आज कल हम देख रहे हैं कि भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के हर उस देश में जहां भारत के हिन्दू लोग रहते हैं वहां भी अब ‘हिंदुत्व’ और ‘हिंदू राष्ट्र’ को लेकर विचारधारा का उदय हो चुका है और इसका प्रचार भी किया जा रहा है। लेकिन, ये बात बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि ‘हिंदुत्व’ और ‘हिंदू राष्ट्र’ जैसे शब्दों की रचना करने वाले और उनकी व्याख्या कर उनको हिंदू जनमानस में फैलाने वाले उस शख्स का नाम है वीर सावरकर।
दरअसल, बीसवीं शताब्दी में ‘हिंदु‘ शब्द का एक निश्चित वर्णन करने वालों में से एक थे वीर सावरकर। वीर सावरकर ने ही ‘हिंदुत्व‘ और ‘हिंदु‘ शब्द का अर्थ भी समझाया और भविष्य के लिए उसके महत्व का वर्णन भी किया।
वीर सावरकर ने हिंदू शब्द को इस सरलता से परिभाषित किया कि वह भारतीयों और खास कर सनातन और हिंदू धर्म के अनुयायियों के मन में घर कर गया। वीर सावरकर के अनुसार ‘ हिन्दू या हिन्दुत्व वह है जो भारत को अपनी जन्मभूमि और पवित्रभूमि दोनों मानता है’। वीर सावरकर ने अपनी इस थ्योरी से न सिर्फ हिंदुत्व या हिंदू को अन्य धर्मों से अलग बताया, बल्कि उनकी इस परिभाषा ने अब्राहमिक धर्मों – जैसे यहूदी, ईसाई और इस्लाम को भी अपने दायरे से बाहर रखा और केवल हिंदू के रूप में मूल धार्मिक भावनाओं को ही स्थान दिया।
हिन्दू धर्म के विषय में वीर सावरकर ने अपनी इस थ्योरी से हट कर भी एक अलग विचार को जन्म दिया जिसमें उन्होंने अपने विचारों के माध्यम से ‘हिंदू राजनीति’ को महत्व देने की बात कही। यही कारण है कि आज कांग्रेस सहीत तमाम वामपंथी और अन्य धर्म या समुदाय के लोग वीर सावरकर को न सिर्फ अपना दुश्मन मानते हैं बल्कि उन्हें एक देशद्रोही भी साबित करने की कोशिश करते रहते हैं।
क्योंकि वीर सावरकर ने अपनी ‘हिंदू राजनीति’ की अवधारणा के माध्यम से हिंदू लोगों और उनकी संस्कृति की सुरक्षा का आह्वान किया और इस बात पर अधिक जोर दिया कि हमारी वर्तमान राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्थाएं पश्चिम से उधार ली गई हैं, इसलिए इन अवधारणाओं के बजाय अब भविष्य के लिए हमारे मूल विचार और हमारी राजनीति ‘हिंदू राजनीति’ के आधार पर ही होनी चाहिए।
वीर सावरकर ने अपने विचारों में ‘हिंदू राजनीति’ को आधार मान कर धार्मिक प्रथाओं के साथ-साथ क्षेत्रीय प्रथाओं को भी आधार बनाने पर जोर देने की बात कही थी। वीर सावरकर ने अपनी एक किताब में लिखा है कि मुस्लिमों और ईसाईयों की भूमि अरब या फिलिस्तीन यहां से बहुत दूर है। उनकी पौराणिक कथाएं और ईश्वर से जुड़ी तमाम अवधारणाएं भी मनगढ़ंत हैं। न तो उनके राष्ट्रवादी विचार हैं और ना ही उनके पौराणिक नायक हैं। भारत की मिट्टी में जन्में उनके बच्चों के नाम और उनका दृष्टिकोण भी पूरी तरह से विदेशी मूल का ही है, तभी तो उनका राष्ट्र प्रेम भी विभाजित है और राजनीति भी दोहरी है।
वीर सावरकर ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान, हिंदू महासभा के अध्यक्ष के नाते एक नारा दिया था- ‘राजनीति का हिंदूकरण और हिन्दोस्तान का मिलिटरीकरण करें’। लेकिन, राजनीतिक उठापटक के चलते उनके नारे पर अमल नहीं हो पा रहा था।
विनायक दामोदर सावरकर द्वारा लिखी गई एक वैचारिक पुस्तक ‘हिंदुत्व’ में उन्होंने स्पष्ट लिखा है कि हिंदू कौन हैं और उनका दायित्व क्या है? इस पुस्तक को मूल रूप से 1923 में ‘एसेंशियल ऑफ़ हिंदुत्व’ के नाम से प्रकाशित किया गया था। और जब 1928 में इसको दौबारा प्रिंट करवाया गया तो इसे ‘हिंदुत्वः हू इज ए हिंदू?’ के नाम से प्रकाशित किया गया था। सावरकर की यही पुस्तिका स्वतंत्रता के बाद से अब तक भी ‘हिंदू राष्ट्रवाद’ के विषय पर जनमानस में जागरण का काम कर रही है।
वीर सावरकर के अनुसार ‘हिंदू धर्म’ रूपी शब्द में भारत के सभी धर्म शामिल हैं और ‘अखण्ड भारत’ यानी अविभाजित भारत के रूप में एक ‘हिंदू राष्ट्र’ के अपने दृष्टिकोण को रेखांकित करते हुए, पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैला हुआ है। दरअसल, उन्होंने अपने ये विचार उस लिखे थे जब देश के बंटवारे के बारे में दूर-दूर तक भी चर्चाएं नहीं हो रहीं थी।
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