Skip to content
5 July 2025
  • Facebook
  • Twitter
  • Youtube
  • Instagram

DHARMWANI.COM

Religion, History & Social Concern in Hindi

Categories

  • Uncategorized
  • अध्यात्म
  • अपराध
  • अवसरवाद
  • आधुनिक इतिहास
  • इतिहास
  • ऐतिहासिक नगर
  • कला-संस्कृति
  • कृषि जगत
  • टेक्नोलॉजी
  • टेलीविज़न
  • तीर्थ यात्रा
  • देश
  • धर्म
  • धर्मस्थल
  • नारी जगत
  • पर्यटन
  • पर्यावरण
  • प्रिंट मीडिया
  • फिल्म जगत
  • भाषा-साहित्य
  • भ्रष्टाचार
  • मन की बात
  • मीडिया
  • राजनीति
  • राजनीतिक दल
  • राजनीतिक व्यक्तित्व
  • लाइफस्टाइल
  • वंशवाद
  • विज्ञान-तकनीकी
  • विदेश
  • विदेश
  • विशेष
  • विश्व-इतिहास
  • शिक्षा-जगत
  • श्रद्धा-भक्ति
  • षड़यंत्र
  • समाचार
  • सम्प्रदायवाद
  • सोशल मीडिया
  • स्वास्थ्य
  • हमारे प्रहरी
  • हिन्दू राष्ट्र
Primary Menu
  • समाचार
    • देश
    • विदेश
  • राजनीति
    • राजनीतिक दल
    • नेताजी
    • अवसरवाद
    • वंशवाद
    • सम्प्रदायवाद
  • विविध
    • कला-संस्कृति
    • भाषा-साहित्य
    • पर्यटन
    • कृषि जगत
    • टेक्नोलॉजी
    • नारी जगत
    • पर्यावरण
    • मन की बात
    • लाइफस्टाइल
    • शिक्षा-जगत
    • स्वास्थ्य
  • इतिहास
    • विश्व-इतिहास
    • प्राचीन नगर
    • ऐतिहासिक व्यक्तित्व
  • मीडिया
    • सोशल मीडिया
    • टेलीविज़न
    • प्रिंट मीडिया
    • फिल्म जगत
  • धर्म
    • अध्यात्म
    • तीर्थ यात्रा
    • धर्मस्थल
    • श्रद्धा-भक्ति
  • विशेष
  • लेख भेजें
  • dharmwani.com
    • About us
    • Disclamar
    • Terms & Conditions
    • Contact us
Live
  • विदेश
  • विशेष

जज्बा हो तो इजरायल और यूक्रेन जैसा…

admin 10 November 2023
War Zone
Spread the love

वैश्विक स्तर पर वैसे तो बहुत से युद्ध हुए हैं किंतु उन युद्धों में आमतौर पर देखने को मिला है कि स्वार्थ प्रबल रहा है। स्वार्थ चाहे युद्ध लड़ने वालों का रहा हो या फिर युद्ध के लिए उकसाने वालों का। उकसाने वालों से मेरा आशय उन शक्तियों से है जो युद्धों के बहाने हथियार बेचकर अपना अर्थ तंत्र मजबूत करने का काम करती रही हैं। कुल मिलाकर कहने का आशय यह है कि युद्ध के लिए उकसाने वाली ताकतें या सीधे-सीधे कहें तो महाशक्तियां, जिन्होंने हमेशा अपने स्वार्थ को ही प्रमुखता दी है और अपने लिए परिस्थितियों के मुताबिक मापदंड तय किये। कुछ इसी प्रकार का अभी तक दस्तूर रहा है किंतु अभी तक के इतिहास में हमास-इजरायल और यूक्रेन-रूस द्वारा लड़े जा रहे युद्धों में स्पष्ट रूप से देखने को मिला है कि स्वार्थ एवं अर्थ तंत्र को मजबूत करने की दृष्टि से उकसाने वाली ताकतों यानी महाशक्तियों को निराशा ही हाथ लगी है।

