अजय सिंह चौहान || सवर्णों में एक वर्ग या जाति है ब्राह्मण। हिंदु समाज का प्राचीन और आधुनिक इतिहास देखें तो ब्राहमण हमेशा से याचक रहा है। पहचान के मुताबिक याचक ब्राह्मण ने कभी भी अपने लिए न तो संपत्ति का अर्जन किया और न ही किसी लालच में रहा। क्योंकि याचक का अर्थ ही है मांगने वाला, अर्थात भिक्षा मांग कर अपनी जीविका चलाने वाला और अपने संपूर्ण समय को सनातन पर सतत शोध करते रहना और उसी शोध के आधार पर ग्रंथों की रचना करना और उनका प्रचार करने वाला ब्राह्मण। ब्राह्मण का आज तक का इतिहास रहा है कि उसे कभी भी किसी जाति विशेष से द्वेष नहीं रहा। क्योंकि ब्राह्मण ने मात्र शास्त्रों को ही जीवन का आधार माना और सर्वसमाज के हीत में उनका प्रचार-प्रसार किया। यही कारण था कि ब्राह्मण को हर युग में दान-दक्षिणा के आधार दम पर ही जीवनचर्या चलाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था।
लेकिन, वर्तमान दौर की आम बोलचाल वाली और राजनीतिक भाषा में कहें तो वही याचक ब्राहमण आज एक भिखारी, भिखमंगा, लालची, ढोंगी और न जाने क्या-क्या बन कर रह गया है। लेकिन, जो लोग आज ब्राहमण पर इस प्रकार के लांछन लगाकर उसका उपहास उड़ाते और उस पर लांछन लगाते हैं उन्होंने या आज के एक आम हिंदू ने भी, कभी उन्हीं ब्राहमणों के उस प्राचीन और मध्य युगीन इतिहास को न तो खंगालने का प्रयास किया है और न ही उन ब्राहमणों के संघर्ष को अब तक जाना है। जबकि हिंदु समाज का वही प्रमुख तबका जिसको हम ब्राहमण के रूप में जानते हैं चुनावों का मौसम आते ही उसे राजनीतिक तौर पर विशेष चर्चा का विषय बना दिया जाता है।
ब्राह्मण समाज पर आज से ही नहीं बल्कि सदियों से राक्षस, पिशाच, दैत्य, यवन, मुगल, अंग्रेज, कांग्रेस, सपा, बसपा, वामपंथी, संघ, भाजपा तथा अन्य राष्ट्रीय तथा क्षेत्रिय पार्टियां तथा अन्य विरोधी जातियां एवं समाज आक्रमण करते आ रहे हैं। सबके सब मिलकर ब्राह्मणों पर यही आरोप लगाते आ रहे हैं कि उन्होंने समाज को जातियों में बांटा है। जबकि सच इसके एक दम विपरित है। हालांकि, बावजूद इसके आज एक आम सवर्ण हिंदू को इस बात से कोई सरोकार नहीं रह गया है, क्योंकि सवर्ण हिंदू तो अब कमाने और खाने में इतना व्यस्त हो चुका है कि उसके आस-पास क्या हो रहा है इससे वह एक दम अनजान है।
इतिहास साक्षी है कि विदेशी मानसिकता से ग्रसित कुछ चतुर और लालची राजनीतिज्ञों तथा वामपंथी विचारकों ने ब्राह्मणों के विरुद्ध हर बार झूठा इतिहास तथा काल्पनिक साहित्य चरवा कर उसमें गलत तरीके से तथ्य पेश किये हैं। आजादी के बाद शत-प्रतिशत विदेशी मानसिकता से ग्रसित कुछ चतुर और चालाक लोगों के द्वारा इतिहास की रचना करवा कर, विदेशों से संचालित षड्यंन्त्रों के तहत देश में न सिर्फ ब्राह्मणों के विरुद्ध बल्कि संपूर्ण सवर्णों के विरुद्ध भी भ्रम फैलाने लगे।
