दुनिया के सभी भाषा विज्ञानी और इतिहासकार एक स्वर में यही कहते हैं कि बिना ज्ञान, विज्ञान और बिना परिभाषा के कोई भी शब्द किसी भी सभ्यता का न तो हिस्सा बन सकते हैं और न ही उसके अस्तित्व में रह सकते हैं।
तभी तो यह 100 प्रतिशत सच है कि, यदि हमारे पूर्वजों को हवाई जहाज बनाना नहीं आता, तो हमारे पास “विमान” शब्द भी नहीं होता।
ये भी सच है कि यदि हमारे पूर्वजों को इलेक्ट्रिसिटी यानी की बिजली की जानकारी नहीं होती, तो हमारे पुराणों में “विद्युत” शब्द भी नहीं होता।
चलो मान लिया की “टेलीफोन” जैसी तकनीक भी हमारे प्राचीन भारत में नहीं थी, तो फिर “दूरसंचार” शब्द हमारे पास क्यों और कैसे आया?
हमारे पूर्वजों को एटम और इलेक्ट्रान की जानकारी भी नहीं थी, तो फिर हमारे पुराणों में अणु और परमाणु जैसे शब्द कहां से आ गए?
सर्जरी यानी ऑपरेशन का ज्ञान भी हमारे पूर्वजों को नहीं था, तो, “शल्य चिकित्सा” जैसा अति शुक्ष्म ज्ञान से भरा शब्द आज से हज़ारों साल पहले भारतीय वेदों और पुराणों में कहां से आया?
विमान, विद्युत, दूरसंचार, आणु, परमाणु आदि कई शब्द स्पष्ट प्रमाण हैं कि ये सारी शुक्ष्म और दुर्लभ तकनीकें सबसे पहले हमारे ही पास हुआ करती थीं ।
फिजिक्स और रसायन विज्ञान की शब्दावली के सारे शब्द आपको संस्कृत और हिन्दी में भी आसानी से मिल जाएंगे।
सौरमंडल में नौ ग्रह हैं और ये सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा लगा रहे हैं, यह ब्रह्ममांड अनंत विस्तार वाला है, और ये बात हमारे पूर्वज लाखों वर्षों से जानते हैं।
ये भी सच है कि 17वीं -18वीं सदी से पहले का कोई भी विदेशी व्यक्ति आपको साइंटिस्ट नहीं मिलेगा, क्योंकि इससे पहले यूरोप में विज्ञान इतना उन्नत था ही नहीं। उन्होंने यहाँ आकर ही विज्ञान को नज़दीक से जाना और समझा था।
ये भी सच है कि 17वीं से 18वीं सदी से पहले तक विज्ञान का कोई भी अविष्कार यूरोप में नहीं हुआ है। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत के कई अविष्कारों को चुरा कर वे लोग अपने देशों में ले गए और फिर वहां अपने नाम का ठप्पा लगाकर दुनिया को बताया।
साहित्य, इतिहास, धर्म, अध्यात्म और मनोविज्ञान पर शोध करने वाले अक्सर सभ्यताओं के अवशेष निकाल लेते हैं। फिर उन अवशेषों में वे अपने अपने अनुसार तोड़ मरोड़ करते हैं और उसका लाभ लेने के लिए नई नई परिभाषाएं बनाते रहते हैं। इसी प्रकार से पूरा इतिहास विकृत हो जाता है। भारत के साथ भी यही हुआ।
भारत से सिर्फ अपार धन – दौलत की ही लूट नहीं हुई, ज्ञान की भी खूब लूट हुई है। वेद और पुराण ही हमारा विज्ञान है और आज भी हमारे ऋषि ही हमारे वैज्ञानिक हैं।
– अमृति देवी