सृष्टि की उत्पत्ति के साथ ही जब पृथ्वी पर जीव उत्पत्ति हुई और तदुपरांत मानव आया। तभी से ही मानव को सृष्टि ने विशेष इंद्रियों से सुशोभित किया, जिससे वह सोचने-समझने, परखने और अभिव्यक्त करने में सक्षम हो पाया। प्राचीन काल से ही मानव में हमेशा अपने प्रतिद्वंद्वियों और विरोधियों के बारे में विशिष्ट जानकारियां प्राप्त करने के लिए जिज्ञासु रहा है। इस जिज्ञासा की लालसा के कारण ही जासूसी शब्द का अवतरण हुआ।
जासूसी या गुप्तचरी, इसकी प्राचीनता की महत्ता का इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वेदों में भी गोपनीय और गुप्तचर जैसे शब्दों का न केवल उल्लेख मिलता है बल्कि उनका ढंग से विवरण और व्याख्या भी की गयी है। ऋग्वेद में गुप्तचरों के अधिष्ठाता के रूप में वरुण देवता को इंगित किया गया है। वरुण देवता की सरमा नाम की एक महिला जासूस न केवल विख्यात रही बल्कि ऋषि-मुनियों ने भी अपने कंठों से गीत इत्यादि गाये। अर्थववेद में तो वरुण को सहस्त्र नेत्र धारक कहा गया।
रामायण काल से लेकर महाभारत काल तक गुप्तचरों के न जाने कितने, किस्से और कारनामें पढ़ने-सुनने में आते रहे, चाहे वह रामजी के गुप्तचर हों, रावण के हों या अन्य किसी और राजा या राज्य के। महाभारत काल में येन-क्रेन-प्रकारेण धर्म युद्ध लड़ा जा रहा था और इसी कारण भयंकर रक्तपात भी हुआ। इस काल में विशेषकर गुप्तचरों का महत्व और आवश्यकता अधिक रही और यहां तक कि गुप्तचरों को सेनाओं के आठवें अंश के रूप में स्वीकारा जाने लगा।
भारत वर्ष में चंद्रगुप्त मौर्य काल में इसी कला में माहिर और विश्व विख्यात चाणक्य न केवल उच्च कोटि के कूटनीतिज्ञ, रणनीतिकार, प्रशासक और गुप्तचर तंत्र के कुशल संचालक के रूप में रहे बल्कि इन्हीं कारणों से आगे चलकर चाणक्य को कौटिल्य नाम से जाना जाने लगा। उनके द्वारा एक ग्रंथ अर्थ शास्त्र की रचना हुई जिसमें गुप्तचर तंत्र की महत्वपूर्ण विस्तार से चर्चायें हैं जो आज तक तर्कसंगत मानकर अनुसरण व अपनायी जाती हैं। इसके बाद तो चाहे भारत में मुगलकालीन राज हो या अंग्रेजों द्वारा राज किया गया हो, प्रथम विश्व युद्ध या द्वितीय विश्व युद्ध रहा हो, इन सब में सामरिक शक्ति के अलावा गुप्तचरों की सूचनाओं का होना आवश्यक है।
आज तो विश्वभर में जासूस और जासूसी का जाल इस कदर बढ़ चुका है कि अपनों में भी अपनेपन का विश्वास कम होता जा रहा है। इर समय डर, भय और जिज्ञासा, शक और शंकायें एक दूसरे के प्रति बनी रहती हैं। यहां पर यह बात समझने की उल्लेखनीय रहेगी कि गुप्तचर तंत्र का उपयोग किस उद्देश्य से किया जा रहा है या हो रहा है।
जहां तक राष्ट्रहित, राष्ट्र सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय रक्षा व सुरक्षा के लिए जासूसी करवाई जाये तो वह उचित है। देश में कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए उचित है मगर किसी के शोषण मात्र या अपनों का वर्चस्व बनाये रखने के लिए की या कराई जाती है तो वह अनुचित है।
जासूसी की प्राचीनता का महत्व और उद्देश्य
यूं तो भारत में राॅ, आईबी, सीआईडी तथा अन्य जासूसी करने वाली संस्थायें सरकार के अधीन कार्यरत हैं जिनके काम के प्रकार और क्षमतायें समय-समय पर साबित होती रहीं और उनका आंकलन भी होता रहता है फिर भी डिजिटलाइजेशन युग में तो जासूसी करना बहुत ही सरल हो गया है और यही कारण है कि विश्वभर में बड़े-बड़े देश या कहें कि लगभग सभी देश अपने आप को सुरक्षित भी और असुरक्षित भी महसूस करते हैं या यूं कहिए कि 24×7 डर और भय के वातावरण में जीते हैं। कब और कहां क्या हो जाये सब कुछ अनिश्चित बना रहता है?
कदम-कदम पर जिम्मेदारी और जवाबदेही का निर्धारण जरूरी…
भारत में भी अभी पेगासस नाम की एक प्राइवेट जासूसी संस्था के माध्यम से अमेरिकन अखबारों में जासूसी की खबर सामने आई है, भारत में कराई जासूसी की और उन्होंने सूची भी जारी की जिस कारण भारत में अनावश्यक हलचल ने सौहार्दपूर्ण सामाजिक, राजनीतिक या देश की सुरक्षा से जुड़ा वातावरण दूषित कर दिया।
सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए वैश्विक शक्तियां जो भारत के विकास में रोड़ा अटकाना चाहती हैं, को जिम्मेदार ठहराया और शोरगुल करने वालों को विदेशी शक्तियों के कहने पर उपयोग में लाने के लिए जिम्मेदार ठहराया जबकि ऐसी बात नहीं है कि भारत ने अगर किसी एजेंसी की सेवायें ली है तो उसके पीछे का कारण आतंकवादी सूचनाओं को एकत्र करना व गतिविधियों पर नजर रखना और राष्ट्रहित व राष्ट्र सुरक्षा जैसे विषयों के लिए नहीं रहा होगा।
पूर्व में भी सरकारें इस प्रकार के कार्य करती रही हैं और करवाती भी रही हैं। किसी भी सरकार के लिए यह कार्य शासन, प्रशासन का हिस्सा है। व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठकर यह सब न चाहते हुए भी प्रशासनिक विवशतायें हैं और यह करना पड़ता है, किया जााता है, पूर्व में भी होता रहा है। भविष्य में भी होता रहेगा।
यह विडम्बना ही समझी जायेगी कि भारतीय राजनीति इस हद तक गिर चुकी है कि हर विषय को राजनीतिक रंग और दृष्टिकोण देकर उसका भी राजनीतिकरण कर लाभ निकालने का समय-समय पर असफल प्रयास होता रहता है। पेगासस मामला भी कुछ इसी प्रकार का है। पूरी संसद को अखाड़ा समझ लिया गया है। बगैर समझे ही इसका तथ्य क्या है, सच क्या है और उद्देश्य क्या है? उद्देश्य और ध्येय पवित्र और शुद्ध होना चाहिए। राष्ट्रहित में राष्ट्र सुरक्षा हेतु होना चाहिए।
मात्र राजनीतिक द्वेष के कारण राजनीति करने हेतु नहीं, जिससे संविधान जैसे पवित्र ग्रंथरूपी दिशा-निर्देशों की रक्षा-सुरक्षा भावना और पवित्रता सुरक्षित सुनिश्चित की जा सके वर्ना इसकी आने वाले समय में देश को बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
– अरूण कुमार जैन (इंजीनियर)