दशहरा बीत चुका था, दीपावली समीप थी, तभी एक दिन कुछ युवक-युवतियों की NGO टाइप टोली एक काॅलेज में आई। उन्होंने छात्रों से कुछ प्रश्न पूछे। एक प्रश्न ऐसा जिससे काॅलेज में सन्नाटा छा गया। उन्होंने पूछा, ‘जब दीपावली भगवान राम के 14 वर्षों के वनवास से अयोध्या लौटने के उत्साह में मनाई जाती है, तो दीपावली पर लक्ष्मी पूजन क्यों होता है श्री राम की पूजा क्यों नही?’
प्रश्न पर सन्नाटा छा गया। उस समय कोई सोशल मीडिया तो था नहीं, स्मार्ट फोन भी नहीं थे। किसी को कुछ नहीं पता तब सन्नाटा चीरते हुए, एक हाथ, प्रश्न का उत्तर देने हेतु ऊपर उठा।
उसने बताया कि ‘दीपावली उत्सव दो युग ‘सतयुग’ और ‘त्रेता युग’ से जुड़ा हुआ है। सतयुग में समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी उस दिन प्रगट हुई थीं इसलिए ‘लक्ष्मी पूजन’ होता है। भगवान श्रीराम भी त्रेता युग में इसी दिन अयोध्या लौटे थे। उसी खुशी और उत्साह में अयोध्या के वासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया था। तब से यह एक उत्सव बन गया और वहीं से इसका नाम ‘दीपावली’ हो गया इसीलिए इस पर्व के दो नाम हैं, जिनमें से एक है ‘लक्ष्मी पूजन’ जो सतयुग से जुड़ा है और दूसरा नाम ‘दीपावली’ है जो त्रेता युग से जुड़ा है जो प्रभु श्रीराम के वनवास से लौटने पर मनाया जाता है। हमारे इस उत्तर के बाद वहां थोड़ी देर तक सन्नाटा छाया रहा, क्योंकि किसी को भी उत्तर नहीं पता था। यहां तक कि प्रश्न पूछ रही टोली को भी नहीं। कुछ देर बाद सभी ने खूब तालियां बजाई। उसके बाद एक समाचार पत्र ने उस उत्तर देने वाले विद्यार्थी का साक्षात्कार (इंटरव्यू) भी किया। उस समय समाचार पत्र का साक्षात्कार होना बहुत बड़ी बात हुआ करती थी।
बाद में पता चला कि वो टोली आज की शब्दावली के अनुसार ‘लिबरल’ (वामपंथ) की थी, जो हर काॅलेज में जाकर युवाओं के मस्तिष्क में यह बात डाल रही थी कि ‘लक्ष्मी पूजन का औचित्य क्या है, जब दीपावली श्री राम से जुड़ी है?’ कुल मिलाकर वह छात्रों का ब्रेनवाॅश कर रही थी लेकिन उस उत्तर के बाद, वह टोली गायब हो गई।
एक और प्रश्न भी था कि लक्ष्मी और श्री गणेश का आपस में क्या रिश्ता है और दीपावली पर इन दोनों की पूजा क्यों होती है तो इसका सही उत्तर है – ‘लक्ष्मी जी जब सागर मन्थन से प्रकट हुईं और भगवान विष्णु से विवाह किया तो उन्हें सृष्टि में धन और ऐश्वर्य की देवी बनाया गया तो लक्ष्मी जी ने उस धन को बाँटने के लिए मैनेजर के तौर पर एक देवता को चुना जो कुबेर कहलाये। कुबेर कुछ कंजूस प्रवृत्ति के थे इसलिए धन बाँटने की बजाय स्वयं उस धन के भंडारी बन कर बैठ गए।
इस बात से माता लक्ष्मी परेशान हो गई। उनकी मनुष्य रूपी सन्तान को लक्ष्मी यानी धन की उचित कृपा नहीं मिल रही थी इसलिए उन्होंने अपनी इस व्यथा को भगवान विष्णु को बताया। भगवान विष्णु ने उन्हें सलाह दी कि ‘तुम मैनेजर बदल लो।’ तब माता लक्ष्मी ने कहा कि – ‘यक्षों के राजा कुबेर मेरे परम भक्त हैं। यदि मैं ऐसा करती हूं तो उन्हें बुरा लगेगा।’ तब भगवान विष्णु ने उन्हें श्री गणेश जी की दीर्घ और विशाल बुद्धि को प्रयोग करने की सलाह दी। माता लक्ष्मी ने श्री गणेश को धन का बंटवारा उचित तरीके से करने को कहा।
श्री गणेश ठहरे महा बुद्धिमान। वे बोले, ‘माता, मैं जिसका भी नाम बताऊंगा, उस पर आप कृपा कर देना। कोई किंतु, परन्तु नहीं। माता लक्ष्मी ने भी हाँ कर दी। अब श्री गणेश लोगों के सौभाग्य के साथ विघ्न यानी रुकावटों आदि को दूर कर उनके लिए धनागमन के द्वार खोलने लगे।
हालांकि, कुबेर आज भी उस धन के भंडारी हैं, लेकिन माता लक्ष्मी की कृपा से श्री गणेश उस धन को सैंक्शन करने और करवाने वाले बन गए। गणेश जी की बुद्धि और दरियादिली देख, माता लक्ष्मी ने अपने मानस पुत्र श्री गणेश को आशीर्वाद दिया कि जहाँ वे अपने पति नारायण के संग न हों, वहाँ उनका पुत्रवत गणेश उनके साथ रहे।
दीपावली आती है कार्तिक अमावस्या को। भगवान विष्णु उस समय योगनिद्रा में होते हैं। वे जागते हैं ग्यारह दिन बाद, देव उठावनी एकादशी को। माता लक्ष्मी को पृथ्वी भ्रमण करने आना होता है। शरद पूर्णिमा से दिवाली के बीच के पन्द्रह दिनों में तो वे संग ले आती हैं श्री गणेश जी को इसलिए दीपावली को लक्ष्मी-गणेश की पूजा होती है।