भारतीय जनता पार्टी अपने स्थापना काल से ही ‘कैडर बेस’ पार्टी रही है यानी पार्टी का ‘कैडर’ ही उसका मूल आधार रहा है। थोड़ा-बहुत अंतर के साथ कमोबेश आज भी वही स्थिति है। पार्टी का कैडर ‘डोर टू डोर’ संपर्क का अभ्यस्त रहा है और इसी कार्यप्रणाली के आधार पर भाजपा का घर-घर एक अपनत्व का रिश्ता रहा है। भाजपा सत्ता में आये या न आये, किंतु घर-घर से उसका रिश्ता सदैव रहा है। राष्ट्रहित एवं राष्ट्रवाद की बात जब भी आती है तो भाजपा का नाम बहुत आदर के साथ लिया जाता है किंतु बदलते वक्त के साथ जब से एकल परिवारों का प्रचलन बढ़ा है और संयुक्त परिवारों की परंपरा अनवरत कम होती जा रही है तब से लोग दाल-रोटी एवं परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति में ज्यादा व्यस्त हो गये हैं। सिर्फ व्यस्त ही नहीं हुए हैं बल्कि यूं कहा जा सकता है कि लोगों ने अपने आप को मशीन बना लिया है यानी यह कहा जा सकता है कि व्यस्तता के दौर में लोगों के पास ‘डोर-टू-डोर’ जाने का समय ही नहीं है। यदि कुछ लोगों के पास समय है भी तो वे कुछ करना ही नहीं चाहते, क्योंकि उनको लगता है कि संसाधनों के अभाव में उनके श्रम को सम्मान नहीं मिल पायेगा।
बहरहाल, परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों, रास्ता तो इसी में से निकालना होगा। चूंकि, आज का दौर सोशल मीडिया का है और पार्टी भी सोशल मीडिया पर बहुत विशेष रूप से ध्यान दे रही है। सोशल मीडिया के बारे में तो यहां तक कहा जा सकता है कि इसके बिना भाजपा ही क्या, सभी राजनीतिक दल, संस्थाएं एवं समाज रह ही नहीं सकते। इस संबंध में सीधे-सीधे मैं अगर यह कहूं कि ‘गदहे को घोड़ा’ बनाने की क्षमता आज की सोशल मीडिया में है तो कोई अति शयोक्ति नहीं होगी। वक्त जब इस प्रकार का हो तो पार्टी के नेताओं एवं कार्यकर्ताओं को अपनी भूमिका में थोड़ा और इजाफा करना होगा। हालांकि, मैं कोई नई बात नहीं बताने जा रही हूं, क्योंकि ऐसा कोई कार्य बचा ही नहीं है जो किसी न किसी रूप में पार्टी की कार्यप्रणाली में सम्मिलित न रहा हो। आवश्यकता सिर्फ इस बात की है कि पहले से चले आ रहे सभी कार्यों को समयानुसार परिष्कृत करते रहा जाये।
आज समय की मांग है कि समाज में जितने भी प्रकार के गैर राजनैतिक कार्यक्रम चाहे वे सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक या किसी भी प्रकार हों, उसमें पार्टी कार्यकर्ताओं को अपनी भागीदारी और अधिक बढ़ानी होगी, इससे भारतीय जनता पार्टी का न सिर्फ विस्तार होगा बल्कि पैठ भी बढ़ेगी, क्योंकि गैर राजनीतिक कार्यक्रम किसी न किसी रूप में सामाजिक चेतना के प्रतीक और जरूरत होते हैं। इन कार्यक्रमों में जब पार्टी के लोग जायेंगे तो उनके माध्यम से स्वतः पार्टी की उपस्थिति दर्ज होती रहेगी, इससे विचारधारा का भी विस्तार होगा।
उदाहरण के तौर पर देशभक्ति, राष्ट्र निर्माण एवं राष्ट्रवाद की जब बात आती है तो उसमें संघ परिवार एवं भाजपा का नाम बेहद सम्मान के साथ लिया जाता है। इससे संबंधित जब कोई कार्यक्रम होता है तो कार्यक्रम करवाने एवं उसमें अतिथि के तौर पर भाजपा के लोग ही पहली पसंद होते हैं। ‘मेरी माटी-मेरा देश’ कार्यक्रम को इसी रूप में लिया जा सकता है। भारत वैसे भी उत्सवों एवं पर्वों का देश है। पर्वों, उत्सवों, रहन-सहन एवं रीति-रिवाजों के माध्यम से लोगों को कठिन से कठन परिस्थितियों से निकलने में रास्ता मिलता है। पार्टी के संगठन से संबंधित गतिविधियों के अतिरक्ति यदि कार्यक्रर्ता इस प्रकार के कार्यक्रमों में जुड़ेंगे तो पार्टी की नींव और विचारधारा और अधिक मजबूत होती जायेगी और इससे कार्यकर्ताओं में संस्कार भी बढ़ेगा। इसे एक उदाहरण के द्वारा और अधिक अच्छे से समझा जा सकता है।
