अजय सिंह चौहान || श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर (Somnath History) हिंदू धर्म और आस्था से जुड़े महत्वपूर्ण स्थानों में से एक है। इस महत्वपूर्ण स्थान से जुड़े इतिहास पर गौर करें तो पता चलता है कि अत्यंत वैभवशाली और धन-संपदा से समृद्ध होने के कारण ही इतिहास में यह लगभग 17 बार मुगल लुटेरों के द्वारा लुटा गया और तोड़ा गया और अपमानित हुआ। लेकिन, हर बार हिंदू राजाओं के द्वारा इसका पुनर्निर्माण भी करवाया गया।
श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर की सबसे खास बात यह रही कि यह मंदिर इतनी बार नष्ट होने और लूटने के बाद भी हमेशा धन-संपदा से समृद्ध होता रहा और आज भी है, जबकि इसको बार-बार निशाना बनाकर लुटने वाले उन्हीं मुगलों के वंश का आज पता ही नहीं चल पा रहा है कि वे कहां हैं और किस हाल में हैं या फिर वे समाप्त हो चुके हैं।
पुराणों और शास्त्रों के अनुसार श्री सोमनाथ (Somnath History) जी का जो सर्वप्रथम मंदिर बनाया गया था वह स्वयं चंद्रदेव ने बनवाया था और वह मंदिर पूर्ण रूप से सोने की एक संरचना के रूप में बना था। पवित्र 12 ज्योतिर्लिंगों में प्रथम स्थान रखने वाले श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर का जितना महत्व है उससे भी कहीं अधिक और बड़ा है इस ज्योतिर्लिंग मंदिर से जुड़ा इसका पिछले पंद्रह सौ सालों का इतिहास।
मध्य युगिन इतिहास में सोमनाथ मंदिर (Somnath History) पहली बार किस समय में बना इसके बारे में कोई स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं है। लेकिन उस समय के मंदिर की जीर्णशीर्ण अवस्था को देखते हुए सन 649 ईसवी में वल्लभी के मैत्रक राजाओं ने उसी स्थान पर एक नए और भव्य मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था। जबकि आठवीं सदी के प्रारंभ में सिन्ध के अरबी सुल्तान जुनायद ने इस मंदिर में लुटपाट के इरादे से यहां के लिए अपनी विशाल सेना भेजी थी। जुनायद की सेना ने न सिर्फ इस मंदिर को लुटा बल्कि उसमें बड़े पैमाने पर तोड़फोड़ भी की। इस लुटपाट के बाद प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ईसवी में उसी स्थान पर इसका पुनर्निर्माण करवाया दिया, और जल्दी ही यह मंदिर भी एक बार फिर धन-धान्य से संपन्न हो गया। उस मंदिर की ख्याती दूर-दूर तक फैल चुकी थी।
अरब की ओर से आये अल-बरुनी नामक एक फारसी विद्धान ने अपने यात्रा वृतान्त में इस मंदिर की भव्यता और इसके धन-धान्य से भरपूर होने का विस्तृत विवरण अपनी उस यात्रा के वृतांत में किया जिसे आज भी पढ़ा जा सकता है। उसी विवरण से प्रभावित होकर अफगानिस्तान के गजनी देश के सुल्तान महमूद गजनवी ने सन 1026 ईसवी में अपने भारीभरकम दलबल के साथ सोमनाथ मंदिर पर हमला किया था।
