी हमारी दिनचर्या का एक अहम हिस्सा बना हुआ है, इसके लिए सरकार और कानून व्यवस्था ही जिम्मेदार है। लेकिन, यहां हम सरकार और कानून व्यवस्था की नहीं बल्कि उस सिंगल यूज प्लास्टिक की बात करेंगे जो हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए कितना जहरीला साबित हो रहा है।
तो सबसे पहले तो यह जान लें कि सिंगल यूज प्लास्टिक (Single use plastic in India) एक ऐसा कृत्रिम उत्पाद है जिसे हम केवल एक बार प्रयोग करके फेंक देते हैं। इसमें सबसे प्रमुख प्लास्टिक की थैलियां, डिस्पोजेबल कप, ग्लास, प्लास्टिक की चम्मच, पैकेजिंग की थैलियां, दूध और छाछ की थैलियां, बिस्किट, नमकीन और किराना की दुकानों पर मिलने वाले तमाम सामानों की पैकिंग वाली पन्नियां, कोल्ड ड्रिक्स, सोडा, पानी की बोतलें और स्ट्राॅ आदि में लगने वाला प्लास्टिक सिर्फ एक बार ही इस्तमाल किया जाता है।
दरअसल, 1 जुलाई 2022 से सिंगल यूज प्लास्टिक (Single use plastic in India) को संपूर्ण भारत में पूरी तरह से बैन किया जा चुका है। जबकि इसका इस्तमाल करने वाले आम आदमी को इस बात की जानकारी तक नहीं है। क्योंकि सिंगल यूज प्लास्टिक (Single use plastic in India) आज भी बाजार में उसी प्रकार से न सिर्फ खुलेआम बिक रहा है बल्कि उसका उत्पादन और इस्तमाल भी धड़ल्ले से हो रहा है। उधर प्रतिबंधों को लेकर सरकार तथा पर्यावरण मंत्रालय ने इसके पीछे का जो करण बताया है वह यही है कि सिंगल यूज प्लास्टिक से आम आदमी को ही नहीं बल्कि पशु-पक्षियों सहित संपूर्ण पर्यावरण जगत को भी सबसे अधिक नुकसान होता जा रहा है।
पर्यावरण विशेषज्ञों की मानें तो भारत में इस समय ‘‘प्लास्टिक वेस्ट’’ (plastic waste in India) पाॅल्यूशन का यानी पर्यावरण के नुकसान का सबसे बड़ा स्रोत बन चुका है। एक अनुमान के मुताबिक देश में हर साल करीब 14 मिलियन टन प्लास्टिक का उपयोग किया जा रहा है, जिसकी वजह से लगातार बड़े पैमाने पर कचरा फैलता जा रहा है।
तमाम प्रकार के प्लास्टिक वेस्ट से देश के छोटे-बड़े हर एक शहर की नालियों को भरा हुआ देखा जा सकता है। देश के हर हिस्से की नदियों के किनारे और छोटे-बड़े हर प्रकार के तालाबों में प्लास्टिक वेस्ट (plastic waste in India) को न सिर्फ तैरते हुए बल्कि उनके आसपास ढेर लगे हुए भी देखा जा सकता है। कई खुले मैदानों में तो प्लास्टिक वेस्ट (Single use plastic in India) को इस प्रकार से देखा जा सकता है मानो किसी खेत या बगीचे में रंग-बिरंगे फूलों के पौधे उगे हुए हों। हैरानी तो इस बात की है कि भारत में बड़े-बड़े सेमिनार और जागरूकता अभियान चलाने वाली कई स्वयं सेवी संस्थाएं तो अपने खुद के कार्यालयों में प्लास्टिक वेस्ट (plastic waste in India) के अंबार लगा कर बैठी हैं।
