Skip to content
14 June 2025
  • Facebook
  • Twitter
  • Youtube
  • Instagram

DHARMWANI.COM

Religion, History & Social Concern in Hindi

Categories

  • Uncategorized
  • अध्यात्म
  • अपराध
  • अवसरवाद
  • आधुनिक इतिहास
  • इतिहास
  • ऐतिहासिक नगर
  • कला-संस्कृति
  • कृषि जगत
  • टेक्नोलॉजी
  • टेलीविज़न
  • तीर्थ यात्रा
  • देश
  • धर्म
  • धर्मस्थल
  • नारी जगत
  • पर्यटन
  • पर्यावरण
  • प्रिंट मीडिया
  • फिल्म जगत
  • भाषा-साहित्य
  • भ्रष्टाचार
  • मन की बात
  • मीडिया
  • राजनीति
  • राजनीतिक दल
  • राजनीतिक व्यक्तित्व
  • लाइफस्टाइल
  • वंशवाद
  • विज्ञान-तकनीकी
  • विदेश
  • विदेश
  • विशेष
  • विश्व-इतिहास
  • शिक्षा-जगत
  • श्रद्धा-भक्ति
  • षड़यंत्र
  • समाचार
  • सम्प्रदायवाद
  • सोशल मीडिया
  • स्वास्थ्य
  • हमारे प्रहरी
  • हिन्दू राष्ट्र
Primary Menu
  • समाचार
    • देश
    • विदेश
  • राजनीति
    • राजनीतिक दल
    • नेताजी
    • अवसरवाद
    • वंशवाद
    • सम्प्रदायवाद
  • विविध
    • कला-संस्कृति
    • भाषा-साहित्य
    • पर्यटन
    • कृषि जगत
    • टेक्नोलॉजी
    • नारी जगत
    • पर्यावरण
    • मन की बात
    • लाइफस्टाइल
    • शिक्षा-जगत
    • स्वास्थ्य
  • इतिहास
    • विश्व-इतिहास
    • प्राचीन नगर
    • ऐतिहासिक व्यक्तित्व
  • मीडिया
    • सोशल मीडिया
    • टेलीविज़न
    • प्रिंट मीडिया
    • फिल्म जगत
  • धर्म
    • अध्यात्म
    • तीर्थ यात्रा
    • धर्मस्थल
    • श्रद्धा-भक्ति
  • विशेष
  • लेख भेजें
  • dharmwani.com
    • About us
    • Disclamar
    • Terms & Conditions
    • Contact us
Live
  • पर्यावरण
  • षड़यंत्र

विकास के पत्थर पर अपना नाम लिखवाना ही सनातन का आधार नहीं

admin 20 January 2023
Joshimath ka Vikas aur Vinash__5
Spread the love

विकास के पत्थर पर अपना नाम लिखवाना ही सनातन का आधार नहीं होता है. क्योंकि जिस प्रकार से आज का शासन तंत्र विकास का पहिया घुमा रहा है उसके नतीजों में हमारे सामने जोशीमठ का नक्शा उभर कर आ चुका है. विकास के नाम पर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारना सनातन का अंग नहीं है.

मलेच्छ प्रवत्ति आज भारत के राजनैतिक कालनेमियों में घर कर चुकी है. तभी तो “कहीं पर निगाहें और कहीं पर निशाना” वाली कहावत चरितार्थ हो रही है. भारत भूमि के मूलनिवासी हिन्दुओं को अपनी ही भूमि से खदेड़ने वालों का साथ देने वाले आज के राजनीतिक कालनेमि उन पौराणिक कालनेमियों से कहीं अधिक खतरनाक साबित हो रहे हैं.

आज जिस प्रकार से विकास के नाम पर अपने ही देश और समुदाय को नष्ट करने की प्रवत्ति देखी जा रही है कम से कम हिन्दू धर्म के किसी भी वेद या पुराण में तो इसकी व्याख्या नहीं देखी जा सकती। आज यदि पहाड़ों में बारूद लगाकर विकास का पत्थर गाड़ने की मानसिकता चल पड़ी है तो यह तो मलेच्छों का ही काम हो सकता है. इसको देकर सहज ही कहा जा सकता है कि मलेच्छ प्रवत्ति आज भारत के राजनैतिक कालनेमियों में घर कर चुकी है. विकास के नाम पर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारना सनातन का अंग नहीं है.