अब इजरायल व युक्रेन दोनों देशों ने युद्ध को किसी भी स्वार्थ से ऊपर उठकर अपने आत्मसम्मान एवं स्वाभिमान से जोड़ लिया है यानी यूक्रेन एवं इजरायल के लोगों ने अपने आत्मसम्मान एवं स्वाभिमान को प्राथमिकता दी है। वैसे तो, अभी तक के इतिहास में महाशक्तियां अपनी नीतियों के मुताबिक जब चाहती हैं, युद्ध शुरू करवा देती हैं और जब चाहती हैं रुकवा देती हैं किंतु यूक्रेन एवं इजरायल में वे चाहकर भी वैसा नहीं कर पा रही हैं क्योंकि ये दोनों देश किसी के नियंत्रण में न आकर अपना निर्णय स्वयं ले रहे हैं।

वैश्विक शक्तियों की मंशा युद्धों को लेकर क्या होती है, यह पूरी दुनिया को पता है। अपने स्वार्थ के लिए अपनी कुनीतियों को पूरी दुनिया पर कैसे थोपा जाता है, यूक्रेन और इजरायल इसके ज्वलंत उदाहरण हैं। यूक्रेन को रूस के खिलाफ और हमास को इजरायल के खिलाफ लाकर महाशक्तियों द्वारा जो खेल ख्ेाला जा रहा है, वह निहायत ही निंदनीय है। यह सारा काम महाशक्तियों की जानकारी में किया जा रहा है। उनकी योजनाओं के साथ किया जा रहा है। महाशक्तियों की इस प्रकार की नीतियां वैश्विक शांति के लिए न सिर्फ घातक हैं अपितु यह सब इंसानियत एवं मानवता के लिए निहायत ही खतरनाक भी है।

इन युद्धों को देखकर अब तो ऐसी स्थितियां बनती दिख रही हैं कि विनाश की घड़ी कब आ जाये, कुछ कहा नहीं जा सकता है। इजरायल द्वारा अपनी प्रतिरक्षा में जिस प्रकार हमास के खत्म होने तक युद्ध का संकल्प लिया गया है उससे यही साबित होता है कि अपने देश के लिए सर्वस्व समर्पित कर देने का जज्बा इजरायलियों में किस हद तक कूट-कूट कर भरा है।

वैसे भी, इजरायल के जज्बे का अंदाजा मात्र इस बात से लगाया जा सकता है कि जब कोई छोटा या कमजोर देश युद्धरत होता है या उसकी संभावना बनती है तो वहां के तमाम नागरिक आमतौर पर अपना देश छोड़कर अन्य देशों में शरण ले लेते हैं। किंतु इजरायल के मामले में स्थिति बिल्कुल उलट है। हमास-इजरायल युद्ध के इस दौर में दुनियाभर में जहां भी इजरायली बसे हुए हैं या भ्रमण के लिए गये हुए हैं, वहां से वापस आकर अपने देश के लिए वे युद्ध लड़ने को तैयार हैं। आज के दौर में इस प्रकार का देश के प्रति समर्पण कोई मामूली बात नहीं है।

इजरायलियों की अपने देश के प्रति समर्पण को देखकर उकसाने वाली शक्तियों को भी पसीना आ रहा होगा कि ऐसी स्थिति में आखिर वे क्या करें, क्योंकि उनके लिए तो उनका स्वार्थ ही प्रबल है। ऐसी स्थिति में हमास के खात्मे तक इजरायल के साथ खड़े होना उनकी मजबूरी बन गई है। कुल मिलाकर वर्तमान परिस्थितियों में कहा जा सकता है कि इजरायल को अपनी सुविधा के अनुसार महाशक्तियों द्वारा चलाये रख पाना बेहद मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन भी है। कमोबेश यूक्रेन में भी इसी प्रकार की स्थितियां देखने को मिली हैं।

इन दोनों देशों की वर्तमान स्थिति को देखकर भारत को भी सर्वदृष्टि से सतर्क रहने की आवश्यकता है, क्योंकि भारत दुनिया की बड़ी आर्थिक महाशक्ति बनने की दिशा में निरंतर अग्रसर हो रहा है। ऐसे में भारत को भी रास्ते से भटका कर उसकी आर्थिक स्थिति को तहस-नहस करने का काम किया जा सकता है। उकसाने वाली ताकतें मौका पाकर पिंड भी छुड़ा लेती हैं। खासकर तब, जब उनका मकसद पूरा नहीं हो पाता है। दूसरे देश भी तभी साथ देंगे, जब भारत स्वयं मजबूत होगा और स्वयं निर्णय लेगा। थोड़ा सा भी लचीला रुख अपनाने पर महाशक्तियां हावी होती जायेंगी और अपनी मर्जी के मुताबिक अपने इशरों पर नचायेंगी। भारत को इन सारी परिस्थितियों को ध्यान में रखकर सावधान रहना होगा और उसी के मुताबिक तैयारी भी करनी होगी। हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश लगातार मजबूत होता जा रहा है। आज भारत का पूरी दुनिया में डंका बज रहा है। तमाम मामलों में भारत पूरी दुनिया का नेतृत्व भी कर रहा है।

