अगर आप उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित श्री हेमकुंड साहिब की यात्रा पर जाना चाहते हैं या फिर चार धाम की यात्रा के लिए, तो आपके लिए यहां एक बहुत ही अच्छा अवसर होता है कि आप इस यात्रा के दौरान यानी इनमें से किसी भी एक यात्रा पर जाने के साथ-साथ यहां के अन्य धार्मिक और पर्यटन स्थानों का भी लाभ ले सकते हैं।
अगर आप ऋषिकेश से इस यात्रा के लिए निकलते हैं तो श्री हेमकुंड साहिब की दूरी यहां से करीब 300 किमी है। जबकि इससे करीब 25 किमी और आगे जाने पर बद्रीनाथ धाम आता है। अगर आप पहले बद्रीनाथ धाम के दर्शन कर लें और शाम को या फिर अगले दिन वापसी में श्री हेमकुंड साहिब के लिए निकलते हैं तो सबसे पहले आपको गोविंदघाट पर पहुंचना होता है।
श्री हेमकुंड साहिब के लिए यह यात्रा गोविंदघाट से शुरू होती है और श्री हेमकुंड साहिब के दर्शन करने के बाद वापसी में भी आपको इसी रास्ते से गोविंदघाट पहुंचना होता है। इसमें गोविंदघाट से श्री हेमकुंड साहिब के लिए एक तरफ की दूरी करीब 16 किमी है। आप चाहें तो गोविंदघाट से 3 किमी आगे पुलना तक जीप की सवारी करके भी जा सकते हैं, लेकिन उसके लिए आपको करीब 40 से 45 रुपये एक सवारी का किराया देना होता है। हालांकि, यहां भी अधिकतर यात्री पैदल चल कर ही इस यात्रा को करते हैं।
यहां एक बात और भी ध्यान रखें कि अगर आपके पास सामान थोड़ा ज्यादा है तो आपको यहां कुली या फिर पिट्ठू की सहायता लेनी पड़े तो इसके लिए पिट्ठू आपसे इस 10 किमी तक के 800 से 900 रुपये तक ले लेगा। इसमें आप चाहें तो सामान के साथ बच्चे को भी पिट्ठू की पीठ पर बैठा सकते हैं।
इसके अलावा अगर आप खुद भी यहां घोड़े या खच्चर की सवारी करना चाहते हैं तो 10 किमी की इस दूरी में आपको करीब-करीब 1500 से 1700 रुपये तक देने पड़ सकते हैं। घोड़े या खच्चर की सवारी करने पर यह रास्ता लगभग दो से ढाई घंटे में आराम से पार हो जाता है।
अगर आपका मन फूलों की घाटी की सैर करने का भी हो रहा हो तो हेमकुंड साहिब के लिए जाने वाले इसी रास्ते में घांघरिया नामक एक स्थान आता है जहां से एक अन्य दिशा में करीब 4 किमी की दूरी वाला एक पैदल रास्ता है जो फूलों की घाटी के लिए जाता है।
लेकिन, ध्यान रहे कि अगर आप यहां से फूलों की घाटी के लिए भी जाते हैं तो उसके लिए भी आपको उसी दिन शाम तक वापसी में घांघरिया आना ही होता है। इसलिए कोशिश करें कि फूलों की घाटी की सैर करने से पहले आप श्री हेमकुंड साहिब के दर्शन कर लें उसके बाद यानी उसके अगले दिन ही फूलों की घाटी के लिए जायें।
श्री हेमकुंड साहिब को हालांकि, सिक्खों के सबसे पवित्र तीर्थों में से एक माना जाता है, लेकिन, यहां हिन्दू समुदाय के तीर्थयात्रियों की संख्या भी अच्छी-खासी पहुंचती है। इसके अलावा यह स्थान सिक्ख तीर्थ स्थलों में दुनिया में सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित गुरुद्वारा भी है।
श्री हेमकुंड साहिब की यह यात्रा ना सिर्फ चार धाम की यात्रा की तरह ही एक कठीन तीर्थ यात्रा है बल्कि उससे भी कठीन यात्रा की श्रेणी में आती है। ऐसा इसलिए क्योंकि श्री हेमकुंड साहिब का यह पवित्र स्थान साल के करीब 6 महीनों तक बर्फ की मोटी चादर से पूरी तरह ढका रहता है।