जबकि सबसे प्राचीन ग्रंथ वेद जो अपौरुषेय है और जिसका संकलन वेद व्यास जी द्वारा किया गया, जो मल्लाहिन के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। महाभारत, गीता तथा 18 पुराण आदि सभी व्यास जी द्वारा रचित हैं। इन सभी ग्रंथों में वर्णव्यवस्था और जाति व्यवस्था को विस्तार से दर्शाया गया है। आश्चर्य है कि इतने प्रमुख ग्रंथों की रचना करने वाले व्यास ब्राह्मण वंश से नहीं थे। ठीक इसी प्रकार से कालीदास आदि कई कवि जो वर्णव्यवस्था और जातिव्यवस्था के पक्षधर थे किन्तु जन्मजात ब्राह्मण नहीं थे।
ऐसे में प्रश्न यहां ब्राह्मण विरोधियों से यही उठता है कि- किसी भी एक ऐसे ग्रन्थ का नाम तो बताओ जिसमें आज की जाति व्यवस्था को लेकर कुछ लिखा गया हो और वो भी किसी ब्राह्मण ने लिखा हो। संभव है कि ऐसा कोई भी ग्रंथ नहीं मिलेगा। और यदि कोई मनु स्मृति का नाम लेता है तो उनके लिये भी यहां ये बात जान लेनी चाहिए कि मनु स्मृति के लेखक मनु महाराज थे, जो कि क्षत्रिय कुल से थे। रही बात ब्राह्मणों की तो ब्राह्मणों ने इस दुनिया को जो ज्ञान दिया हैे उसके बारे में भी जान लेना चाहिए।
ज्ञान के आधार पर ब्राह्मणों की देन जितने ग्रंथ हैं वे कुछ इस प्रकार से हैं-
– वैमानिक शास्त्रम् (विमान बनाने हेतु तकनीकि ज्ञान) – भरद्वाज।
– यन्त्रसर्वस्वम् (इंजीनियरिंग का आदि ग्रन्थ) – भरद्वाज।
– चरकसंहिता (चिकित्सा संबंधी) – चरक।
– सुश्रुतसंहिता (सर्जरी चिकित्सा का ज्ञान) – सुश्रुत।
– आर्यभटीयम् (गणित)-आर्यभट्ट ऐसे ही छन्दशास्त्र, नाट्यशास्त्र, शब्दानुशासन, परमाणुवाद, खगोल विज्ञान, योगविज्ञान सहित।
– अर्थशास्त्र (जिसमें सैन्यविज्ञान, राजनीति, युद्धनीति, दण्डविधान, कानून आदि कई महत्वपूर्ण विषय है) – कौटिल्य।
ऐसे महान ब्राह्मणों पर कई प्रकार से आक्रमण करते आ रही विभिन्न प्रकार की मानसिकताओं में राक्षस, पिशाच, दैत्य, यवन, मुगल, अंग्रेज, तथा वर्तमान राजनीतिक पार्टियों तक के समस्त समाज तथा वर्गों को और विशेषकर हिंदू समाज से आने वाले आज के सवर्ण हिंदू वर्ग को यह बात अच्छी तरह से सोचना चाहिए कि ये वही ब्राह्मण हैं जिन्होंने स्वयं के लिए नहीं बल्कि प्रकृति और मानव कल्याण हेतु समस्त विद्याओं का संचय, अनुसंधान एवं प्रयोग आदि करने हेतु अपना पूरा जीवन घने और भयानक जंगलों में, घोर दरिद्रता में तथा राक्षस प्रवृत्तियों का सामना करते हुए बिताया। ऐसे में उनके पास दुनिया में व्याप्त तमाम प्रकार की मोहमाया से लगाव और प्रपंच हेतु समय ही नहीं बचता था? वे चाहते तो अपने ज्ञान और विज्ञान के दम पर संपूर्ण पृथ्वी पर राज कर सकते थे।
आश्चर्य है कि संसार की समस्त विद्याओं में प्रवीण होते हुए और सर्वशक्तिमान होते हुए भी ब्राह्मणों ने पृथ्वी का भोग करने हेतु गद्दी को कभी भी स्वीकार नहीं किया। यह भी आश्चर्य है कि संसार को इतना सब कुछ देने के बाद भी अपने लिए ब्राह्मण ने अपने लिए कुछ भी लालसा नहीं पाली और अपने स्वयं के लिए एक कुटीर के अलावा और कोई राजसी निवास की अभिलाषा भी नहीं रखी। जबकि अनादिकाल से ब्राह्मण यही चाहता रहा है कि राष्ट्र शक्तिशाली बने, अखण्ड रहे, न्याय व्यवस्था सुदृढ़ हो तथा विश्व में शांति का माहौल रहे।
यहां हमें इस एक श्लोक से इस बात का पता चलाता है कि ब्राह्मणों ने किस प्रकार से समस्त प्रकृति के लिए प्रार्थना की है-
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्।।
