अजय सिंह चौहान || भारत की प्राचीन वास्तुकला इतनी उन्नत हुआ करती थी कि हमारे लिए आज भी यह किसी देवीय चमत्कार से कम नहीं है। यह सच है कि प्राचीन भारतीय वास्तुकला के उदाहरणों को मुग़लकाल के उस काले अध्याय के कारण आज हम उत्तर भारत में नहीं देख पा रहे हैं, लेकिन, दक्षिण भारत के तमाम प्राचीन और ऐतिहासिक मठों एवं मंदिरों में ऐसे आश्चर्य आज भी सुरक्षित हैं।
दक्षिण भारतीय राज्य तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद से लगभग 105 किलोमीटर की दुरी पर नालगोंडा जिले में स्थित एक ऐसा ही अति प्राचीन मंदिर है जिसकी वर्तमान संरचना बारहवीं शताब्दी में यानी आज से करीब 800 वर्ष पूर्व चोल साम्राज्य के राजाओं के द्वारा निर्मित हुई थी। यह मंदिर “छाया सोमेश्वर महादेव मंदिर” के नाम से विश्व प्रसिद्ध है। आधुनिक विज्ञान के दौर में भी यह मंदिर किसी देवीय चमत्कार से कम नहीं है।
स्थानीय स्तर पर इस मंदिर को “त्रिकुटलायम” के नाम से भी पहचाना जाता है। लेकिन मुख्य रूप से इसको छाया सोमेश्वर महादेव मंदिर के नाम से ही पहचाना जाता है। इसका यह नाम इसलिए भी पड़ा है क्योंकि इस मंदिर का मुख्य आकर्षण इसमें स्थापित शिव लिंग पर पड़ने वाली एक अनंत छाया है, जो पूरे दिन हजारों पर्यटकों को आकर्षित करती है।
आश्चर्य की बात तो ये है कि इस मंदिर के मुख्य आकर्षण के तौर पर मंदिर के गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग पर पड़ने वाली छाया किसी पौराणिक रहस्य और देवीय चमत्कार से कम नहीं है। हालाँकि वास्तव में तो यह कोई चमत्कार नहीं बल्कि प्राचीन और वैदिक इंजीनियरिंग का छोटा सा उदारहण है। इसके अलावा मंदिर के स्तंभों पर रामायण और महाभारत की कथाओं के पात्रों को कुछ इस प्रकार से उकेरा गया है की वे आज भी जीवंत मालुम होते हैं।
वर्तमान दौर के कई देशी और विदेशी इंजीनियर तथा वैज्ञानिक छाया सोमेश्वर महादेव मंदिर की इस चमत्कारी इंजीनियरिंग और प्राचीन विज्ञान को रहस्यमयी इसलिए मानते हैं क्योंकि जिस स्तम्भ की परछाई शिवलिंग पर पड़ती है वह स्तम्भ कौन सा है इस बात को आज तक भी कोई नहीं जान पाया है। इसके इसी गुण के कारण इस मंदिर को “छाया सोमेश्वर महादेव” मंदिर के नाम से पुकारा जाता है।
दरअसल, “छाया सोमेश्वर महादेव मंदिर” की विशेषता यह है कि मंदिर के गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग पर मंदिर के सभामंडप में लगे किसी एक स्तम्भ की छाया पुरे दिन शिवलिंग पर रहती है। लेकिन हैरानी के साथ आश्चर्य भी होता है कि शिवलिंग पर पड़ने वाली यह छाया कैसे और कौन से स्तम्भ से बनती है इस बात को आज तक कोई नहीं जान पाया है।
अगर यहाँ हम धर्म की बात करें तो हमारे शास्त्र कहते हैं कि यह माता पार्वती हो सकती है, जो सदेव भगवान् शिव के साथ छाया बनकर रहतीं रहतीं हैं। आधुनिक विज्ञान इसे “डिफ्रैक्शन ऑफ़ लाइट” यानी प्रकाश के परिवर्तन के सिद्धांत से जोड़कर देखता है। यानी प्रकाश के मार्ग में यदि कोई अवरोध आ जाता है तो प्रकाश की किरणें उस अवरोध से टकरा कर अपना रास्ता बदल लेती हैं।
लेकिन यहाँ हम न तो शास्त्रों की बात कर रहे हैं और ना ही प्रकाश के उस सिद्धांत की। बल्कि यहाँ हम बात कर रहे हैं हमारी उस प्राचीन वास्तुकला और उन्नत इंजीनियरिंग की जो आज से 800 वर्ष पहले भी इतनी उन्नत हुआ करती थी कि उसने “डिफ्रैक्शन ऑफ़ लाइट” यानी प्रकाश के परिवर्तन के सिद्धांत को किसी ब्लैक बोर्ड पर या कागज़ पर नहीं बल्कि वास्तविक जीवन में व्यावहारिक रूप देकर दिखा दिया।
आश्चर्य तो इस बात का भी है कि डिफ्रैक्शन ऑफ़ लाइट को हमारे प्राचीन इंजीनियरों ने आज से 800 वर्ष पहले ही सबके सामने प्रैक्टिकल करके दिखा दिया था। यही कारण है कि “छाया सोमेश्वर महादेव मंदिर” का यह प्राचीन इंजीनियरिंग का कारनामा आज भी एक रहस्य और चमत्कार के तौर पर आधुनिक विज्ञान को चुनौति दे रहा है।