वैसे भी, देखा जाये तो आज का भारत 1962 का भारत नहीं है। आज का भारत अपनी एक-एक इंच भूमि की रक्षा करने में सक्षम है। भारत के रक्षा मंत्री माननीय राजनाथ सिंह अकसर कहा करते हैं कि ‘भारत पहले किसी को छेड़ता नहीं है किंतु जो छेड़ता है, भारत उसे छोड़ता भी नहीं है।’ इसी वाक्य से समझा जा सकता है कि भारत की तैयारी एवं आत्मविश्वास कितना ऊंचा है। यूक्रेन और इजरायल युद्ध को देखकर तमाम लोगों का कहना है कि भारत विश्व गुरु बनने के बजाय सर्वदृष्टि से शक्ति बने। शक्ति रहेगी तो विश्व गुरु बनने से कोई रोक नहीं सकता है। वैसे भी भारत विश्व गुरु रह चुका है।

किसी भी शत्रु को मुंहतोड़ जवाब देने की ताकत होगी तो पूरी दुनिया साथ खड़ी मिलेगी, जैसा कि इजरायल में देखने को मिल रहा है। वैसे भी, श्री रामचरित मानस में महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है कि ‘समरथ को नहीं दोष गुसाईं’ यानी जो सर्वदृष्टि से समर्थ होता है, उसका कोई दोष नहीं होता है। भारत को सदैव इसी स्थिति में रहना होगा। हालांकि, श्री नरेंद्र मोदी जी के कुशल नेतृत्व में आज का भारत ऐसा ही है। आज का भारत 1962 की तरह अपनी जमीन छोड़ने वाला नहीं बल्कि 1962 में भारत की हड़पी हुई जमीन वापस लेने की स्थिति में है।

हालांकि, आज दुनिया के कई देशों की स्थिति ऐसी बन चुकी है कि ‘चैबे जी चले थे छब्बे जी बनने, किंतु लौटे दूबे जी बन कर।’ आज कुछ इसी प्रकार की स्थिति पाकिस्तान की बनी हुई है। बहरहाल, जज्बे की जब बात आती है तो उस मामले में भारत भी कम नहीं है। समय-समय पर भारत ने अपने जज्बे का इजहार भी किया है। वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी जी को तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने अमेरिका बुलाकर बातचीत करने की पेशकश की किंतु अटल जी ने क्लिंटन साहब से स्पष्ट शब्दों में कहा कि जब तक भारत कारगिल की अपनी एक-एक इंच भूमि को मुक्त नहीं करा लेगा, तब तक मैं अपना देश छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा। ऐसा था हमारे पूर्व प्रधानमंत्री श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी जी का जज्बा।

ठीक इसी प्रकार श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने वर्ष 1971 में पाकिस्तान का विभाजन करवाया तो पूरे देश का सीना गर्व से चैड़ा हो गया था। यह लिखने का मेरा आशय मात्र इतना ही है कि भारत का भी अतीत कम गौरवमयी नहीं रहा है। यूक्रेन-इजरायल के जज्बे की जब बात आती है तो ताइवान का नाम भी बेहद आदर के साथ लिया जाता है क्योंकि ताइवान ने न सिर्फ चीन जैसे शक्तिशाली देश को हर मोर्चे पर टक्कर दी है, बल्कि उसी के अनुरूप विकास भी किया है। ताइवान के जज्बे को देखकर ‘जहां चाह, वहां राह’ वाली कहावत खूब चरितार्थ होती है।