हम ये बात अच्छी प्रकार से जानते हैं, कि मानव प्रकृति का हिस्सा है इसलिए प्रकृति और मनुष्य एक दूसरे के पूरक हैं. प्रकृति के बिना मानव की परिकल्पना नहीं की जा सकती. प्रकृति के विषय में कहा जाता है कि यह दो शब्दों से मिलकर बनी है – “प्र” और कृति. “प्र” अर्थात “प्रकृति”, और “कृति” का अर्थ है “रचना”.

प्रकृति से इस समस्त सृष्टि यानी ब्रह्माण्ड का बोध होता है. कहने का तात्पर्य यही है कि प्रकृति के द्वारा ही समूचे ब्रह्माण्ड की रचना की गई है.

प्रकृति दो प्रकार की  होती है- एक है प्राकृतिक प्रकृति और दूसरी है मानव प्रकृति. प्राकृतिक प्रकृति में पांच तत्व – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश शामिल हैं. जबकि मानव या मनुष्य की प्रकृति में मन, बुद्धि और अहंकार शामिल हैं. भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं कि पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश ये पञ्चमहाभूत हैं और मन, बुद्धि तथा अहंकार को मिलाकर आठ प्रकार के भेदों वाली मेरी प्रकृति है.

Joshimath ka Vikas aur Vinash__3 Joshimath ka Vikas aur Vinash__3कहने का तात्पर्य  है कि ये आठ प्रकार की प्रकृति ही इस समूचे ब्रह्माण्ड का निर्माण करती है. विज्ञान भी इन तत्वों को अच्छी तरह से मानता है. अर्थात मानव शरीर प्राकृतिक प्रकृति से बना है. प्रकृति के बगैर मानव अस्तित्व की परिकल्पना नहीं की जा सकती. मानव का मन, बुद्धि और अहंकार ये तीनों प्रकृति को संतुलित, संरक्षित या नष्ट करते हैं.

तो ये बात यहाँ साबित हो जाती है की प्रकृति स्वयं अपने अस्तित्व को नष्ट नहीं करती, लेकिन मनुष्य का मन, बुद्धि तथा अहंकार इसके विपरीत जा सकता है, और आज हम उसी का परिणाम देख रहे हैं कि पहाड़ों पर विकास के नाम पर विनाश मचाया जा रहा है. प्रकृति ने नदी का एक मार्ग दिया हुआ है, इसलिए नदी उस मार्ग से भटकती नहीं है, लेकिन मलेच्छ प्रवत्ति अपना मार्ग बदल सकती है.

उपन्यासकार प्रेमचंद के मुताबिक साहित्य में आदर्शवाद का वही स्थान है, जो जीवन में प्रकृति का है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रकृति में हर किसी का अपना महत्व है. एक छोटा-सा कीड़ा भी प्रकृति के लिए उपयोगी है, क्योंकि वह कीड़ा भी उसी प्रकृति का अंग है.

इसी प्रकार से मत्स्यपुराण में एक वृक्ष को सौ पुत्रों के समान बताया गया है. यही कारण है कि हमारे यहां वृक्ष पूजने की सनातन परंपरा रही है. पुराणों में कहा गया है कि जो मनुष्य नए वृक्ष लगाता है, वह स्वर्ग में उतने ही वर्षो तक फलता-फूलता है, जितने वर्षों तक उसके लगाए वृक्ष फलते- फूलते हैं.

प्रकृति की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह अपने उत्पादों या अपनी चीजों का उपभोग स्वयं नहीं करती. जैसे – नदी अपना जल स्वयं नहीं पीती, पेड़ अपने फल खुद नहीं खाते. इसका मतलब यह हुआ कि प्रकृति किसी के साथ भेदभाव या पक्षपात नहीं करती, लेकिन मनुष्य जब प्रकृति से अनावश्यक खिलवाड़ करता है तब उसे गुस्सा आता है. जिसे वह समय – समय पर सूखा, बाढ़, सैलाब, तूफान के रूप में व्यक्त करते हुए मनुष्य को सचेत करती है.

