अजय सिंह चौहान || अगर आपका मन है उत्तराखण्ड के पंच केदारों में से एक भगवान तुंगनाथ जी (Tungnath Kedar Temple Tour) के मंदिर में दर्शन करने का लेकिन आपको ये नहीं मालूम कि वहां कब और कैसे जाया जा सकता है, कितने दिन लग सकते हैं और कितना खर्च लग सकता है तो यहां इस लेख के माध्यम से मैं आपको तुंगनाथ मंदिर तक जाने संबंधी यात्रा विवरण को अधिक से अधिक देने का प्रयास कर रहा हूं। ताकि इसका लाभ उठाते हुए बहुत ही आसानी से इस यात्रा का आनंद ले सकें।
तो सबसे पहले तो जो लोग इस मंदिर के बारे में नहीं जानते उनके लिए यहां मैं बहुत ही संक्षिप्त में तुंगनाथ जी (Tungnath Kedar Temple Tour) के इस मंदिर के बारे में भी बता दूं कि भगवान महादेव जी के पंच केदार मंदिरों में से एक यह तुंगनाथ मंदिर समुद्र तल से करीब 12,074 फिट की ऊंचाई पर है जो दुनिया में सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित शिव मंदिर के रूप में जाना जाता है। उत्तराखण्ड के रूद्रप्रयाग जिले की दूर्गम और ऊंचाईयों वाली दिव्य पहाड़ियों में स्थित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि भगवान शिव ने यहां पाण्डवों को साक्षात दर्शन दिये थे। पंच केदार मंदिरों में तुंगनाथ जी का यह मंदिर तीसरे स्थान पर पूजा जाता है। पौराणिक तथ्यों के अनुसार, तुंगनाथ जी के इस मंदिर में भगवान शिव के हृदय और बाहों की पूजा होती है।
जो लोग यहां दर्शनों के अलावा घुमने-फिरने के शौकिन होते हैं उनके लिए यहां समय की कोई पाबंदी नहीं है। यानी वे यहां वर्ष के किसी भी महीने में या किसी भी मौसम में जा सकते हैं। लेकिन, क्योंकि पहाड़ी क्षेत्रों की बारिश और बर्फबारी बहुत अधिक खतरनाक होती है इसलिए ज्यादातर लोग यहां मई से नवंबर महीने में ही आते-जाते देखे जाते हैं, इस दौरान वे लोग यहां इस धार्मिक यात्रा को भी कर सकते हैं और घूम-फिर भी सकते हैं। ध्यान रखें कि मई और नवंबर के बीच में ही मंदिर के कपाट खुले रहते हैं।
तो अब हम यहां इस यात्रा की शुरूआत करते हैं हरिद्वार से। अगर आप देश के किसी भी हिस्से में रहते हैं और आपको तुंगनाथ मंदिर (Tungnath Kedar Temple Tour) के दर्शनों के लिए जाना है तो सबसे पहले तो आपको सीधे हरिद्वार-ऋषिकेश होते हुए ही जाना-आना करना होता है। यानी एक प्रकार से हरिद्वार और ऋषिकेश ही इस यात्रा का पहला पड़ाव है। और शायद यही कारण है कि प्राचीन काल से ही हरिद्वार-ऋषिकेश को उत्तराखण्ड की किसी भी धार्मिक यात्रा का प्रवेश द्वार माना जाता रहा है। फिर चाहे वो यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ की चार धाम यात्रा हो, पंच केदार मंदिरों की यात्रा हो या फिर हेमकुण्ड साहेब की यात्रा पर ही क्यों न जा रहे हों।
लेकिन, क्योंकि आजकल यातायात और सड़क मार्गों की सुविधाएं बहुत अच्छी हो गई हैं, ऐसे में इन धार्मिक यात्राओं के साथ-साथ कई लोग अब यहां के पर्यटन स्थानों पर भी आनंद लेने के लिए जाते रहते हैं इसलिए अब यहां वो पहले वाली परंपरागत यात्राओं जैसी श्रद्धा और श्रद्धालु बहुत ही कम देखने को मिलते हैं।
