Rameshwar Mishra Pankaj ji द्वारा रचित “अद्वितीय समाजशास्त्र” शीर्षक की इस पुस्तक में जाति और वर्ण के भेद को अनेक शास्त्रों के उदाहरण से समझाया गया है। इसे पढ़ कर वर्ण को ही जाति मानने की जो गलती आज तक की जा रही है, उसका समाधान हो जाता है। हिंदू धर्मशास्त्रों में कर्मानुसार और तप से जाति उत्कर्ष (उच्च स्थिति को प्राप्त करना) के अनेक उदाहरण हैं। वहीं, जाति अपकर्ष (निम्न स्थिति को प्राप्त करना) के भी अनेक उदाहरण मिलते हैं। पंकज सर ने इस पर एक पूरा अध्याय ही समर्पित किया है। दो उदाहरण देखिए:-
महाभारत के अनुशासन पर्व के 30 वें अध्याय में महाराजा वीतहव्य के ब्राह्मणत्व प्राप्ति का उल्लेख है। इसी तरह कदंब कुल जो ब्राह्मण कुल था, एक शिलालेख के अनुसार वह कालांतर में क्षत्रिय हो गया और शर्मा के स्थान पर वर्मा की उपाधि का प्रयोग करने लगा।
रामेश्वर मिश्र पंकज जी ने इस पुस्तक में आज के संदर्भ को भी उद्धृत किया है। यूरोप और क्रिश्चनिटी के प्रभाव में स्वतंत्रता के बाद की सरकारों व राजनीतिक दलों ने यह जो जाति का खेल खेला है, उस पर भी संविधान के आलोक में उन्होंने विचार प्रस्तुत किया है।
वास्तव में यह पुस्तक सनातन विधान का वह निचोड़ है, जिसे सभी धर्मशास्त्रों से उसी तरह इकट्ठा किया गया है, जैसे मधुमक्खी फूल के परागकण को निचोड़ कर शहद का निर्माण करती है। उम्र के इस पड़ाव में उन्होंने सनातन हिन्दू धर्म की नयी पीढ़ी के लिए इतना श्रमसाध्य कार्य किया है। इसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं।
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