उस समय के एक इतिहासकार उतबी ने भी अपनी ‘किताब-ए-यामिनी’ में गजनवी के द्वारा सोमनाथ मन्दिर पर किए गए आक्रमणों के बारे में लिखा है। उतबी की लिखी किताब से यह भी मालुम होता है कि वह मंदिर एक आलिशान इमारत थी और उसमें भरपूर मात्रा में कीमती रत्नों और सोने-चांदी का प्रयोग किया गया था। इस हमले के विषय में कहा जाता है कि लुटेरे गजनी और उससे पहले भी जो हमलावर हुए, वे भी इसमें लगे दरवाजों तक को अपने साथ ले गए थे।
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गजनवी के हाथों लूटे और टूटे और खंडित हुए श्री सोमनाथ मंदिर (Somnath History) को राजा भीमसेन के द्वारा फिर से एक नया रूप दिया। परमार राजा भोज और सोलंकी राजा भीमसेन ने मिलकर सन 1026 से सन 1042 के बीच इसका पुनर्निर्माण करवाया। कहा जाता है कि लकड़ियों की सहायता से मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया गया था, लेकिन बाद में कुमारपाल ने इसे बदलकर पत्थरों का बनवा दिया था। इसके बाद सिद्धराज जयसिंह की तरफ से भी सन 1093 में मंदिर की पवित्रता और प्रतिष्ठा में भरपूर सहयोग दिया गया। सन 1168 ईसवी में भी विजयेश्वर कुमारपाल और सौराष्ट्र के राजा खंगार के द्वारा भी सोमनाथ मन्दिर का सौन्दर्यीकरण करवाया गया।
यह मंदिर हमेशा से ही अपनी अपार धन-संपदा और कीमती आभूषणों के लिए अन्य मंदिरों से अधिक प्रसिद्ध रहा है। अलबेरुनी और मार्कोपालो ने सोमनाथ मंदिर का जो वर्णन किया उसके अनुसार यह मंदिर अति समृद्ध था। मंदिर के गर्भगृह में हीरे जवाहरत की भरमार थी। मंदिर में अनेकों सोने की मूर्तियां थीं। एक हजार से भी अधिक पूजारी भगवान की पूजा में हमेशा रहते थे। मंदिर के रखरखाव के लिए दस हजार गांव थे। अभिषेक का जल गंगा नदी से और कमल के पुष्प हमेशा कश्मीर से ही आते थे। और शायद इसी कारण से इस मंदिर पर मूगलों, आक्रांताओं और विदेशी लूटेरों की बूरी नजर बार-बार पड़ती रही।
इस मंदिर का एक बहुत ही बड़ा दुर्भाग्य रहा कि यहां बार-बार मूगलों के आक्रमण होते रहे, मंदिर टूटता रहा और बार-बार बनता भी रहा। ऐसे में कहा जा सकता है कि सोमनाथ मंदिर, प्रतीक है पुनर्निर्माण की उस शक्ति का जो हमेशा विनाश की शक्ति से अधिक पवित्र होती है।
मंदिर के उसी दुर्भाग्य की कड़ी में सन 1297 इसवी में अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नुसरत खां ने सोमनाथ मंदिर को एक बार फिर अपवित्र कर दिया और भारी तोड़-फोड़ करने के बाद पवित्र शिवलिंग को भी खंडित कर दिया।
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हर बार की तरह इस बार भी अलाउद्दीन खिलजी के द्वारा तोड़े गये उस सोमनाथ मंदिर को हिंदू राजाओं ने इसकी पवित्रता और शान को बनाए रखने के लिए मंदिर को अलिशान और भव्य बनवा दिया। इस प्रकार से सोमनाथ मंदिर को मुगल अक्रांताओं द्वारा लुटने और हिंदू राजाओं द्वारा बनवाने का क्रम चलता रहा। और उस क्रम में एक बार फिर सन 1395 ईसवी में सुल्तान मुजफ्फरशाह ने भी मंदिर को जम कर लूटा। इसके बाद 1413 ईसवी में उसके पुत्र अहमदशाह ने भी यहां भयंकर उत्पात मचाया।