आधुनिक समय के कई देशी-विदेशी इंजीनियर तथा वैज्ञानिक छाया सोमेश्वर महादेव नामक इस प्रसिद्ध मंदिर में आकर अध्ययन कर चुके हैं और अधिकतर भौतिक विज्ञानी इस बात पर एकमत भी दीखते हैं कि इसका यह चमत्कार ज्यामिती के आधार पर है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि- “मंदिर की दिशा पूर्व-पश्चिम है, और इसके निर्माताओं और कारीगरों ने अपने प्रकृति ज्ञान के साथ-साथ वैज्ञानिक और ज्यामिती एवं सूर्य किरणों के परावृत्त होने के उस अदभुत ज्ञान का प्रयोग किया है। उन्होंने इसके हर एक स्तंभों की स्थिति कुछ ऐसी रखी है कि सूर्य किसी भी दिशा में हो, उसकी किरणें जब मंदिर के स्तंभों से टकराएगी तो वह परिवर्तित होकर छाया रूप में शिवलिंग पर बनी रहेगी।”
दरअसल, यहाँ इस छाया सोमेश्वर महादेव मंदिर की वास्तुकला का सबसे बड़ा आश्चर्य तो ये है कि इसके शिवलिंग पर जिस स्तम्भ की छाया पड़ती है, ऐसा कोई भी स्तम्भ शिवलिंग और सूर्य के बीच में है ही नहीं, और न ही मंदिर के गर्भगृह में भी ऐसा कोई स्तम्भ है जिसकी छाया शिवलिंग पर पड़ती है। वैज्ञानिक इस बात से हैरान हैं कि आज से 800 वर्ष पहले यह कैसे संभव था।
अगर हम मंदिर से जुडी नालगोंडा जिले की आधिकारिक वेबसाइट की जानकारी को आधार माने तो उसके अनुसार भी यह परछाई गर्भगृह के सामने बने अलग-अलग पिलरों का रिफलेक्शन है और इसके अलावा इसके सभी चार स्तंभों की परछाई हर समय एक ही जगह पर पड़ती है. जिसके कारण यहां शिवलिंग के ऊपर पिलर की परछाई दिखाई देती है।
आधुनिक समय के इंजीनियर और वैज्ञानिक इस बात से तो निश्चित रूप से सहमत हैं कि मंदिर के सभामंड़प में जो भी स्तम्भ हैं, उन्हीं के डिजाइन और स्थान कुछ इस प्रकार से निर्धारित किये गए हैं कि उनकी आपसी छाया और सूर्य के कोण के अनुसार ही एक ऐसे नए स्तम्भ की परछाई बन जाती है जो वास्तव में है ही नहीं। और वही छाया शिवलिंग पर आती है। लेकिन ये कैसे संभव है आज तक अनसुलझा रहस्य बना हुआ है।
यह मंदिर शानदार मूर्तिकला और वास्तुकला का अद्भुत एवं जीवंत उदाहरण है। इसकी कई प्राचीन मूर्तियाँ ऐसी हैं जो बहुत ही विशेष स्थान रखतीं हैं इसलिए उनके चोरी होने के डर से इनमें से अधिकतर मूर्तियों को यहां पास ही के “पचला सोमेश्वर स्वामी मंदिर” के परिसर में बने संग्राहलय में सुरक्षित रखवा दिया गया है।
अगर आप भी इस “छाया सोमेश्वर महादेव मंदिर” के दर्शन करना चाहते हैं तो यह मंदिर तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद से करीब 105 किलोमीटर की दुरी पर नालगोंडा जिले में स्थित है। जब आप नालगोंडा के पनागल बस अड्डे पर पहुँच जाते हैं तो वहाँ से यह मंदिर मात्र दो किलोमीटर की दुर रह जाता है।
अगर आप इस “छाया सोमेश्वर महादेव मंदिर” के लिए ट्रेन से जाना चाहते हैं तो सिकंदराबाद से नलगोंडा तक नियमित ट्रेन सेवाएं मिल जाती हैं। नलगोंडा से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस मंदिर के लिए स्थानीय लोकल सवारी या फिर टैक्सी आदि मिल जातीं हैं। इसके अलावा सड़क मार्ग से यहाँ तक जाने के लिए हैदराबाद से स्थानीय रोडवेज की नियमित बस सेवाएँ भी उपलब्ध हैं।
छाया सोमेश्वर महादेव का यह मंदिर नलगोंडा शहर से लगभग चार किलोमीटर, सूर्यापेट शहर से करीब 45 किलोमीटर और हैदराबाद से लगभग 105 किलोमीटर की दूरी पर पनागल नामक एक गाँव में स्थित है।
यह मंदिर 11वीं शताब्दी के मानव निर्मित उदयसमुद्रम नामक एक जलाशय के किनारे पर स्थित है। पनागल नामक यह गाँव दक्षिण भारत के लिए एक प्राचीन एवं ऐतिहासिक महत्त्व का स्थल रहा है।