कहा जाता है कि सच्चे मन से और सच्ची लगन से किया हुआ कोई भी कार्य सदैव सफल होता है। ऐसा कार्य यदि स्वधर्मी यानी स्वयं के धर्म के लिए हो तो उसमें स्वयं ही ऊर्जा और शक्ति का संचार होता जाता है। इसके उदाहरणों में हम आज भी देख सकते हैं और प्राचीन तथा ऐतिहासिक उदाहरणों को भी देख सकते हैं।
‘इण्डिया सोसायटी’ के मुख-पत्र ‘आर्ट्स एण्ड लैटर्स’ में प्रकाशित ‘अकबर – दि मास्टर बिल्डर’ शीर्षक लेख में एक विशेष वाक्य है। इस वाक्य में कहा गया है : “दिल्ली में सबसे बड़े मकबरे (संभवतः हुमायूं के मकबरे (The history of Humayun’s Tomb) के बारे में बात हो रही है, क्योंकि दिल्ली में यह सबसे बड़ा मकबरा माना जाता है) आकृति में वृत्ताकार अथवा बहुभुजीय हैं, मकबरे का केन्द्रीय कक्ष या प्रमुख स्थान तोरणावृत्त-पथ है, यानी यह चारों ओर से घिरा सुन्दर कलाकृतियों से ढका हुआ है, यह एक ऐसी आकृति है जिसका मूल भाग अत्यन्त ही प्राचीन है।”
यहां लेखक का यह वाक्य स्पष्ट करता है कि किस प्रकार इतिहास और पुरातत्त्व के सभी जानकार और विद्यार्थी, भूल से या फिर किसी षड्यंत्र के तहत, हमारे प्राचीन हिन्दू भवनों, मंदिरों और अन्य संरचनाओं को मौलिक मुस्लिम कला-कृतियाँ केवल इसलिए बता देते हैं या समझते हैं क्योंकि उनमें कुछ मुस्लिम शासकों ने कब्रें बना दी हैं।
इसके अलावा भण्डारकर ओरिएण्टल रिसर्च इंस्टीट्यूट के वर्ष 1962 के ‘विष्णुध्वज रिब्यू’ शीर्षक लेख में, भाग-41, पृष्ठ 139-54 पर लेखकों का कहना है, “काशी, संस्कृत विश्वविद्यालय के अनुसन्धान निदेशक प्रोफेसर के. चट्टोपाध्याय मुझे सूचित करते हैं कि महमूद गज़नी “दिल्ली-मनार” (तथाकथित कुतुबमीनार जो की एक शुद्ध हिंदू मंदिर था और इसे आज भी प्राचीन इतिहास में “विष्णु स्तंभ” ही कहा जाता है) के कागज़ी नमूने अपने साथ गज़नी ले गया था ताकि वहाँ भी उसी प्रकार की संरचना तैयार करवाई जा सके।
महमूद गज़नी इसके लिए कुछ हिन्दू-कारीगरों को मथुरा से अपने साथ गज़नी में मस्जिदों और महलों को बनवाने के लिए ले गया था, और उन हिन्दू शिल्पशास्त्रियों ने वहाँ यानी गज़नी में कुतुबमीनार जैसे बिरले मीनार बनाए भी थे।” लेकिन वे कलाकर वहां सच्चे मन से कार्य नहीं कर सके इसलिए उनका कार्य भी सच्चा नहीं हुआ और परिणामस्वरूप वे इमारतें समय से बहुत पहले ही ध्वस्त हो गईं। आज उनमें से कइयों के तो खंडहर भी मौजूद नहीं हैं, जबकि आश्चर्य है कि उन्हीं हिन्दू शिल्पशास्त्रियों द्वारा भारत में बनायी हुई कई संरचनाएं आज भी जस की तस खड़ी हैं और संभवतः अगले एक हज़ार वर्षों तक भी यूँ ही रह सकती हैं, अगर हिन्दू सुरक्षित रहा और सनातन संस्कृति को किसी की नज़र न लगी तो।
– अजय चौहान