वृहदारण्यक उपनिषद् से लिया गया यह श्लोक बताता है कि इस पृथ्वी पर रहने वाले सभी लोग प्रसन्न रहें, स्वस्थ रहें, सबका भला हो, किसी को भी कोई दुख न हो, विश्व में शांति रहे।
इस प्रकार से विश्व शांति का मन्त्र देने वाला और वसुधैव कुटुम्बकम् का पालन करने वाला ब्राह्मण, सर्वदा अपने कांधे पर जनेऊ, कमर में लंगोटी बांधे, एक गठरी में लेखनी, मसि (स्याही), पत्ते, कागज और पुस्तकें आदि लिए चरैवेति-चरैवेति यानी कि आगे को बढ़ते रहने का अनुसरण करता आ रहा है। ब्राह्मण के मन में इसका कारण मात्र एक ही रहा, और वो है- लोक कल्याण।
हालांकि, ये भी सच है कि लोक कल्याण हेतु मात्र ब्राह्मणों ने ही अनादिकाल से यह कार्य किया हो, बल्कि इसमें अन्य कई ऋषि, मुनि, विद्वान, महापुरुष तथा अन्य अनगिनत वर्णों के भी महापुरूष भी ऐसे हुए हैं जिनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। किन्तु यहां हम ब्राह्मण के विषय में इसलिए बात कर रहे हैं क्योंकि जिस देश की शक्ति के संचार में ब्राह्मणों के त्याग और तपस्या का इतना बड़ा योगदान रहा वह आज उन्हीं ब्राह्मणों को दुत्कार रहा है। जिस ब्राह्मण ने मुगलों यवनों, अंग्रेजों और राक्षसी प्रवृत्ति के लोंगों का भयानक अत्याचार सहकर भी सनातन की संस्कृति और सभ्यता के ज्ञान को बचाए रखा उसी ब्राह्मण का अस्तित्व आज संकट के घेरे में आ चुका है।
आज हम जैसे आम आदमी को भी इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि जिस दौर में वेदों और शास्त्रों को जब जलाया जा रहा था उस दौर में भी ब्राह्मणों ने अपने कर्तव्य और अपनी परंपरा को न भूल कर पूरे के पूरे वेद और शास्त्रों को कण्ठस्थ करके श्रुति और स्मृति को आधार बनाकर न सिर्फ बचा लिया बल्कि उनकी पुर्नरचना भी कर डाली। आज भी वे इसे उसी आधार पर अपनी नई पीढ़ी में संचारित करने का प्रयास कर रहे हैं। ब्राह्मण अनादिकाल से हमारे धर्म और संस्कृति की रक्षा करने का कर्तव्य निभाता आ रहा है। ऐसे में एक आम हिंदू को भी सोचना चाहिए कि ऐसा ब्राह्मण भला एक सामान्य व्यक्ति कैसे हो सकते है?
राजनीतिक तौर पर आज ब्राह्मण को तुच्छ समझा जा रहा है और उसे हीन दृष्टि से देखा जा रहा है और संवैधानिक तौर पर उन्हें सामान्य जाति का बतलाकर आज आरक्षण के नाम पर उन्हें सभी प्रकार की सरकारी सुविधाओं से वंचित रखा जा रहा है। समय आ गया है कि इसके पीछे के षड्यंत्र को एक आम हिंदू ने समझ लेना चाहिए। लेकिन, न जाने आज एक आम हिंदू को इस बात का आभाष ही क्यों नहीं हो पा रहा है कि वह ब्राह्मण के गुणों और उसके योगदान को न सिर्फ नकार रहा है बल्कि उससे दूरी भी बनाता जा रहा है।
आज के दौर में जब ब्राह्मणों को उनका अपना सवर्ण समाज ही नकारता रहा है तो ऐसे में सवाल उठता है कि वे अपनी रोजी-रोटी कैसे चलायें? आज जबकि सामान्य वर्ग के साथ-साथ ब्राह्मणों को भी पढ़ाई या अन्य कार्यों के लिए अन्य वर्गों से अधिक धन का खर्च करना पड़ता है तथा अन्य प्रकार की सरकारी सुविधाओं से वंचित रहना पड़ता है, जबकि अल्पसंख्यक के नाम पर या गरीब के नाम पर कुछ अन्य वर्गों को अब एक परंपरागत तरीके से भरपूर सहायताएं दी जा रही हैं, भले ही फिर वे अल्पसंख्यक इसके योग्य हो या न हों।
