जाति के नींव पर न तो राष्ट्र-निर्माण कर सकते हैं और न ही स्वयं को आक्रमण के लिए तैयार कर सकते हैं। – डॉ. बी. आर. अम्बेडकर
मनुष्यता सबसे बड़ा धर्म है, अगर उसे लोग मानेंगे तो जातियों का प्रभाव अपने-आप धीरे-धीरे खत्म होता चला जाएगा। मैंने जो अनुभव किया, उसी अनुभव को शेयर कर रहा हूं। हमने देखा है जाति आधारित प्रमोशन होते, हमने देखा है क्षेत्रवाद, हमने देखा है परिवारवाद।
लिखने-पढ़ने में तो लोगों को बड़ा अच्छा लगता है, लेकिन जमीनी सच्चाई कुछ और है। हालांकि सभी एक जैसे नहीं है, पर बहुतों में जातिवादी, क्षेत्रवादी और परिवारवादी सोच दिख जाएगी। बहुत बड़े-बड़े दिग्गज लोग बड़ी-बड़ी बातें लिखते रहते हैं। लेकिन कभी उन लोगों ने इन बातों पर गहराई से सोचने की हिम्मत नहीं जुटाई होगी।
बड़े-बड़े पत्रकार बड़ी बढ़िया और सुंदर बातें लिखते हैं। जब भी समय मिलता है, मैं उन सबको बहुत ही मन लगाकर पढ़ता रहता हूं। एक उदाहरण दिए देता हूं-उससे समझने में आसानी होगी। एक सज्जन, जिनको संभवत: ट्रांसलेशन के अलावा ज्यादा कुछ भी समझ नहीं है। इंडिया टुडे ग्रुप में बड़े पद पर विराजमान हैं, उनके साले साहब उनके साथ ही किसी पद पर पदासीन हैं। पदासीन महोदय हिन्दुस्तान टाइम्स के प्रथम तल पर हिन्दुस्तान अखबार के दफ्तर में मेरे द्वारा सिखाए-समझाए गए हैं।
नाम न लिखने की शर्त पर उदाहरण तो सैकड़ों दे सकता हूं, लेकिन समझने के लिए एक ही उदाहरण काफी है। व्यक्ति किसी भी जाति, किसी भी धर्म अथवा किसी भी राज्य से हो। अखबार लाइन की एबीसीडी न जानने वाले सैकड़ों लोगों को हिन्दुस्तान में नौकरियां मिलीं और उससे पहले भी बहुत सारे पदासीन लोग किसी न किसी सिफारिश अथवा अपनी पैतृक संपत्ति की बदौलत मौजूद थे। अच्छी सोच वाले लोग पहले भी थे, आज भी है और आगे भी रहेंगे। ऐसे ही महामानव की बदौलत अच्छे लोग बने रहते हैं, लेकिन वैसे नहीं जैसा उन्हें होना चाहिए।
निगाह दौड़ाएंगे तो
हर तरफ मजबूरियां थीं
कमबख्त दोष हमारा था
न इधर गिरे न उधर गिरे
समझ नहीं थी हमको वैसी
जैसा लोग समझते थे
अगर समझते होते हम
तो दूर कभी न जा पाते।
– योगराज सिंह