दिल्ली की मेडिकल कुव्यवस्था के शिकार एक वरिष्ठ पत्रकार की आंखें खोलती रिपोर्ट। आप भी पढ़कर अंदाजा लगाइए कि आपने इस पार्टी की सरकार बना कर कितने पैसे बचाए और कितना सुकून पाया।
दिल्ली में हर ओर मौत का नंगा नाच चल रहा है, मानवता शर्मसार है, हर ओर लाशों के ढेर लगे हैं, हालात यह हैं कि मरने के बाद भी शमशानों में अर्थियों पर पड़ीं लाशें लाइन में लगीं हैं और पृथ्वी लोक से मुक्ति पाने के लिए अपनी बारी का घंटों इंतजार कर रहीं हैं, शमशानों में हालत ये हो गई है कि जो अपनों के गम में रोते बिलखते जाते हैं, वो कुछ देर में पत्थर दिल होकर सुन्न पड़ जाते हैं, फिर भगवान से ये दुआ माँगते हैं कि प्रभु मेरे प्रियजन के शरीर का जल्दी से दाह-संस्कार करा दो, लेकिन दिल्ली को मुसीबत में धकेल कर दिल्ली का मालिक लापता हो गया है।
आज मैं आपको अपनी आपबीती सुना रहा हूँ, 30 अप्रैल 2021 हमारी जिंदगी में काला अध्याय जोड़ गया, जिसकी कसक अब जीवन भर रहेगी। सुबह अचानक मेरी माताजी (शांति देवी, 75) की तबियत बिगड़ने लगी, मैंने कई अस्पतालों को सम्पर्क किया, कई डाॅक्टरों को फोन लगाए। मेरे जितने भी सोर्स थे, मैंने सब इस्तेमाल किए, जितने भी मंत्री, मिनिस्टर, मेयर, पार्षद, अधिकारी सबको सम्पर्क किया, लेकिन कोई काम नहीं आया, (मैं ये दोष नहीं दे रहा हूँ कि किसी ने मेरे लिए कुछ नहीं किया, लेकिन आज दिल्ली की कूव्यवस्था के आगे सब लाचार हो गए) मेरी माँ ने मेरी आँखों के सामने ही मेरी गाड़ी में ही दम तोड़ दिया।
जरा सोच कर देखो, हर तरह से सक्षम पाँच-पाँच बेटों की माँ इलाज के अभाव में उन्हें छोड़ कर चली जाए, तो कैसा लगेगा, जीवन भर अपने आपको तोप मानने वाले (दुनियाभर के जरूरत मंद लोगों की 24 घंटे मदद करने वाले) हम पाँचों भाई बेबस होकर देखते रह गए। दिल्ली की कु-व्यवस्था के कारण हम सब देखते-देखते ही अनाथ हो गए।
माताजी के जाने के बाद हमारे सामने एक नई जंग शुरू हो गई, जंग थी, उनके दाह-संस्कार की? निगम बोध घाट में 16 से 17 घंटे की वेटिंग थी और वहाँ पर अर्थियों पर पड़ी लाशें, लाइन में लगकर अपनी बारी का इंतजार कर रहीं थीं, गीता काॅलोनी शमशान घाट के दरवाजे बंद थे और वहाँ अंदर दाह-संस्कार के लिए लाशें ही लाशें रखीं हुईं थीं, पूर्वी दिल्ली के सभी शमशान फुल थे और अगले दो दिन तक के रजिस्ट्रेसन हो चुके थे।
माताजी का शरीर प्रीत विहार स्थित मेट्रो हाॅस्पिटल में रखा हुआ था। उनके शरीर को अगर घर लाते तो, आने वाले 2 से 3 दिन तक शमशान घाट में नम्बर नहीं आता, दिल्ली में लाॅकडाउन के चलते बर्फ मिलती नहीं, फ्रीजर हैं नहीं, तो उनके शरीर को कैसे सम्भालते।
करीब तीन घंटे तक कोशिश करने के बाद, एक पुराने मित्र ने कुछ जुगाड़ किया, तब जाकर गाजीपुर शमशान घाट में रात में ही उनका अंतिम संस्कार कराया, ये उतना ही दुःखद और पीड़ादायक था, जितना कभी राजा हरीशचंद्र की पत्नी को अपने बेटे के शरीर का दाह-संस्कार कराते वक्त मणिकर्णिका घाट में रहा होगा।
किसी भी पार्टी के अंधभक्तों को छोड़ दें, तो बाकी सभी वो लोग और परिवार मेरी बात से सहमत होंगे, जो इस महामारी से गुजर रहे होंगे। दिल्ली में कोविड के नाम पर सभी अस्पतालों को बंद कर दिया गया है, कोरोना रिपोर्ट के बहाने दूसरी बीमारियों से ग्रस्त मरीजों को लिया ही नहीं जा रहा है, रिपोर्ट के बिना कोई मरीज को हाथ तक नहीं लगाता, ऐसे में वो मरीज कहाँ जाएँ, जो दूसरी बीमारियों से ग्रस्त हैं। या तो दिल्ली के ऐसे लाखों लोग मर चुके हैं या फिर इलाज के अभाव में मरने वाले हैं (मेरी माताजी की तरह) दिल्ली की मार्केट से दवाइयाँ गायब हैं, इंजेक्शन गायब हैं, कोविड में फायदा पहुँचाने वाला एक-एक समान, आक्सीजन गैस, सिलेंडर, निबुलाइजर, खांसी जुकाम की दवाई, भाप लेने की स्टीम मशीन, हाथों में पहनने वाले दस्ताने, आक्सीमीटर, सबकी ब्लैक मार्केटिंग हो रही है। जो लोग निश्वार्थभाव से फ्री में आक्सीजन या अन्य चीजें उपलब्ध करा रहे हैं, उन्हें कम्पलेंट कर फँसाया जा रहा है।
केजरीवाल लोगों को बता रहा है कि हजारों बेड के कोविड सेंटर खोले जा रहे हैं, लेकिन सावधान ये कोविड सेंटर नहीं हैं, ये कोविड केयर सेंटर हैं, जहां आक्सीजन लेबल 90 के ऊपर वाले मरीजों को कोरनट्वाइन करने के लिए एक तरह से बंद कर दिया जाता है। इसके गेट पर आम आदमी पार्टी के खाकी वर्दी वाले वो वालियंटर्स खड़े कर दिए गए हैं, जिन्हें केजरीवाल नौकरी देकर अपनी पार्टी के लिए पालता है। ये नकली पुलिस लोगों को बाहर से बाहर ही टरका देते हैं। फ्री, बिजली पानी और ईमानदार नेता के चक्कर में अगर हम किसी को भी वोट दे देंगे तो ऐसा ही होगा। आज की इस अव्यवस्था के लिए हम खुद ही जिम्मेदार हैं।
– कुमार गजेन्द्र