और शायद यही कारण है कि हरिद्वार या फिर ऋषिकेश में अब ऐसे बहुत ही कम यात्री रूकना पसंद करते हैं जो अपनी खुद की गाड़ियों से या फिर टैक्सियां बुक कर इस यात्रा में जाना-आना करते हैं। ऐसे में अगर आप भी अपनी गाड़ियों से या फिर टैक्सियों से इस यात्रा में जाते हैं या फिर आप हरिद्वार-ऋषिकेश के आस-पास से हैं तो रात को हरिद्वार में ठहरने का आपका भी वो समय बच जाता है। क्योंकि ऐसे में आप यहां रात को ठहरने की बजाय अपनी इस यात्रा को जारी रख सकते हैं।
लेकिन, जो लोग यहां अपनी खुद की गाड़ियों से इन खतरनाक पहाड़ी रास्तों पर जाना-आना करते हैं उनके लिए मेरी सलाह है कि वे लोग रात के समय यात्रा न करें और जहां शाम हो जाये वहीं विश्राम कर लेना चाहिए। क्योंकि रास्ते में कई ऐसे छोटे-बड़े शहर या कस्बे आते हैं जहां पर आप को रात्रि विश्राम की व्यवस्थाएं देखने को मिल जातीं है।
लेकिन, वे लोग जिनका यात्रा बजट बहुत ही कम होता है और वे न तो अपनी गाड़ियों से जा सकते हैं और न ही टैक्सियों से, वे इस यात्रा को रोडवेज बस या फिर शेयरिंग जीप आदि से ही करते हैं, उनको रात को हरिद्वार में ही ठहरना पड़ता है। क्योंकि अगली सुबह यहीं से रोडवेज बस, शेयरिंग जीप या फिर प्राइवेट बसों के द्वारा आगे की यात्रा करनी होती है।
तुंगनाथ मंदिर तक कैसे पहुंचे –
सबसे पहले तो यहां ये जान लें कि हरिद्वार-ऋषिकेश से तुंगनाथ मंदिर (Tungnath Kedar Temple Tour) तक जाने के दो अलग-अलग सड़क मार्ग हैं। जिसमें से पहला है हरिद्वार से गोपेश्वर होते हुए और दूसरा है हरिद्वार से ऊखीमठ होते हुए चोपता (Chopta Tungnath) तक पहुंचने का, जहां से तुंगनाथ मंदिर के लिए पैदल यात्रा की शुरूआत करनी होती है।
इसमें से हरिद्वार से गोपेश्वर होते हुए चोपता (Chopta Tungnath) तक जाने पर सड़क मार्ग से करीब 270 किमी की दूरी तय करनी होती है। जबकि हरिद्वार से ऊखीमठ होते हुए चोपता तक की यह दूरी करीब 220 किमी है। यानी हरिद्वार से ऊखीमठ के रास्ते चोपता तक जाने में यह दूरी करीब 50 किमी कम हो जाती है। इसीलिए अधिकतर यात्री इसी मार्ग से जाना-आना पसंद करते हैं।
उत्तराखण्ड में जब धार्मिक यात्राओं का और पर्यटन का समय होता है तो उन दिनों में यहां रोडवेज और अन्य प्रायवेट बसें हरिद्वार से सुबह करीब 6 बजे से चलनी प्रारंभ हो जाती हैं जो करीब-करीब 7 घंटे का समय लेते हुए ऊखीमठ पहुंचा देती हैं। ऊखीमठ पहुंच कर वहां से टैक्सी या फिर शेयरिंग जीप के द्वारा करीब 25 किमी और आगे चोपता (Chopta Tungnath) तक पहुंचना होता है।
हरिद्वार के बस अड्डे से ऊखीमठ और गोपेश्वर के दोनों ही रास्तों से जाने-आने के लिए रोडवेज और निजी बस सेवाएं उपलब्ध हैं। इसके अलावा शेयरिंग जीप और प्राइवेट टैक्सी भी मिल जाती है। लेकिन, ध्यान रखें कि चारधाम यात्रा के दौरान यहां यात्रियों की संख्या अधिक होती है इसलिए यहां आपको बस और टैक्सी की बुकिंग पहले से ही करवानी पड़ सकती है।