सोमनाथ मंदिर से जुड़ा औरंगजेब का इतिहास बताता है कि उसके काल में सोमनाथ मंदिर को दो बार तोड़ा गया था, जिसमें पहली बार सन 1665 ईसवी में इस मंदिर में लुटपाट के बाद भारी उत्पात मचाया गया और यहां होने वाली पूजा-पाठ को पूरी तरह से बंद करवा दिया। और दूसरी बार जब औरंगजेब को खबर मिली कि हिंदू अब भी उस स्थान पर पूजा-अर्चना करने आते हैं तो उसने 1706 ईसवी में वहां दौबारा हमला करवा के कई श्रद्धालुओं को कत्ल करवा दिया और उसके आदेश के अनुसार उस स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण करवा दिया।
सन 1706 में औरंगजेब के द्वारा करवाया गया इस मंदिर पर आखिरी और अब तक का 17वां हमला था। पिछले 1500 सौ सालों के इतिहास में इस मंदिर ने अनेकों उतार-चढ़ा देखे और तब न जाने कितनी बार यह अपवित्र भी हुआ और न जाने किता धन यहां से अरब की ओर ले जाया गया। बावजुद इसके आज तक वे लोग भूखे-नंगे ही हैं, जबकि सोमनाथ मंदिर अब भी उसी भव्य और दिव्य रूप में खड़ा है।
समय और इतिहास आगे बढ़ता गया। धीरे-धीरे मराठाओं की ताकत के आगे मुगल अक्रांताओं और लूटेरों की सल्तनत कमजोर होती गई। भारत का बड़ा हिस्सा अब मराठों के अधिकार में आ चुका था। सन 1782-83 ईस्वी में गुजरात पर मराठाओं का कब्जा होने के बाद इन्दौर की मराठा रानी अहिल्याबाई के सामुहिक सहयोग और प्रयासों से सन 1783 में इस मंदिर की फिर से मरम्मत कराई गई। महारानी अहिल्याबाई ने मूल मंदिर के सामने भूगर्भ में एक नया मंदिर बनवा दिया ताकि शिव पूजन की परंपरा को सुरक्षित रखा जा सके।
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सन 1783 में जिस मंदिर को मराठाओं ने खड़ा किया था उसमें भी अब बड़े पैमाने पर मरम्मत की आवश्यकता थी। सन 1947 में सरदार वल्लभभाई पटेल आजाद भारत के पहले गृहमंत्री बने। ऐसे में जब सरदार पटेल और कन्हैयालाल मानकलाल मुंशी सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण के प्रस्ताव के साथ मोहनदास करमचंद गांधी के पास पहुंचे तो गांधी ने इस कदम का स्वागत तो किया लेकिन सुझाव दिया कि मंदिर किसी भी प्रकार से सरकारी अनुदान के बिना ही बनाया जाना चाहिए, और उसमें लगने वाला धन जनता से ही एकत्र किया जाय।
सरदार पटेल ने सोमनाथ मंदिर (Somnath History) गए प्राचीन मंदिर के उन अवशेषों को देखा और वहीं से इसके पुनर्निर्माण को मंजूरी भी दे दी। ध्यान रहे कि यह वही मोहनदास करमचंद गांधी थे जिन्होंने पाकिस्तान के हक में कई बड़े फैसले लिए, उसे करोड़ों रुपये दिये, लेकिन, सोमनाथ मंदिर के लिए एक रुपया भी सरकारी अनुदान में न लेने को कहा था।
जल्दी ही सरदार पटेल का निधन हो गया और मंदिर के पुनर्निर्माण की जिम्मेदारी गुजरात के ही श्री कन्हैयालाल मानकलाल मुंशी ने संभाल ली। अक्टूबर 1950 में मंदिर निर्माण का कार्य शुरू किया गया और उस जगह पर औरंगजेब द्वारा बनवाई गई मस्जिद को भी वहां से कुछ किलोमीटर दूर स्थानांतरित करवा दिया गया। सन 1962 में मंदिर पूरी तरह से बनकर तैयार हो गया। सात मंजिलों वाले वर्तमान सोनाथ मंदिर का निर्माण कैलाश महामेरुप्रासाद के रूप में किया गया है। यह मंदिर नया जरूर है लेकिन प्राचीनतम नागर शैली में ही इसका भी निर्माण हुआ है। 72 स्तंभों वाले इस मंदिर की विशेषता यह है कि करीब 800 सालों बाद नागर शैली से निर्माण हुआ यह प्रथम देवालय है।