प्लास्टिक वेस्ट (Single use plastic in India) के प्रति जागरूकता का आप इस बात से भी अंदाज लगा सकते हैं कि इस विषय पर आयोजित होने वाले तमाम सेमिनार और विचार विमर्श के दौरान वे स्वयं अपनी टेबलों उन टेबलों पर जिन मिनरल वाटर की बोतलों को सजा कर रखते हैं वे कितनी खतरनाक होती हैं उन्हें खुद ही नहीं पता होता है तो भला एक आम आदमी को वे क्या शिक्षा देंगे। अपने घरों में वे किस प्रकार से प्लास्टिक वेस्ट (plastic waste in India) का इस्तमाल करते हैं इस बात की भी जांच होनी चाहिए।
ताजा आंकड़ों के अनुसार, इस समय भारत सहीत करीब 80 से अधिक देशों में सिंगल यूज प्लास्टिक (Single use plastic in India) पर प्रतिबंध लगा हुआ है। इनमें से कुछ पर आंशिक तो कुछ देशों में पूर्ण रूप से प्रतिबंधित है। इनमें सबसे अधिक अफ्रीका के 30 देश शामिल हैं जहां सिंगल यूज प्लास्टिक प्रतिबंधित है। जबकि कुछ देश तो ऐसे हैं जहां एक प्रतिशत भी प्लास्टिक का न तो प्रयोग होता है और न ही उत्पादन होता है। रवान्डा में 2008 से और केन्या जैसे देश में 2017 के बाद से प्लास्टिक न सिर्फ शत प्रतिशत प्रतिबंधित है बल्कि यदि किसी के पास प्लास्टिक का छोटा सा भी सामान मिल जाये तो उसे सजा दी जाती है। जबकि अमेरिका जैसे देश में भी सिंगल यूज प्लास्टिक (Single use plastic in India) को 2020 के बाद से पूर्ण रूप से बेद किया जा चुका है, हालांकि, इसका असर वहां न के बराबर देखने को मिलता है।
विशेषज्ञों के अनुसार किसी भी प्रकार का प्लास्टिक सेहत के लिए खतरनाक होतो है, लेकिन, सिंगल यूज प्लास्टिक (Single use plastic in India) लोगों के स्वास्थ्य के लिए सबसे अधिक जहरीला और पर्यावरण के लिए भी सबसे अधिक खतरनाक होता है। सेहत को लेकर एक्सपर्ट लोगों का कहना है कि प्लास्टिक हमारी सेहत को सीधा-सीधा भी, और अन्य कई तरीकों से भी प्रभावित करता है। इसका कारण यही है कि प्राकृतिक कचरा तो अधिक से अधिक 6 से 8 महीनों में गल कर समाप्त हो जाता है और प्रकृति के साथ मिल कर शुद्ध हो जाता है, लेकिन, किसी भी प्रकार का प्लास्टिक (plastic waste in India) सदियों तक न तो गलता है और न ही प्रकृति और वातावरण के साथ मिलकर अपना आकार बदलता है, जिसके कारण यह सबसे अधिक पानी को प्रदूषित (Water Pollution) करता है, हवा को प्रदूषित (Air Pollution) करता है और मिट्टी को प्रदूषित (Soil Pollution) करता है।
जीवन से जुड़े तीन प्रमुख तत्व, यानी शुद्ध हवा, शुद्ध पानी और शुद्ध मिट्टी किसी भी प्रकार के जीवन के लिए आवश्यक होता है। ऐसे में यदि हवा, पानी और मिट्टी ही जहरीले हो जायेंगे तो तमाम प्रकार के सुक्ष्म कीटाणुओं के कारण बीमारियां, महामारियां, मच्छर, मक्खी, कीड़े आदि हमारे खाने-पीने की वस्तुओं में मिलकर हमारी दिनचर्या को प्रभावित करते हैं और हम नई-नई प्रकार की बीमारियों से ग्रसित होते जाते हैं। मात्र इंसान ही नहीं बल्कि तमाम प्रकार के अन्य जीव जैसे शहरी आबादी के साथ रहने वाले पशु-पक्षियों के अलावा जंगलों में रहने वाले तमाम अन्य जंगली जीव भी आजकल इस सिंगल यूज प्लास्टिक (Single use plastic in India) के प्रदूषण से ग्रसित हो चुके हैं।