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इन सबके अलावा अगर आप चोपता (Chopta Tungnath) तक अपनी बाइक से भी जाना-आना करना चाहते हैं तो एक साधारण बाइक से आप हरिद्वार से चोपता तक करीब-करीब 1,800 रुपये के तेल खर्च में अपनी पूरी यात्रा आराम से कर सकते हैं। और, अगर आप यहां अपनी पर्सनल कार लेकर जाते हैं तो उसमें तेल खर्च का अनुमान आपको स्वयं ही लेकर चलना होगा, क्योंकि आगर आप किसी लग्जरी गाड़ी से जाते-आते हैं तो उसके लिए तेल का खर्च भी अधिक ही लग जाता है।
यहां मैं ये भी बता दूं कि यहां हम जिस खर्च की बात कर रहे हैं उसमें तेल के खर्च और बसों का किराया या रात्रि विश्राम और अन्य किसी भी प्रकार के खर्च का यह एक लगभग वाला अनुमान है जो पिछले वर्ष की यात्रा खर्च के आधार पर दिया जा रहा है। हो सकता है कि इस बार ये खर्च और अधिक बढ़ जाये, इसलिए अपना यात्रा बजट थोड़ा अधिक ही लेकर चलना चाहिए।
कहां ठहरें –
हरिद्वार से चलने के बाद रात्रि विश्राम के लिए गोपेश्वर और ऊखीमठ दोनों ही स्थानों पर गढवाल मंडल विकास निगम के विश्राम स्थल मिल जाते हैं। लेकिन, इनमें सबसे अधिक उन पर्यटकों की संख्य देखी जाती है जो यहां घुमने-फिरने के इरादे से आते हैं। इसलिए यहां तीर्थ यात्रियों के लिए और भी कई सारे छोटे-बड़े प्रायवेट होटल्स, धर्मशालाएं और लाॅज हैं जिनमें आसानी से कमरे मिल जाते हैं।
होटल की बात करें तो करीब-करीब 500 रुपये से लेकर 1500 रुपये तक के किराये में यहां कमरे मिल जाते हैं। लेकिन, कभी-कभी यहां इस बात पर भी निर्भर करता है कि अगर उन स्थानों पर यात्रियों की भीड़ अधिक हो जाती है तो फिर होटल वाले यह किराया बढ़ा भी सकते हैं। इसके अलावा यहां भोजन के खर्च में भी एक व्यक्ति के हिसाब से एक समय के लिए कम से कम 150 रुपये से लेकर 200 रुपये में भरपेट शुद्ध शाकारी यानी सात्विक भोजन मिल जाता है।
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अगर आप गोपेश्वर या फिर ऊखीमठ में रात को ठहरना नहीं चाहते हैं तो फिर सीधे चोपता पहुंच जाइये और वहीं रात को विश्राम कीजिए। क्योंकि जो लोग यहां तुंगनाथ मंदिर की यात्रा पर जाते हैं उनमें से अधिकतर यात्री गोपेश्वर या फिर ऊखीमठ की बजाय सीधे चोपता में ही रात को ठहरना पसंद करते हैं। इसका कारण ये है कि चोपता से ही तुंगनाथ मंदिर के लिए अगली सुबह जितना जल्दी हो सके पैदल यात्रा शुरू करनी होती है और शाम तक चोपता में ही लौटना भी होता है।
अगर कोई यात्री गोपेश्वर या फिर ऊखीमठ में रात को ठहरता है तो अगली सुबह उसको चोपता तक पहुंचने में अधिक समय लग जाता है और उसके पास फिर तुंगनाथ मंदिर के लिए पैदल यात्रा करने के लिए समय बहुत कम रह जाता है और फिर वे यहां इस यात्रा का आनंद भी ठीक से नहीं उठा पाते हैं। इसलिए प्रयास करें कि गोपेश्वर या फिर ऊखीमठ में रात्रि विश्राम की बजाय चोपता में ही आ कर ठहरें।