इन दोनों युद्धों के कारण एक बात तो विश्व के लिए बहुत अच्छी हुई है कि महाशक्तियों को शायद अब यह सबक मिल रहा है कि आज कोई भी व्यक्ति, समाज या देश चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो, अपने अस्तित्व, स्वाभिमान एवं आत्मसम्मान के लिए किसी भी महाशक्ति की कठपुतली बनने को तैयार नहीं है और यह भी सत्य है कि महाशक्तियों पर निर्भरता होते हुए भी अपनी अस्मिता को बचाये रखने के लिए अपने देशवासियों के साथ एकजुट होकर किसी भी सीमा तक जाने को छोटे देश तैयार हैं और वे यह भी प्रदर्शित करते हैं कि वे अपना निर्णय स्वयं लेंगे।

जज्बे की दृष्टि से इजरायल की बात की जाये तो उसका सीधा सा कहना है कि ‘मरो तो देश के लिए’ और ‘कुछ करके मरो।’ इजरायलियों को यह अच्छी तरह मालूम है कि यदि वे मजबूत नहीं होंगे और लड़ेंगे नहीं तो हमास उन्हें जीने नहीं देगा। अतः, इजरायल का स्पष्ट रूप से मानना है कि दुश्मन को जड़ से समाप्त करना ही समस्या का समाधान है किंतु यहां एक बात बेहद महत्वपूर्ण है कि यदि इजरायल स्वयं में मजबूत नहीं होता तो उसकी मदद करने के लिए कोई आता भी नहीं। इजरायल के साथ जो भी खड़े हैं, सिर्फ इसलिए खड़े हैं, क्योंकि वह स्वयं खड़ा है।

आज इजरायल में जो लोग युद्ध लड़ रहे हैं। उनमें से तमाम लोग किसी दूसरे देश में जाकर सुकून से जीवन यापन कर सकते थे। क्या नेता, क्या ऐक्टर, क्या जर्नलिस्ट या कोई भी महत्वपूर्ण शख्सियत, सभी लोग अपने देश के लिए पूर्ण समर्पण भाव से खड़े दिख रहे हैं। हर कोई सेना के साथ खड़ा है। इस संबंध में इजरायल के फाउंडर डेविड बेन ग्यूरियन की बात की जाये तो उन्होंने कहा था कि साहस एक खास तरह का ज्ञान है जो आपको बताता है कि आप को किस चीज से डरना चाहिए और किस चीज से नहीं डरना चाहिए। हमास के साथ जंग में यह बात सच साबित होती दिख भी रही है।

वैसे भी, इजरायल में अनिवार्य सैन्य सर्विस या कंपल्सरी मिलिट्री सर्विस के तहत चाहे कोई भी हो, उसे जंग में सेना के साथ रहना ही होगा। अभी कुछ दिनों पहले देखने को मिला कि मशहूर इजरायली एक्टर लियोर-रेज इजरायली डिफेंस फोर्सेस (आईडीएफ) के साथ वालंटियर के तौर पर जुड़े। लियोर को लोगों ने महशूर सीरीज ‘फौदा’ में देखा था, जो इंटेलिजेंस एजेंसी ‘मोसाद’ पर आधारित थी। इसी प्रकार अन्य बहुत से महत्वपूर्ण लोग सेना के साथ बतौर वालंटियर के तौर पर जुड़े हैं।

वैसे भी इजरायल में सन 1949 के इजरायली सुरक्षा सेवा कानून के मुताबिक 18 वर्ष का होने पर सभी इजरायलियों को सैन्य सेवा में भर्ती अति आवश्यक है। अनिवार्य सेवा पूरी करने के बाद कोई भी व्यक्ति आम तौर पर आईडीएफ रिजर्व का हिस्सा बन जाता है। इसका मतलब सीधे-सीधे यही है कि जरूरत पड़ने पर उन्हें ड्यूटी पर बुलाया जा सकता है। बिना बुलावे के भी यदि कोई स्वेच्छा से चाहे तो युद्ध में उतर सकता है। आईडीएफ की तरफ से समय-समय पर ट्रेनिंग का आयोजन होता रहता है ताकि ये सैनिक हर पल युद्ध कौशल के लिए तैयार रहें। आम तौर पर रिजर्व सैनिकों के तौर पर 40 या 50 साल तक की आयु में इन्हें दुबारा बुलाया जा सकता है।

