काशी में कोरिडोर के नाम पर उजाड़े गए सैकड़ों पौराणिक महत्त्व के अति प्राचीन सिद्ध और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक “प्रमोद विनायक” जी का वह मंदिर जिसका उल्लेख पुराणों में मिलता है और जिसके लिए ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य श्री अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी ने भी उस समय सरकार का खूब विरोध किया और उजड़ने से पूर्व पूजा-पाठ भी किया था। लेकिन उसके बाद से स्वामी जी को कांग्रेसी और हिन्दू धर्म स्थलों के विकास में बाधक के तौर पर बीजेपी आईटी सेल्ल के द्वारा देशभर में उनका विरोध करवाया गया था। हालांकि अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी ने मात्र किसी एक मंदिर का ही नहीं बल्कि उन सभी मंदिर का पक्ष लिया था जो कोरिडोर के नाम पर उजाड़े जा रहे थे, लेकिन उस समय मीडिया ने भी उनका साथ नहीं दिया।
जहां एक ओर हिंदुन के वोट के दम पर चुनाव जीत कर आये ये लोग स्वयं हिन्दू विरोधी हो गए वहीं इनको चाहिए था कि विनाश की बजाय हिन्दू धर्म स्थलों को संरक्षण देना चाहिए था वहीं इन्होने एक दम वही कार्य कर दिए जो कभी हुमायूँ, बाबर, अकबर और औरंगज़ेब कर रहे थे।
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स्वामी जी साथ काशी के तमाम हिन्दू संघठन भी आ गए थे लेकिन उस समय कानूनी शक्ति के दम पर उस आवाज़ को दबा दिया गया था। काशी के छप्पन विनायक मंदिरों में से एक उस मंदिर में दर्शन पूजन का सौभाग्य अब किसी को भी नहीं मिलेगा। लेकिन “प्रमोद विनायक” जी की पूजा करते शंकराचार्य श्री अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी का यह चित्र हमेश हमें “प्रमोद विनायक” जी की याद दिलाता रहेगा।
विधि का विधान और गणेश जी का क्रोध देखिये कि उसके बाद से तो आज सम्पूर्ण बीजेपी ही कांग्रेसी हो चुकी है और स्वयं प्रधान मंत्री जी भी सेक्युलरवाद और हिन्दू विरोध के कामों के द्वारा कांग्रेस से कहीं आगे निकल चुके हैं। “प्रमोद विनायक” मंदिर जैसे कई मंदिरों को ध्वस्त करने के कारण सम्पूर्ण काशी और आसपास के कई क्षेत्रों में और आयोध्या में भी बीजेपी और मोदी को मंदिर विरोधी, सनातन विरोधी और म्लेच्छवादी होने वहां की जनता ने सीधे-सीधे दंड देकर अल्पमत में ला दिया है ।