चाहे चैत्र के नवरात्र हो या शारदीय नवरात्र (What is Navratri), इन दोनों ही नवरात्र के अवसर, माता की आराधना के लिए जितने उत्तम माने जाते हैं उतने ही प्राकृतिक तौर पर भी वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं। इसके आध्यात्मिक, मानसिक और वैज्ञानिक तर्क और रहस्य के तौर पर हम यह कह सकते हैं कि हमारे ऋषि-मुनियों ने आज से हजारों-लाखों वर्ष पहले ही प्रकृति में छूपे वैज्ञानिक रहस्यों को समझ लिया था। तभी तो उन्होंने इन विशेष नौ दिनों को आदिशक्ति की उपासना और नौ रात्रियों को सिद्धि के प्रतीक के रूप में माना और भजन-पूजन के लिए चुना था।
हमारे प्राचीन वैज्ञानिकों ने या यूं कहें कि हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने हजारों साल पहले ही यह भी बता दिया था कि पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के दौरान जो समय लगता है वह एक वर्ष का होता है और उस एक वर्ष की चार अलग-अलग संधियां होती हैं।
अलग-अलग संधियां यानी चार अलग-अलग प्रकार के ऋतु परिवर्तन या मौसम में बदलाव होते हैं। उन परिवर्तनों को अगर हम अंग्रेजी के महीनों के अनुसार माने तो उनमें मार्च और सितंबर के महीनों में पड़ने वाली दो मुख्य संधियों में ही नवरात्र (What is Navratri) आते हैं।
खास तौर पर इन्हीं दो प्रमुख संधियों के समय में ही कई प्रकार से रोगाणुओं और महामारियों के द्वारा प्रकृति और मानव जाति पर आक्रमण की सबसे अधिक संभावना भी होती है। इसके अलावा इन्हीं दो ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक और मानसिक बीमारियाँ अधिक बढ़ती हुई देखी जा सकती हैं। यही कारण है कि इन दिनों में ना सिर्फ शरीर को शुद्ध रखने के लिए, बल्कि, मानसिक तथा आध्यात्मिक रूप से भी निर्मल और पवित्र रहने के लिए ‘नवरात्र’ (What is Navratri) रूपी प्रक्रिया की आवश्यकता होती है।
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हालांकि आज के दौर में हमारे लिए नवरात्र के ये नौ दिन मात्र एक परंपरा और उत्सव बन कर रह गये हैं लेकिन, वर्ष में दो बार आने वाले इन दोनों ही नवरात्र (What is Navratri) पर्वों का अपना महत्व होता है, जिसमें शारदीय नवरात्रों का सिद्धि और साधना की दृष्टि से थोड़ा ज्यादा ही महत्व माना जाता है।
चाहे चैत्र के नवरात्र (What is Navratri) हो या शारदीय नवरात्र, इन दोनों ही अवसरों पर उपासकजन अपनी आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक शक्तियों का संचय करने के लिए विभिन्न प्रकार से यज्ञ, भजन, पूजन, व्रत, संयम, नियम, और योग साधनाएं करते हैं।
हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने वर्ष में दो बार इन नवरात्रों को मनाने का विधान बनाया है, जिसमें से विक्रम संवत के पहले दिन से, यानी चैत्र मास में मनाई जाने वाली नवरात्र को चैत्र नवरात्र कहा जाता है। चैत्र नवरात्र (What is Navratri) के बाद से ही ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो जाता है जबकि इसके पहले शरद ऋतु का समय रहता है, अर्थात चैत्र नवरात्र के यही दिन संधिकाल के दिन होते हैं।
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इसी प्रकार चैत्र नवरात्र के ठीक छह महीनों बाद यानी आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होकर महानवमी अर्थात विजयादशमी के एक दिन पूर्व तक मनाये जाने वाले नवरात्र (What is Navratri) को आश्विन नवरात्र कहा जाता है। और क्योंकि इस नवरात्र के बाद शरद ऋतु का आगमन हो जाता है इसलिए इसे विशेष शारदीय नवरात्र भी कहा जाता है।
यहां हम साफ तौर पर कह सकते हैं कि चाहे चैत्र के नवरात्र (What is Navratri) हो या शारदीय नवरात्र, ये दोनों ही नवरात्र प्राकृतिक तौर पर भी और वैज्ञानिक दृष्टि से भी न सिर्फ संपूर्ण मानव जाति के लिए बल्कि प्राकृतिक तौर पर भी महत्वपूर्ण होते हैं और यही इसके आध्यात्मिक और वैज्ञानिक तर्क और रहस्य हैं। इसी रहस्य को हमारे ऋषि-मुनियों ने आज से हजारों-लाखों वर्ष पहले ही समझ लिया था। इसीलिए उन्होंने इन विशेष नौ दिनों को आदिशक्ति यानी प्रकृति की उपासना और नौ रात्रियों को विशेष सिद्धि के प्रतीक के रूप में माना और भजन-पूजन के लिए चुना था।
– ज्योति सोलंकी, इंदौर