इस संसार में हिंदू धर्म के अलावा शायद ही कोई अन्य देश या धर्म ऐसा होगा जिसकी संस्कृति ने पिछले 1500 सालों तक मात्र पतन ही झेला हो, और झेली हों अनेकों प्रकार की विपत्तियां। तभी तो भारत के प्रथम राष्ट्रपति डाॅ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था कि- ‘‘पवित्र हिंदू धर्म और इसके पवित्र मंदिरों के विषय में गर्व से कहा जा सकता है कि यह धर्म और इसके मंदिर, प्रतीक है पुनर्निर्माण की उस शक्ति का जो हमेशा विनाश की शक्ति से अधिक पवित्र होती है।’’
ऐसे में हम सब के मन में यही सवाल उठता है कि आखिर क्यों सोमनाथ मन्दिर (Somnath History) बार-बार ध्वस्त होता रहा? अनेकों अक्रांताओं की कू-दृष्टि इस पर पड़ी, कई लूटेरों ने यहां उत्पात मचाया, कई बार इस मंदिर में खुनखराबा हुआ। कई बार यह पवित्र ज्योतिर्लिंग अपवित्र और खंडित हुआ। कई बार मूल मन्दिर के ध्वस्त होने के कारण ज्योतिर्लिंग की पूजा बन्द कर दी गई। क्यों यह मंदिर लगभग 17 बार नष्ट किया गया है और हर बार इसका पुनर्निमाण करवाया गया?
श्री सोनाथ मंदिर के अति प्राचीन दौर की बात करें तो पुराणों में उल्लेख मिलता है कि, सतयुग में चंद्र देव यानी स्वयं चंद्रमा ने यहां स्वर्ण या सोने का मंदिर बनवाया था। त्रेता युग में स्वयं रावण ने यहां चांदी का मंदिर बनवाया था, और द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने यहां चंदन की लकड़ी से भगवान सोमनाथ जी का मंदिर बनवाया था।
मध्य युग के प्रारंभकाल में भी यह मंदिर अति भव्य था। उस मंदिर में 56 स्वर्ण स्तंभ थे, और संपूर्ण मंदिर में अनगिनत कीमती रत्न और हीरे जड़े हुए थे। अलबेरुनी और मार्कोपालो ने श्री सोमनाथ मंदिर का जो वर्णन किया था उसके अनुसार यह मंदिर अति संमृद्ध था। इस मंदिर के रखरखाव के लिए दस हजार गांव थे। मंदिर के गर्भगृह में हीरे जवाहरत की भरमार थी। मंदिर में अनेकों सोने की मूर्तियां थीं। एक हजार से भी अधिक पूजारी भगवान की पूजा में हमेशा रहते थे।
जानकारों का मानना है कि सोमनाथ मन्दिर की भौगोलिक स्थिति और उसके कुछ वास्तुदोष के कारण ही जितनी बार भी इस मन्दिर का निर्माण हुआ उसके कुछ सालों बाद ही मन्दिर ध्वस्त भी होता रहा। जबकि स्वतन्त्रता के बाद बने इस वर्तमान नवनिर्मित सोमनाथ मन्दिर और उसके परिसर का निर्माण कुछ इस प्रकार से हुआ है कि इसमें कुछ पुराने महत्त्वपूर्ण वास्तुदोषों के साथ कुछ अन्य नए महत्त्वपूर्ण वास्तुदोष और जुड़ गए हैं।
पवित्र सोमनाथ मंदिर सनातन का शाश्वत तीर्थस्थान है। इसीलिए कहा जाता है कि सोमनाथ मंदिर, प्रतीक है पुनर्निर्माण की उस शक्ति का जो हमेशा विनाश की शक्ति से अधिक पवित्र होती है।