शहरी जीवनशैली में सिंगल यूज प्लास्टिक (plastic waste in India) के इस्तमाल के उदाहरणों में हम उन गायों को देख सकते हैं जिनके पेट फूले हुए हैं। दरअसल, जिन गायों के पेट फूले हुए होते हैं उनके पेट में प्लास्टिक की ऐसी थैलियां भी चली जाती हैं जिनको हम बची-खुची सब्जियों, चारा या अन्य खाने-पीने की वस्तुओं के साथ कचरा समझ कर फेंक देते हैं। इसके अलावा खासतौर पर बारीश के दिनों में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों की नालियों में जलभराव की जो समस्या देखने को मिलती है उसमें सबसे अधिक सिंगल यूज प्लास्टिक (Single use plastic in India) के कारण यह होता है।
सिंगल यूज प्लास्टिक (Single use plastic in India) को सबसे अधिक शहरी आबादी ही इस्तमाल करती है और यही कारण है कि शहरी आबादी ही इसके प्रति सबसे अधिक लापरवाह दिखती है। क्योंकि आम शहरी आबादी बड़ी ही लापवारी से सिंगल यूज प्लास्टिक को इधर-उधर फैंक देती है जिसके कारण यह प्लास्टिक नालियों में घुस जाता है और उनमें बहने वाले गंदे पानी को जाम कर देता है। धीरे-धीरे नालियों का वही पानी उस सिंगल यूज प्लास्टिक के साथ मिलकर नई-नई प्रकार की बीमारियों को जन्म देता है और आसपास की घनी आबादी को अनेकों प्रकार से संक्रमित करता रहता है।
हालांकि, भारत सरकार सहीत तमाम प्रकार के क्षेत्रीय और सामाजिक संगठनों सहीत कुछ स्वयं सेवी संस्थाएं सिंगल यूज प्लास्टिक के प्रति जागरूकता तो दिखाती हैं लेकिन, वे सिर्फ नाम मात्र के लिए ही होती हैं। दरअसल, जबकि वास्तविकता तो यह है कि वही सामाजिक संगठनों सहीत कुछ स्वयं सेवी संस्थाएं अपने न सिर्फ सामाजिक जीवन में बल्कि निजी जीवन में भी धड़ल्ले से सिंगल यूज प्लास्टिक (Single use plastic in India) का उपयोग करते हुए दिख जाते हैं। क्योंकि जागरूकता के नाम पर ऐसी संस्थाएं और व्यक्ति न सिर्फ सरकारों से बल्कि विदेशी संस्थाओं से भी भरपूर दान लेती हैं और अपने निजी हित के लिए उस चंदे का उपयोग करते हुए देखे जा सकते हैं। ऐसे में तो यही कहा जा सकता है कि हाथी के दांत खाने के अलग होते हैं और दिखाने के अलग होते हैं।
बात यदि करें प्लास्टिक के इस्तमाल पर लगने वाले प्रतिबंध की तो कहा जा सकता है कि सरकार भले ही इसे पूर्ण रूप से प्रतिबंधित कर दे, लेकिन जब तक कानूनी तौर पर और हर एक आदमी निजी तौर पर इसका इस्तमाल बंद नहीं कर देता तब तक यह कहना और सोचना भी बेमानी होगी कि सिंगल यूज प्लास्टिक (Single use plastic in India) का न सिर्फ इस्तमाल बल्कि उत्पादन भी भारत से पूर्ण रूप से समाप्त हो जायेगा। फिलहाल तो यही लग रहा है कि भारत सरकार सिंगल यूज प्लास्टिक (Single use plastic in India) पर प्रतिबंध को लेकर न सिर्फ खानापूर्ति कर रही है बल्कि अंतर्राष्ट्री जगत में अपने आप को साबित करना चाहती है कि वह पर्यावरण के प्रति जागरूक भी है। भले ही फिर इसके लिए दिखाना ही क्यों न करना पड़े।