– डॉ. स्वप्निल यादव
संत कवि अपनी सधुक्कड़ी भाषा में जिस ब्रह्म की बात करते हैं वह निराकार है। वह ब्रह्म ज्ञान का विषय है, परंतु सामान्य बुद्धि के लोग उस निर्गुण को आकार देकर भक्ति में लीन रहते हैं। सामान्य बुद्धि के व्यक्ति के लिए सगुण भगवान सुगम है और निर्गुण को बुद्धि में जगह दे पाना दुर्लभ।
सगुण रूप सुलभ अति
निर्गुण जानी नहीं कोई
सुगम अगम नाना चरित
सुनी सुनी मन भ्रम होई
संत किसी गुरुकुल में नहीं गए लेकिन अनुभव की दृष्टि से उनका ज्ञान बहुत समृद्ध था। वह पूजा-पाठ में विश्वास नहीं रखते थे क्योंकि पूजा उसकी की जाती है जिसका आकार हो। परंतु ब्रह्म तो निराकार है। उनका मानना था कि जीव ब्रह्म से अलग नहीं है बल्कि उसी का अंश है।
जीव के अंदर ब्रह्म उपस्थित हैं परंतु सामान्य बुद्धि वाले व्यक्ति के लिए इस रहस्य को समझ पाना बेहद मुश्किल है। आइंस्टीन ने कहा था कि जो हम जानते हैं वह बूंद है और जो हम नहीं जानते वह समुद्र। शायद हम उस समुद्र की तलाश में लगे हैं जो अनंत भी हैं और शून्य भी। इसी तलाश को हम अध्यात्म कहते हैं। डी ब्रोग्ली ने यह सिद्ध किया कि एक सूक्ष्म इलेक्ट्रॉन तरंग प्रकृति रखता है जैसे कि प्रकाश ।
वैज्ञानिकों का मानना है कि एक समय ऐसा था जब इस ब्रह्मांड में कुछ नहीं था-न ग्रह, न तारे, न उपग्रह, न ही जीवन सब कुछ एक न दिखने वाले बिंदु में सीमित था बिगबैंग और हिग्स बोसोन थ्योरी के माध्यम से हम अस्तित्व के बारे में गहराई से जान सकते हैं। ब्रह्मांड में उपस्थित उस बिंदु के विस्तार और उन कणों के आपसी प्रतिकर्षण के कारण ही यह ग्रह, उपग्रह और तारे अस्तित्व में आए, तो यह कहा जा सकता है कि इन ग्रहों की उत्पत्ति एक भौतिकी घटना है और इस ब्रह्मांड में हमारी पृथ्वी ठीक वैसे ही है जैसे फुटबॉल के मैदान में एक आलपिन का हेड।
दुनिया में जो भी वस्तु हमें दिखती है उसका निर्माण कणों से हुआ है। यह कण एटम या अणु है। रासायनिक गुणों के अनुसार यह अणु इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन से मिलकर बने हैं। प्रोटॉन और न्यूट्रॉन वजन होता है परंतु फोटान में नहीं। हिग्स के अनुसार जब तक परमाणु आपस में जुड़ते नहीं तब तक उन्हें वजन नहीं आता। इसी तथ्य में अवतारवाद का रहस्य छुपा हुआ है। सब कुछ यहीं है कुछ बाहर से नहीं आता सब अक्षुण भी है और अनंत भी।
साकार निराकार में बदल रहा है और निराकार साकार में। यह पूर्णता एक चक्र है इसे कहीं पर भी रोका नहीं जा सकता । इस चक्र ही कर्म है और यह पूर्णता श्री कृष्ण। हमें लगता है कि हम कुछ पीछे छोड़ आए हैं या कुछ आगे आने वाला है। जबकि ऐसा कुछ नहीं है यह एक चक्र है और चक्र न शुरू हो रहा है और न ही समाप्त।सब कुछ परिवर्तनशील है न कुछ समाप्त हो रहा है, न ही कुछ बन रहा है। साकार निराकार में, निराकार साकार में बदल रहा है यही अवतारवाद है।