इजरायल की ही तरह यदि यूक्रेन के जज्बे की बात की जाये तो 22 जनवरी 2022 को जब रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया तो पूरी दुनिया को लगा कि 24 घंटों के अंदर रूस यूक्रेन का दिया बुझा देगा, किंतु यूक्रेन अभी जिंदा है और उसका जज्बा भी जिंदा है। उसका जज्बा सिर्फ जिंदा नहीं बल्कि और बढ़ गया है। रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन सोच रहे होंगे कि आखिर वे कहां फंस गये? ऐसी ही परिस्थितियों के संदर्भ में भारत में एक प्राचीन कहावत प्रचलित है कि ‘किस्मत भी उन्हीं का साथ देती है, जिनके हौंसले बुलंद होते हैं।’ यूक्रेन के जज्बे के आगे ‘जिसकी लाठी, उसकी भैंस’ वाली कहावत पिट गई। यूक्रेन तमाम रूसी सैनिकों का कब्रगाह बन गया। संभवतः कुछ ताकतों को प्रारंभ में लगा होगा कि वे यूक्रेन को हथियार बेचकर अपनी आर्थिक सेहत सुधार सकते हैं किंतु ऐसी शक्तियों को इजरायल की तरह यूक्रेन में भी निराशा ही हाथ लगी।

यूक्रेन के राष्ट्रपति ने युद्ध के शुरुआती दिनों में ही कह दिया था कि यूक्रेन को किसी देश की सलाह और आश्वासन के बजाय मदद और हथियार चाहिए। यूक्रेन किसी भी कीमत पर अपने आत्मसम्मान एवं स्वाभिमान की रक्षा करना चाहता है। चार करोड़ दस लाख लोगों की आबादी वाला यूक्रेन अभी तक किन परिस्थितियां से गुजरा होगा, इसका सिर्फ एहसास किया जा सकता है। यूक्रेन के लगभग 80 लाख लोग यूरोपीय देशों में शरणार्थी हैं।

रूस ने देश के ट्रांसपोर्ट, बिजली सप्लाई, स्कूलों, इंफ्रास्ट्रक्चर सब पर हमले किये। कड़ाके की सर्दी के बर्फीले महीनों में रूस ने बिजली सप्लाई के केन्द्रों पर मिसाइलें दाग कर लोगों को ठंड से दुखी किया। यूक्रेनी सैनिकों का मनोबल तोड़ने की हर संभव कोशिश की। इन सबके बावजूद यूक्रेन में जिंदगी ठहरने के बजाय चलती रही। उल्टे रूसी सेना को पीछे हटना पड़ा। यूक्रेन में रूसी सैनिकों के मरने का रिकाॅर्ड बना। यूक्रेन में रूसी टैंकों के कब्रिस्तान बने। वास्तव में रूस के मित्र देश भी इस बात से हैरान हैं कि रूस जैसे शक्तिशाली देश का कचूमर यूक्रेन ने कैसे निकाल दिया? रूसी राष्ट्रपति जेलेंस्की, उनकी सरकार और नागरिकों में जिजीविषा, निडरता, निर्भयता और जज्बा नहीं होता तो क्या यूक्रेनी दीया रूस के तूफान के आगे जलता रहता। दरअसल, यूक्रेन की सरकार, सेना और वहां के नागरिकों ने यह संकल्प कर लिया कि रूस की धमकियों के आगे वे कब तक नतमस्तक होकर रहेंगे। ‘जियेंगे तो देश के लिए, मरेंगे तो देश के लिए’, यूक्रेन के टिके रहने की ताकत भी यही है।

इजरायल और यूक्रेन में एक बात कामन यह देखने को मिली कि वहां की सरकार, विपक्ष, सेना और नागरिक सभी एकजुट दिखे। किसी ने किसी के ऊपर आरोप नहीं लगाये और न ही किसी ने युद्ध छोड़कर भागने की कोशिश की। वहां की सरकर ने यदि एक के बजाय दस मारने की बात कही तो विपक्ष ने यह आंकड़ा और भी बढ़ा दिया। दुनिया के अन्य देशों को यूक्रेन-इजरायल से नसीहत लेनी चाहिए और उनके जज्बे के समक्ष नतमस्तक होना चाहिए। इस संबंध में एक बात यह भी कही जा सकती है कि उकसाने वाली ताकतें यानी महाशक्तियों को यह एहसास हो गया होगा कि सब कुछ वैसा ही नहीं होगा, जैसा वे चाहती हैं या सोचती हैं। कभी-कभी महाशक्तियों का दांव ‘उलटा बांस बरेली’ की तरह भी हो सकता है। वैश्विक परिस्थितियों में एक बात यह भी देखने को मिली है कि यदि छोटे देश भी अपनी जिद पर अड़ जायें तो महाशक्तियों की नाक में दम की जा सकती है या यूं कहें कि ‘छठी का दूध’ याद दिलाया जा सकता है।

