अजय चौहान । असुरों ने देवों द्वारा पिए जाने वाले सात्विक और पवित्र “सोम रस” के महत्त्व को काम करने और उसकी पवित्रता का विनाश करने के इरादे से “वारुणी” नाम की विशेष मदिरा का एक नवीन तथा नशीले पदार्थ से युक्त पेय का निर्माण किया जिसको उन असुरों ने “सुरा” नाम दिया क्योंकि यह उनका अपना उत्पादन अथवा अविष्कार था। उस सुरा का पान करते हुए असुर कहते थे “सुरान पिबाम”, अर्थात हम असुर लोग सुरा का पान कर रहे हैं। वही सुरा आज भी मदिरा या शराब के नाम से परोसी जा रही है। उस सुरा अर्थात आज की इस शराब का जन्म भी वहीं हुआ है जहां आज का सीरिया देश है, यानी असुरों की जन्मस्थली।
मनुस्मृति में लिखा है – “सुरा अन्न का मल है, अर्थात विकृत अन्न से सुरा का निर्माण होता है। मल को पाप तथा घृणास्पद बताया गया है, अतः ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्यों को सूरापान नहीं करना चाहिए। ||6|| (मनु/भृगु) । इसके अलावा गुरु शुक्राचार्य ने भी अपने उपदेश में कहा है कि – “आर्यों को मदिरा का पान नहीं करना चाहिए। क्योंकि यह बुद्धि का नाश करती है।”
गुरु शुक्राचार्य को ऐसा इसलिए कहना पड़ा था क्योंकि असुरों के समान ही देवताओं ने भी उस सुरा को पीना शुरू कर दिया था और इसी प्रकार से देवराज इंद्र ने भी “सौत्रामणी यज्ञ” में उस सुरा का पान कर लिया था। इंद्र ने वहां “सौत्रामण्यां सुरां पिबेत” व्यवस्था के अनुसार उस सुरा का सेवन किया था।
इंद्र का अपमान करने के लिए असुरों ने “सौत्रामणी” नामक सुरायज्ञ का आयोजन किया था और एक षड्यंत्र के तहत इसमें वृषाकपि नाम के एक असुर का सहारा लिया गया था। यह वृषाकपि असुर इंद्र का परम मित्र हुआ करता था। इसलिए असुरों ने इंद्र को सुरा पिलाने के लिए उसके परम मित्र का सहारा लिया।
उस असुर वृषाकपि ने देवराज इंद्र को उस यज्ञ आयोजन में पीने के लिए सोम के साथ सुरा भी परोस दी थी। जिसको बाद उस सभा में शोर मच गया किया – “इंद्र सुरा पी रहा है। और हम सोम का पान कर रहे हैं।” और फिर इंद्र की घोर निन्दा होने लगी।
आज भी जिस किसी का धर्म भ्रष्ट किया जाता है अथवा सेकुलर बनाया जाता है उसको इसी प्रकार से शराब की लत लगाई जाती है। इसी प्रकार से उसको भ्रमित अथवा मित्रता के नाम पर पार्टी और विशेष कार्यक्रमों में आदि में आमंत्रित कर नशा दिया जा रहा है।