वर्तमान परिस्थतियों में यदि आधी रात को किसी गांव, बाजार या गली-मोहल्ले में किसी अन्य पार्टी के कार्यकर्ता जाकर ‘भारत माता की जय’ एवं ‘वंदे मातरम्’ के नारे लगाने लगें तो बिना देखे, जाने-समझे एवं पता लगाये प्रारंभ में लोग यही कहेंगे कि लगता है संघ या भाजपा वाले आ गये। लोगों के ऐसा बोलने के पीछे कुछ ठोस आधार हैं जो अन्य दलों के लिए नहीं हैं। कहने का आशय यही है कि जब इस प्रकार के कार्यकमों में पार्टी कार्यकर्ताओं की आवाजाही और भूमिका बढ़ेगी तो जाने-अंजाने में निश्चित रूप से इसका लाभ भाजपा को ही मिलेगा।
होली, दीपावली, दशहरा, दुर्गा पूजा, गणेश पूजा, मकर संक्रांति सहित पूरे देश में विभिन्न रूपों में जितने भी पर्व मनाये जाते हैं, उनमें से अधिकांश भारतीय जनता पार्टी की तासीर यानी मिजाज से मेल भी खाते हैं। इस प्रकार के छोटे-छोटे कार्यक्रमों में जब पार्टी के कार्यकर्ताओं की उपस्थिति बढ़ेगी तो घोषित एवं अघोषित रूप से पार्टी का ही प्रतिनिधित्व माना जायेगा। कहने के लिए भले ही कहा जाता है कि गैर राजनीतिक कार्यक्रमों में राजनीति नहीं होनी चाहिए किंतु अधिकांश गैर राजनीतिक कार्यक्रमों में किसी न किसी रूप में राजनीति आ ही जाती है, चाहे वह कम हो या अधिक। राजनीतिक दल अपने लाभ एवं विचारधारा के अनुसार आम जनता को अपनी तरफ मोड़ने एवं खींचने का चाहे जितना भी प्रयास कर लें या समझा लें किंतु आम लोग उन्हीं कार्यक्रमों को पसंद करते हैं, जिससे उनकी भावना जुड़ी होती है।
यानी इसे यूं भी कहा जा सकता है कि गैर राजनीकि कार्यक्रम सही अर्थों में समाज का आईना होते हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी जब किसी रामलीला में जाकर रावण के पुतले पर बाण चलाते हैं तो उससे यह संदेश जाता है कि प्रधानमंत्री किसी भी बुराई को सहन करने वाले नहीं हैं, क्योंकि रावण का पुतला आम लोगों की नजर में सर्वदृष्टि से बुराइयों का प्रतीक है। इसका अंत होना ही चाहिए।
इसी प्रकार सभी कार्यक्रमों का अपना एक संदेश होता है, भारतीय जनता पार्टी के मिजाज के मुताबिक अधिकांश व्रत, त्यौहार एवं उत्सव मेल खाते हैं। ऐसे कार्यक्रमों में भाजपा कार्यकर्ताओं की उपस्थिति पार्टी के जनाधार में सर्वदृष्टि से चार चांद लगाने का ही काम करेगी। सोशल मीडिया के दौर में अपनी नीतियों एवं विचारधारा का प्रचार-प्रसार गैर राजनीतिक कार्यक्रमों के माध्यमों से और अधिक किया जा सकता है। सोशल मीडिया का प्रभाव आज नेटवर्किंग कंपनियों की तरह है जो लगातार मल्टीप्लाई होता जाता है। इन बातों को ध्यान में रखकर यदि पार्टी और अधिक आगे बढ़ती है तो निश्चित रूप से आगे बढ़ती ही जायेगी। इसके साथ ही अपने पुराने तौर-तरीकों को भी मजबूती से पकड़े रखने एवं उसे चलाये रखने की निरंतर आवश्यता है।
– हिमानी जैन, मंत्री- भारतीय जनता पार्टी, दरियागंज मंडल, दिल्ली प्रदेश