यूक्रेन-इजरायल युद्ध से एक नसीहत यह भी मिलती है कि बड़ी से बड़ी समस्या को उलझाने, लटकाने एवं टरकाने की बजाय उसके समाधान के लिए आगे बढ़ना चाहिए। यदि साहस हो तो कुछ भी करना असंभव नहीं है। त्रेता युग में भगवान श्रीराम बिना सेना, अस्त्र-शस्त्र एवं धन के वन के लिए चले थे किंतु अपने आत्मसम्मान एवं स्वाभिमान के लिए अत्यंत शक्तिशाली राजा रावण को भी हराकर बध कर दिया। कहने का सीधा-सा आशय यह है कि सिर्फ जुल्म करना ही अपराध नहीं है बल्कि जुल्मों के आगे नतमस्तक होना भी अपराध है। इस दृष्टि से यूक्रेन एवं इजरायल ने जो कुछ भी किया है, पूरी दुनिया के लिए मिसाल है और इन देशों के जज्बे को सर झुका कर सम्मान देना चाहिए और ऐसा करने से हीउकसाने वाली ताकतों के हौंसले पस्त होंगे। आज नहीं तो कल इसी रास्ते पर आना होगा।

– अरूण कुमार जैन (इंजीनियर) (पूर्व ट्रस्टी श्रीराम-जन्मभूमि न्यास एवं पूर्व केन्द्रीय कार्यालय सचिव, भा.ज.पा.)

About The Author

admin

See author's posts

630

Related

Continue Reading

Previous: जैसा हो विषय वैसा ही हो कार्यक्रम…
Next: दिवाली – कल, आज और कल

Related Stories

Natural Calamities
  • विशेष
  • षड़यंत्र

वैश्विक स्तर पर आपातकाल जैसे हालातों का आभास

admin 28 May 2025
  • विशेष
  • षड़यंत्र

मुर्गा लड़ाई यानी टीवी डिबेट को कौन देखता है?

admin 27 May 2025
Teasing to Girl
  • विशेष
  • षड़यंत्र

आसान है इस षडयंत्र को समझना

admin 27 May 2025

Trending News

वैश्विक स्तर पर आपातकाल जैसे हालातों का आभास Natural Calamities 1

वैश्विक स्तर पर आपातकाल जैसे हालातों का आभास

28 May 2025
मुर्गा लड़ाई यानी टीवी डिबेट को कौन देखता है? 2

मुर्गा लड़ाई यानी टीवी डिबेट को कौन देखता है?

27 May 2025
आसान है इस षडयंत्र को समझना Teasing to Girl 3

आसान है इस षडयंत्र को समझना

27 May 2025
नार्वे वर्ल्ड गोल्ड मेडल जीत कर दिल्ली आने पर तनिष्क गर्ग का भव्य स्वागत समारोह Nave Word Medal 4

नार्वे वर्ल्ड गोल्ड मेडल जीत कर दिल्ली आने पर तनिष्क गर्ग का भव्य स्वागत समारोह

26 May 2025
युद्धो और युद्धाभ्यासों से पर्यावरण को कितना खतरा है? war-and-environment-in-hindi 5

युद्धो और युद्धाभ्यासों से पर्यावरण को कितना खतरा है?

23 May 2025

Total Visitor

078313
Total views : 142890

Recent Posts

  • वैश्विक स्तर पर आपातकाल जैसे हालातों का आभास
  • मुर्गा लड़ाई यानी टीवी डिबेट को कौन देखता है?
  • आसान है इस षडयंत्र को समझना
  • नार्वे वर्ल्ड गोल्ड मेडल जीत कर दिल्ली आने पर तनिष्क गर्ग का भव्य स्वागत समारोह
  • युद्धो और युद्धाभ्यासों से पर्यावरण को कितना खतरा है?

  • Facebook
  • Twitter
  • Youtube
  • Instagram

Copyright ©  2019 dharmwani. All rights reserved