आज हमें यह बात अच्छी तरह से जान लेना चाहिए कि विदेशी मुस्लिम आक्रन्ता व लुटेरे भारत एवं भारतीयों के बारे में क्या सोचते थे और आज उनका उद्देश्य क्या और कहां तक पहुंचा है, तथा भारत पर आक्रमण करने का उनका क्या उद्देश्य था? क्योंकि आजतक हमें वही इतिहास पड़ने को मिला है जो हमारी सरकारी किताबों में लिखा है। लेकिन हमारे देश का मुगलकालीन असली इतिहास हमारे देश से बाहर यानी विदेशों में भी सुरक्षित है जिसे हमें छुपाया गया है। पेश है उसी का एक अंश –
अरबी इतिहासकार “तारीखी मासूमी”, “मुजामलूत तारीखी” और “अल बिलादुरी” की “फुतुहुल बुलदन” के अनुसार दमिश्क के धार्मिक मुख्यालय के भौतिक प्रधान खलीफा ने, इराक स्थित बग़दाद के उप-प्रधान की सहायता से भारत में लूटपाट, हत्या, धर्म परिवर्तन आदि के कार्यक्रमों को तभी नियोजित कर दिया था जब इस्लाम का उदय हुआ ही था। इस अभियान में कोई राजा, कोई देश या सैनिक नहीं बल्कि अबीसीनिया, ईराक, ईरान, अफगानिस्तान, कजाकिस्तान, उजबेकिस्तान, टर्की, गज़नी, आदि देशों के मुसलमानों के डकैत गिरोहों के गिरोहों ने, बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था’। यही कारण है कि वे आज भी किसी युद्धनीति या किसी शांति प्रस्ताव को नहीं मानते।
अब हम, भारत पर, पहले सफल विदेशी मुस्लिम आक्रमण (सन् ७११) के सूत्रधार, ‘मुहम्मद-बिन-कासिम’ के उस पत्र के कुछ अंशों को उद्धृत करते हैं, जो उसने सिंध की लूट, हत्याकाण्ड के दौरान, नीरून नामक स्थान से, बगदाद के उपशासक हज्जाज़ को लिखा था-“आपको यह मालूम हो कि रेगिस्तान को रौंदते हुए, मैं सिन्धु नदी के मिहराना नामक स्थान पर हूँ। खिलाफ़तकारों को बन्दी बना लिया गया है। अल्लाह की अनुकम्पा (महर) से काफिरों (भारतीयों) के दुर्गों को जीत लिया गया है। हमारे खजाने लबालब भर गये हैं। शिव स्थान और सीसम दुर्ग ले लिये गये हैं। काफिरों को या तो मुसलमान बना दिया गया है। या फिर खत्म कर दिया गया है। देव बुतों को चूर-चूरकर दिया गया है। तथा मन्दिरों के बदले मस्जिद बना दिये गये, मीनार खड़े किये गये, तथा खुतबा पढ़ा गया, अजान मंच बनाया गया ताकि मुकर्रर-वक्त पर इबादत की जा सके। यहाँ-रोज़ाना सुबह-शाम सर्वशक्तिमान की तकबीर और नमाज़ पढ़ी जाती है।”
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