चोपता उत्तराखण्ड का एक बहुत ही प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है इसलिए यहां भी कई सारे प्राइवेट होटल्स और खाने-पीने के अच्छे रेस्टारेन्ट हैं जो आपके बजट के हिसाब से मिल जाते हैं। चोपता एक टूरिस्ट प्लेस भी है इसलिए पर्यटकों के साथ-साथ कुछ श्रद्धालु भी चोपता में आकर एक-दो दिन ज्यादा रूकना पसंद करते हैं।
तो यात्रा के पहले दिन हरिद्वार से चल कर चोपता पहुंचने के बाद यहां रात को विश्राम करना होता है। इसके बाद यात्रा के दूसरे दिन सूर्य की पहली किरण के साथ ही तंुगनाथ मंदिर की ओर ट्रैकिंग, यानी कि पैदल यात्रा पर निकलने की तैयारी करनी होती है।
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चोपता से मंदिर की ओर ट्रैकिंग शुरू करने से पहले यहां ये ध्यान रखना होता है कि आप अपने साथ जो सामान लाये हैं उसमें से कुछ सबसे जरूरी सामान जैसे कि सबसे पहले तो अपनी आईडी, बरसाती, टार्च, जरूरी दवाईयां, कुछ गरम कपड़े और पानी की बोतल अपने बैक पैक में यानी कि पिट्ठू बैग में डालकर अपने साथ लेकर जायें और बाकी सामान को यहां होटल के लाकर में जमा करवा दें।
तुंगनाथ मंदिर (Tungnath Kedar Temple Tour) चोपता से मात्र 4 किमी की पैदल दूरी पर है, इसलिए यहां अच्छी बात ये है कि पंच केदार मंदिरों के अन्य मंदिरों में यही एक ऐसा मंदिर है जिसकी पैदल दूरी सबसे कम है। इसलिए यहां बहुत लंबी और ज्यादा थका देने वाली ट्रैकिंग नहीं करनी पड़ती है। मात्र 4 किमी की यह ट्रैकिंग करीब-करीब 3 घंटे में पूरी करके तुंगनाथ जी के मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। इस पैदल मार्ग में कुछ छोटे-छोटे टी-स्टाॅल और ढाबे देखने को मिल जाते हैं जहां आप अपनी भूख मिटा सकते हैं।
यहां सबसे महत्वपूर्ण बात ध्यान रखने वाली ये है कि इस पैदल मार्ग में आप खाने-पीने का जो कुछ भी सामान खरीदते हैं उनकी कीमत बहुत अधिक देनी पड़ जाती है। इसलिए कोशिश करें कि जितना हो सके अपने साथ खाने-पीने का कुछ न कुछ सामान जरूर रखें ताकि आपका बजट खराब न हो।
करीब-करीब इस 3 घंटे की ट्रैकिंग के बाद यात्री चोपता से तुंगनाथ मंदिर (Tungnath Kedar Temple Tour) तक पहुँच जाते हैं। इस ट्रैकिंग में प्रकृति के अद्भूत और आश्चर्यचकितन कर देने वाले नजारों के दर्शन करने का सौभाग्य मिलता है। यहां तक जाने वाले यात्रियों की संख्या बहुत अधिक नहीं होती इसलिए मंदिर पहंुच कर बड़े ही आराम से तुंगनाथ जी के दर्शन हो जाते हैं।
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यहां जाने से पहले इस बात का भी ध्यान रखना होता है कि आपके लिए इस यात्रा मार्ग में कोई भी ऐसा बेसकैंप नहीं है जहां आप रात को विश्राम कर सकें। इसलिए सभी यात्रियों को तुंगनाथ जी के दर्शन करने के बाद उसी दिन वापसी में शाम होने से पहले चोपता लौटना ही होता है। तुंगनाथ जी के दर्शन करने के बाद कोशिश करें कि शाम होने से पहले ही वापसी में चोपता पहुंचने की तैयारी कर लें।