यहां हम किसी जाति के विरोधी नहीं, लेकिन, किसी सामान्य या ब्राह्मण वर्ग से भेद-भाव के विरूद्ध बात कर रहे हैं। और यह बात हमें इस कारण से भी करनी पड़ रही है क्योंकि एक ब्राह्मण या सामान्य वर्ग के लिए ंदेश की कोई भी सरकार, किसी तरह का कोई रोजगार और न ही कोई अन्य सुविधाएं दे रही है। लेकिन, जब चुनावों का समय आता है तो देश के हर क्षेत्र में गरीबी से नहीं बल्कि जातिवाद के आधार पर चुनाव लड़े जाते हैं, और यही कारण है कि ब्राह्मण समाज को किसी भी चुनावी एजेंडे में कोई स्थान नहीं दिया जाता।
वर्तमान राजनीतिक दौर में एक परंपरागत ब्राह्मण समाज के साथ आज ऐसी विडंबना या समस्या आ कर जुड़ चुकी है कि वह चाहते हुए भी अपनी रोजी-रोटी चलाने के लिए चाहे कितना भी विवश क्यों न हो मगर आज भी वह अपने स्वभाव और धर्म से विपरित कई प्रकार के व्यवसायों में नहीं जा सकता। जबकि जिस सवर्ण समाज को उसने अब तक उसकी अपनी जड़ों से जोड़े रखा और सांस्कृतिक तौर पर संभाले रखा और अपने दम पर हिंदू बनाये रखते हुए उसका अस्तित्व बचाये रखा, वही सवर्ण समाज अपनी रोजी-रोटी चलाने के लिए या फिर अपनी तिजोरियों को भरने के लालच में आज बिना सोचे-समझे मुर्गीपालन, सूअरपालन, मछलीपालन, कबूतरपालन, पोल्ट्रीफार्म, अण्डा, मांस, बकरी, गदहा, ऊंट, शराब बनाना-बेचना आदि में व्यस्त हो चुका है और ब्राह्मण समाज को अकेला छोड़ दिया है। जबकि आज भी ब्राह्मण का कर्तव्य और धर्म इन सब व्यवसायों तथा गतिविधियों की अनुमति नहीं देता। लेकिन, यह भी सच है कि जिस किसी दिन भी, ब्राह्मण समाज ने इन सब व्यवसायों को अपना लिया, समझो उसी दिन हिंदू और हिंदुत्व समाप्त हो चुका होगा और फिर भारत भूमि तो रहेगी मगर यहां भारतीय नहीं रहेंगे।
ब्राह्मण समाज के साथ वर्तमान में एक अन्य समस्या यह भी आ रही है कि यदि वह शारीरिक श्रम करना चाहता है तो उसे मजदूरी मिलना मुश्किल हो जाता है। इसके पीछे का एक कारण यह भी है कि सवर्ण वर्ग आज भी ब्राह्मण से सेवा कराना उचित नहीं समझते, जबकि दूसरा पहलू यह है कि वही सवर्ण वर्ग उसकी आर्थिक सहायता करने में कंजूसी भी करता है। ऐसे में ब्राह्मण को अपने जीवनयावन के लिए अन्य कई प्रकार से समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
ब्राह्मण समाज के अधिकांश युवा आज पलायन करते जा रहे हैं और देश के कई महानगरों में छोटी-छोटी नौकरियां करने पर विवश हो चुके हैं जिसमें लेबर का काम, चैकीदारी, कुरिअर बाॅय, रिक्शा चलाना, छोटी-छोटी दुकानों में नौकरी आदि के जरिए अपना पेट भर रहे हैं। हैरानी तो इस बात की है कि ब्राह्मण समाज को यहां भी अनेकों प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इन समस्याओं के पीछे उनके लिए माथे का तिलक, गले की माला, जनेऊ, चोटी, भगवा पहनावा, मांस-मदिरा, अपशब्दों से परहेज तथा अपने ज्ञान को दबाकर रखने की चुनौति सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है। और यदि वे ऐसा नहीं करते तो उनको उपहास का पात्र बनना पड़ता है। और आज यह एक आम बात हो चुकी है।