भारत में लोगों के बीच राजनीतिक तापमान का ग्राफ बहुत ऊंचा उठा है। इन सब परिस्थितियों के बीच एक बात बड़ी शिद्दत के साथ कही जा सकती है कि चुनाव तो आते-जाते रहते हैं किंतु हमें यह सोचने की आवश्यकता है कि हम जो कुछ भी कर रहे हैं, क्या उसका दायरा सिर्फ अपने तक ही सीमित है या उसका सरोकार थोड़ा बहुत राष्ट्र एवं समाज हित से भी है।
चूंकि, चुनाव तो राजनीतिक दलों के स्तर से होते हैं। यदि कोई व्यक्ति निर्दलीय चुनाव लड़ता है तो उसे कामयाब होने के लिए सर्व दृष्टि से चाक-चैबंद रहना पड़ता है, तब जाकर निर्दलीय प्रत्याशी आम जनता के बीच अपनी जगह बना पाता है। इस दृष्टि से यदि राजनैतिक दलों की बात की जाये तो उन्हें कुछ बातों पर विशेष रूप से ध्यान देना होगा। सबसे पहले कार्यकर्ताओं में इस बात का जुनून पैदा करना होगा एवं विश्वास दिलाना होगा कि व्यक्ति से बड़ा दल और दल से बड़ा देश है।
चुनावों में टिकट मांगना सभी का अधिकार है किन्तु जिसे मिल जाये, उसके साथ सभी को लग जाना चाहिए। इस संबंध में नेतृत्व को यह विश्वास दिलाना होगा कि उसने जो भी निर्णय लिया है, वह बिल्कुल निष्पक्ष है। नेताओं एवं कार्यकर्ताओं में इस बात की ललक पैदा करनी होगी कि अपने क्षेत्र को मैं ही सजाऊं एवं संवारूंगा। क्षेत्र एवं पोलिंग की जानकारी कार्यकर्ताओं को पूर्ण रूप से होनी चाहिए। कार्यकर्ताओं के पास प्रत्येक बूथ की जानकारी सामाजिक, भौगोलिक या यूं कहें कि सर्वदृष्टि से होनी चाहिए।
चुनाव लड़ने एवं लड़वाने वालों के लिए प्रशिक्षण समय-समय पर होते रहने चाहिए। आजकल राजनीतिक दलों में एक प्रवृत्ति तेजी से पनपी है कि जीतने पर सारा श्रेय प्रत्याशी एवं उसकी कुशल रणनीति को जाता है किन्तु प्रत्याशी यदि चुनाव हार जाता है तो उसकी जिम्मेदारी संगठन एवं कार्यकर्ताओं पर थोप दी जाती है।
राजनीतिक दलों में कार्यकर्ताओं के बीच एक धारणा यह पनपती जा रही है कि टिकट या पद तभी मिलेगा, जब वे नेताओं के करीब होंगे। संभवतः, इसीलिए तमाम कार्यकर्ता पराक्रम के बजाय परिक्रमा में लग जाते हैं, दमदार बनने के बजाय दुमदार बनने की दिशा में अग्रसर हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में पार्टी एवं संगठन का नुकसान हो जाता है। कल्पना की जाये कि यदि सभी कार्यकर्ता इसी दिशा में चल पड़ें तो क्या होगा? ऐसी स्थिति से बचने के लिए राजनैतिक दलों को सर्वदृष्टि से प्रयास करना होगा।
भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय संगठन महासचिव श्री रामलाल जी अकसर कहा करते थे कि कुछ कार्यकर्ता दिल के करीब होते हैं तो कुछ दल के। जो दिल के करीब हैं उन्हें दल के करीब ला दिया जाये और जो दल के करीब हैं, उन्हें दिल के करीब ला कर उन्हें भी दल में मिला दिया जाये तो सारी समस्याओं का समाधान हो जायेगा। कमोबेश सभी नेताओं एवं कार्यकर्ताओं को इसी रास्ते पर आना होगा। इसी से राष्ट्र एवं समाज का हित हो सकता है।
भारतीय जनता पार्टी की बात की जाये तो यह पार्टी ‘कैडर बेस’ है किंतु बदलती परिस्थितियों के साथ अब इसमें ‘लीडर बेस’ पार्टी का मिश्रण भी घुल चुका है। अतः यह कहा जा सकता है कि वक्त के साथ भाजपा ‘कैडर एवं लीडर बेस’ दोनों रूपों में उपस्थित है। ऐसा लगता है कि बूथ स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक विधिवत इसकी इकाइयां गठित हैं। पार्टी अब बूथ समिति से आगे बढ़कर पंच परमेश्वर एवं पन्ना प्रमुख तक पहुंच चुकी है। देश के कुछ स्थानों पर तो देखने को मिला है कि ‘हाउस प्रमुख’ तक बने हुए हैं।
पार्टी को स्थायी रूप से समग्र दृष्टि से कामयाब बनाना है तो नेताओं एवं कार्यकर्ताओं को तकनीकी दृष्टि से मजबूत होना होगा। तकनीकी जानकारी यदि नेताओं एवं कार्यकर्ताओं को होगी तो अपनी किसी भी बात को आसानी से आम जनता के बीच पहुंचाया जा सकेगा। नेतृत्व को एक बात की विशेष रूप से नजर रखनी होगी कि यदि किसी को पार्टी में पद या टिकट मिल जाये तो वह अपने को विजेता के रूप में पेश न करे। जब कोई अपने को विजेता के रूप में पेश करता है तो उससे अन्य कार्यकर्ताओं में प्रतिक्रिया की भावना पनपती है।
किसी व्यक्ति को यदि कुछ प्राप्त हो जाये तो उसे ऐसा भाव प्रदर्शित करना चाहिए जिससे यह साबित हो सके कि उसे कुछ मिला ही नहीं है। इससे उस कार्यकर्ता की स्वीकार्यता और प्रतिष्ठा और अधिक बढ़ेगी क्योंकि क्रिया की प्रतिक्रिया प्रकृति का नियम एवं मानव की स्वाभाविक प्रवृत्ति है। इससे तो ऋषि-मुनि भी नहीं बच सके हैं तो आम आदमी की क्या बात की जाये?
कुल मिलाकर मेरा यह सब लिखने का आशय मात्र यही है कि ‘चुनावी प्रबंधन’ एक विज्ञान है या यूं कहें कि ‘इंजीनियरिंग’ है, इसलिए इसे उसी रूप में लेना है। अब यह नेतृत्व पर निर्भर करता है कि वह इस विज्ञान को किस रूप में लेता है। जहां तक मेरा मानना है कि राजनैतिक दलों को इस दिशा में आगे बढ़ना ही चाहिए। सामूहिकता की भावना में लोग बंधे एवं जुड़े रहें इसके लिए जरूरी है कि कार्यकर्ताओं में ऐसी भावना का व्यावहारिक रूप से प्रचार-प्रसार किया जाये। कदम-कदम पर यदि इस प्रकार के भाव का प्रदर्शन नेताओं एवं कार्यकर्ताओं के द्वारा होगा तो स्वतः राष्ट्र एवं समाज हित में निहित स्वार्थों से ऊपर उठने की भावना प्रबल होगी और इसी भाव की राष्ट्र एवं समाज को नितांत आवश्यकता है।
– हिमानी जैन