जल, जंगल और जमीन जब तक है तब तक मानव का विकास होता रहेगा. मानव जो छोड़ते हैं उसको पेड़ – पौधे लेते हैं और जो पेड़ – पौधे छोड़ते हैं उसको मानव लेते हैं. जल, जंगल और जमीन से ही जीवन है. जीवन ही नहीं रहेगा तो विकास अर्थात बिजली, सड़क आदि किसी काम के नहीं रहेंगे.

यहां यह बात कहने में आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि समुदाय का स्वास्थ्य ही राष्ट्र की सम्पदा है. जल, जंगल और जमीन को संरक्षित करने लिए मन का शुद्ध होना बहुत जरुरी है. मनुष्य का मन प्रकृति में आंतरिक पर्यावरण का हिस्सा है. जल, जंगल और जमीन तो बाहरी पर्यावरण है.

भारतभूमि पर आज की स्थिति को देखकर सहज ही अंदाज़ा लग जाता है कि यहाँ विकास की नहीं संस्कारों की आवश्यकता है. संस्कारों की कमी आज यहाँ के आम आदमी में नहीं बल्कि राजनेताओं और संगठनों, न्यायपालिका चलाने वालों में देखने को मिल रही हैं.

– अमृति देवी

About The Author

admin

See author's posts

408

Related

Continue Reading

Previous: एक योद्धा जो शिवाजी का सपना पूर्ण करने वाला ही था कि…
Next: एक ऐसा प्रधानमंत्री, जो आज तक गायब है

Related Stories

Natural Calamities
  • विशेष
  • षड़यंत्र

वैश्विक स्तर पर आपातकाल जैसे हालातों का आभास

admin 28 May 2025
  • विशेष
  • षड़यंत्र

मुर्गा लड़ाई यानी टीवी डिबेट को कौन देखता है?

admin 27 May 2025
Teasing to Girl
  • विशेष
  • षड़यंत्र

आसान है इस षडयंत्र को समझना

admin 27 May 2025

Trending News

वैश्विक स्तर पर आपातकाल जैसे हालातों का आभास Natural Calamities 1

वैश्विक स्तर पर आपातकाल जैसे हालातों का आभास

28 May 2025
मुर्गा लड़ाई यानी टीवी डिबेट को कौन देखता है? 2

मुर्गा लड़ाई यानी टीवी डिबेट को कौन देखता है?

27 May 2025
आसान है इस षडयंत्र को समझना Teasing to Girl 3

आसान है इस षडयंत्र को समझना

27 May 2025
नार्वे वर्ल्ड गोल्ड मेडल जीत कर दिल्ली आने पर तनिष्क गर्ग का भव्य स्वागत समारोह Nave Word Medal 4

नार्वे वर्ल्ड गोल्ड मेडल जीत कर दिल्ली आने पर तनिष्क गर्ग का भव्य स्वागत समारोह

26 May 2025
युद्धो और युद्धाभ्यासों से पर्यावरण को कितना खतरा है? war-and-environment-in-hindi 5

युद्धो और युद्धाभ्यासों से पर्यावरण को कितना खतरा है?

23 May 2025

Total Visitor

078018
Total views : 142110

Recent Posts

  • वैश्विक स्तर पर आपातकाल जैसे हालातों का आभास
  • मुर्गा लड़ाई यानी टीवी डिबेट को कौन देखता है?
  • आसान है इस षडयंत्र को समझना
  • नार्वे वर्ल्ड गोल्ड मेडल जीत कर दिल्ली आने पर तनिष्क गर्ग का भव्य स्वागत समारोह
  • युद्धो और युद्धाभ्यासों से पर्यावरण को कितना खतरा है?

  • Facebook
  • Twitter
  • Youtube
  • Instagram

Copyright ©  2019 dharmwani. All rights reserved