और यदि मंदिर तक पहुंच कर भगवान तुंगनाथ जी के दर्शन करने के बाद, आप थकान महसूस नहीं कर रहे हैं और आपके पास अभी आधे से अधिक दिन का समय बचता है तो आपको तुंगनाथ जी के इस मंदिर से करीब 1.5 किमी और आगे की ओर चंद्रशिला (Chandrashila Trek from Chopta) नाम के एक दिव्य पर्वत की चोटी पर जाने का अवसर नहीं गंवाना चाहिए।
चंद्रशिला पर्वत की चोटी (Chandrashila Trek from Chopta) समुद्रतल से करीब 13 हजार फिट की ऊंचाई पर है। जबकि तुंगनाथ जी का यह मंदिर 12,073 फिट की ऊंचाई पर है। इस हिसाब से चंद्रशिला पर्वत के लिए यहां से करीब 927 फिट की और अधिक खड़ी चढ़ाई चढ़ कर जाना होता है। चन्द्रशिला अत्यधिक ऊँचाई पर स्थित है, जिस वजह से यहां तक जाने वाले यात्रियों को आक्सीजन की कमी भी महसूस होने लगती है। बावजूद इसके चंद्रशिला तक आप ही नहीं बल्कि और भी कई श्रद्धालु जाते हैं।
चंद्रशिला पर्वत (Chandrashila Trek from Chopta) की इस दिव्य चोटी पर एक अति प्राचीनकाल में स्थापित पौराणिक काल का गंगा जी का एक छोटा मंदिर भी है जिसका विशेष महत्व है। माना जाता है कि चन्द्र देव ने यहाँ एक शिला पर बैठकर तपस्या की थी, इसलिए इसे चन्द्रशिला नाम दिया गया। यहां आज भी उस शिला के दर्शन हो जाते हैं।
अमरनाथ जी की यात्रा पर जाने की तैयारियां कैसे करें?
चन्द्रशिला की इस चोटी (Chandrashila Trek from Chopta) से त्रिशूल पर्वत, केदार पर्वत, नंदा देवी पर्वत, चैखम्बा पर्वत और बंदरपूंछ नाम की उन पवित्र और दिव्य चोटियों के भी दर्शन किये जा सकते हैं जिनका सनातन के धर्म ग्रंथों में उल्लेख मिलता है। चन्द्रशिला से हिमालय इतना नजदीक दिखता है मानो उसे हम छू भी सकते हैं।
यात्रा संबंधी कुछ जरूरी सुझाव –
पंच केदार के पांचों मंदिरों में तुंगनाथ जी (Tungnath Kedar Temple Tour) की यह यात्रा सबसे आसान मानी जा सकती है। इस यात्रा में कम से कम 3 से 4 दिनों का समय लग जाता है। ध्यान रखें कि यहां का मौसम हर समय ठण्डा रहता है इसलिए यात्रा पर जाने से पहले अपने सामान में कुछ गरम कपड़े, एक अच्छी क्वालिटी की बरसाती, एक टार्च, कुछ जरूरी दवाईयां भी जरूर रख लें।
अगर आप यहां मई से नवंबर के बीच में जायेंगे तो यहां आपको बर्फ देखने को नहीं मिलेगी, जबकि, नवंबर से मार्च तक या फरवरी के महीनों में यहां भारी मात्रा में बर्फबारी देखने को मिलती है। चोपता उत्तराखण्ड राज्य का एक टूरिस्ट डेस्टीनेशन भी है इसलिए यहां हर मौसम में टूरिस्ट आते-जाते रहते हैं। लेकिन ध्यान रखें कि इस दौरान मंदिर के कपाट बंद रहते हैं, जबकि मई और नवंबर के बीच में ही मंदिर के कपाट खुले रहते हैं।
खर्च की बात करें तो रोडवेज की बसों में जाना-आना करने पर हरिद्वार से चोपता के लिए दो लोगों के खर्च में आप दो दिन और दो रातों के लिए कम से कम 5 हजार से 6 हजार रुपये में आराम से इस यात्रा को कर सकते हैं। इसमें आपका भोजन का खर्च भी हो जाता है।