श्री हेमकुंड साहिब का यह पवित्र स्थान समुद्रतल से करीब 15,000 फीट यानी करीब 4,572 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसलिए जिन दिनों मैदानी इलाकों में भीषण गर्मी और लू का प्रकोप होता है उस दौरान भी यहां का तापमान न्यूनतम 11 डिग्री और अधिकतम 21 डिग्री तक रहता है। यही कारण है कि इस दौरान यहां जाने वाले आम श्रद्धालुओं को एक विशेष समय पर ही यहां की यात्रा करने की अनुमति दी जाती है।
श्री हेमकुंड साहिब की इस यात्रा के लिए जून से सितंबर के बीच का एक बहुत अच्छा समय होता है जब आम श्रद्धालुओं को इस पवित्र स्थान के दर्शन करने की अनुमति जी जाती है। हालांकि यात्रा के दिनों में भी यहां कभी-कभार मौसम खराब हो जाता है जिसमें अचानक तेज बारीश शुरू हो जाती है और दोपहर के बाद तो यहां अक्सर बर्फिली हवा भी चलने लगती है।
हर साल यह यात्रा वैसे तो एक तय समय पर, यानी 1 जून से 10 अक्टूबर के बीच शुरू हो जाती है। लेकिन, इसमें भी अगर यहां का मौसम यात्रा के अनुकूल नहीं होता तो यात्रा की तारीख में बदलाव कर दिया जाता है ताकि यात्रियों को किसी भी प्रकार से कोई प्राकृतिक आपदा का सामना ना करना पड़े।
यात्रा शुरू होने से करीब 1 महीने पहले से ही इस यात्रा के लिए रास्ते को तैयार करने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाती है। इन तैयारियों में हर वर्ष यहां श्री हेमकुंड साहिब के लिए जाने वाले रास्ते से बर्फ को तोड़-तोड़ कर हटाया जाता है और रास्ते की मरम्मत कर उसे पैदल चलने के लायक बनाया जाता है।
यहां के दुर्गम और ऊंचे-ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों में अगर आप भी श्री हेमकुंड साहिब की इस यात्रा में या फिर यहां की चार धाम यात्रा में शामिल होने जा रहे हैं तो अपने अनुभव के आधार यहां मैं यह बता सकता हूं कि आपके पास भी सबसे पहले तो अच्छी क्वालिटी की बरसाती और कुछ गरम कपड़े होना अनिवार्य है।
अमरनाथ जी की यात्रा पर जाने की तैयारियां कैसे करें?
इसके अलावा पहाड़ों के पथरीले और बर्फिले रास्तों पर पैदल चलने के लिए अच्छी क्वालिटी के ऐसे जूते होने चाहिए जिनको आप पहले से ही पहन रहे हो। क्योंकि अगर जुते एक दम नये होंगे तो वे पैरों चुभ सकते हैं और चलने में परेशानी कर सकते हैं।
कहने के लिए तो श्री हेमकुंड साहिब की यात्रा में आने और जाने का कुल रास्ता 26 से 27 किमी का ही है लेकिन अगर आपको इस प्रकार की यात्राओं का अनुभव ना हो और किसी भी पहाड़ी रास्ते पर आप पहली बार इतनी दूरी तक पैदल चलते हैं तो आपको मात्र 1 या 2 किमी के बाद ही इस बात का एहसाह हो जायेगा कि अगर किसी भी यात्री के मन में जोश और उत्साह हो तो वह आराम से इस यात्रा को पूरा कर सकता है।
दूसरी बात यह कि अगर आप यहां या फिर इस प्रकार की किसी भी दूसरी धार्मिक यात्रा में शामिल होने से पहले कितनी भी तैयारियां क्यों न कर लें, अगर आपके पास उस स्थान को लेकर सच्ची श्रद्धा, आस्था और विश्वास ना हो तो आप को उस यात्रा को पूरा करने में बहुत सी परेशानियां आ सकती हैं। ऐसे में जब आप भी यहां पहंुचेंगे तो आपको देखने को मिलेगा की छोटे-छोटे बच्चे जिनकी उम्र करीब-करीब 12 से 13 वर्ष तक होती है वे भी यहां पैदल चल कर ही इस यात्रा को आसानी से पूरा करते हुए देखे जा सकते हैं।
इसलिए अगर आप श्री हेमकुंड साहिब की पवित्र यात्रा पर जाना चाहते हैं तो आप चार धाम की यात्रा के साथ-साथ इस यात्रा का भी आनंद ले सकते हैं और आपकी यह यात्रा रोमांच से भरपूर हो सकती है।
– पूरन शर्मा, शिमला