जैसे-जैसे दुनिया प्रगति की राह पर अग्रसर होती जा रही है वैसे-वैसे समस्याओं का ग्राफ भी बढ़ता जा रहा है। एक तरफ तो मानव अंतरिक्ष में बस्तियां बसाकर वहां रहने की योजना बना रहा है, दूसरी तरफ धरती पर तमाम सुख-सुविधाओं और ऐशो-आराम के बावजूद बेचैनी बढ़ती जा रही है। दुनिया तकनीकी रूप से जितनी मजबूत हुई है, उसके खतरे भी उतने ही बढ़ रहे हैं। भारत सहित पूरी दुनिया क्षेत्रवाद, जातिवाद, भाषावाद, संप्रदायवाद, नस्लवाद, नक्सलवाद, आतंकवाद, गोत्रवाद जैसी तमाम तरह की समस्याओं को लेकर उलझी हुई है।
कमोबेश इन्हीं मुद्दों को लेकर भारत सहित दुनिया के तमाम हिस्सों में उथल-पुथल मची हुई है। इसकी तह में जाकर गहराई से यदि इसका विश्लेषण किया जाये तो स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है कि अधिकांश मामलों में जो समर्थ हैं, वही दूसरों के लिए तनाव का कारण बन रहे हैं। कोई पैसे के अहंकार में मस्त है तो कोई सत्ता के तो कोई हथियारों के संग्रह की वजह से मस्त है। मस्ती का मतलब मेरा इस बात से है कि वह अपने आप को इतना सक्षम समझ रहा है कि जैसे उसे किसी की कोई परवाह ही नहीं है। उसे लगता है कि जो कु्रछ भी वह कर रहा है, वही ठीक है, बाकी लोग जो कुछ भी कर रहे हैं वह गलत है।
वैश्विक स्तर पर जिन देशों को महाशक्ति होने का रुतबा हासिल है और विश्व के अधिकांश संसाधनों पर उनका अधिकार है। जो संसाधन उनके अधिकार में नहीं हैं, उन पर कब्जे की कोशिश कर रहे हैं। महाशक्तियां अपने हथियार बेचकर अपने को और अधिक शक्तिशाली बनाने में लगी हैं तो वहीं दूसरी तरफ जिन देशों को वे हथियार बेच रही हैं, उन्हें लगता है कि अब तो उनके पास हथियार है, इसलिए उनका कोई क्या बिगाड़ पायेगा?
कहने का आशय यही है कि महाशक्तियां तो हथियार बेचकर अपनी आर्थिक सेहत सुधारने में लगी हैं किन्तु आर्थिक रूप से कमजोर राष्ट्र महाशक्तियों के इशारों पर घर फंूक तमाशा देखने के लिए विवश हैं यानी कि वर्तमान स्थिति में पूरी दुनिया में जो भी उथल-पुथल देखने को मिल रही है, वह सब महाशक्तियों के इशारे पर ही हो रही है। कमाल की बात तो यह है कि दुनिया को लगता है कि महाशक्तियों का आपस में टकराव बढ़ रहा है, किन्तु वे आपस में टकराती नहीं हैं। वे तो अपना हथियार बेचने एवं दूसरे देशों के संसाधनों पर कब्जा करने के लिए व्यूह रचना बनाने में लगी रहती हैं।
दुनिया के तमाम देशों को इस बात का भ्रम है कि महाशक्तियां उनके साथ हैं किन्तु वास्तव में वे किसी के साथ होती ही नहीं हैं, वे तो अपना ऊल्लू सीधा करने में लगी रहती हैं। हां, इस मामले में एक बात जरूर देखने को मिलती है कि जो देश महाशक्तियों से हथियार खरीद लेते हैं, उन्हें लगता है कि उनका कोई कुछ बिगाड़ नहीं पायेगा। इसी गुरूर में वे अपने पड़ोसी देशों या किसी अन्य देश से बेवजह तनाव बढ़ा लेते हैं, जिसका खामियाजा उन्हें भारी कीमत देकर चुकाना पड़ता है। वैसे भी पूरे दुनिया को इस बात का पता है कि महाशक्तियां यदि किसी देश की मदद करती हैं तो पूरे ब्याज के साथ वसूल भी लेती हैं। महाशक्तियों की डायरी में गुप्तदान या बिना किसी स्वार्थ के मदद के लिए कोई जगह ही नहीं है।
चूंकि, महाशक्तियों के पास भारी संख्या में हथियार हैं, इसलिए उनके आत्म विश्वास का ग्राफ बहुत ऊंचा रहता है। दुनिया के तमाम हिस्सों की कुछ घटनाओं को उदाहरण के रूप में लिया जाये तो यह बात अपने आप स्पष्ट हो जायेगी। अफगानिस्तान में सोवियत संघ एवं अमेरिका एक लंबे समय तक रहे किन्तु अंततोगत्वा उसका कोई परिणाम नहीं निकला। थक-हारकर दोनों देशों को वहां से जाना पड़ा। जिस तालिबान को समाप्त करने के लिए इतना लंबा संघर्ष हुआ, आज उन्हीं तालिबानियों का वहां शासन है।
हथियारों के संग्रह के नाम पर इराक के खिलाफ अमेरिका ने युद्ध छेड़ा किन्तु उसका कोई परिणाम नहीं निकला। इजराइल और फिलिस्तीन का युद्ध किसी न किसी मामले को लेकर चलता रहता है किन्तु निर्णायक स्थिति आज तक नहीं आई। आजकल देखने में आ रहा है कि रूस-यूक्रेन का युद्ध धीरे-धीरे आगे बढ़ता जा रहा है किन्तु वहां भी किसी निर्णायक स्थिति की कोई संभावना नहीं है। इस प्रकार और भी जगह किसी न किसी कारण से तनाव देखने को मिल रहे हैं किन्तु उनके समाधान की फिलहाल कोई गुंजाइश नहीं दिख रही है।
कुल मिलाकर कहने का आशय यही है कि यदि हथियारों के दम पर दुनिया में शांति की स्थापना होती तो अब तक हो गई होती किन्तु इस संदर्भ में यदि तबाही की चर्चा की जाये तो वह अनंत है जिसकी गणना ही नहीं हो सकती है। वह दृश्य पूरी दुनिया को आज भी याद है जब अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान छोड़कर जाने लगे तो कई लोग तालिबानियों के खौफ से देश से भागने के लिए हवाई जहाजों और हेलीकाॅप्टरों से लटक गये और कइयों की तो गिर कर मौत भी हो गई। म्यांमार के काफी संख्या में शरणार्थी कई देशों में शरण लिये हुए है। साम्राज्यवादी देश चीन द्वारा तिब्बत पर कब्जा करने के बाद काफी संख्या में तिब्बती भारत सहित कई देशों में शरण लिये हैं। वर्तमान में यह कहना अधिक उपयुक्त होगा कि किन्हीं न किन्हीं कारणों से विश्व में शरणार्थियों की संख्या बढ़ती जा रही है।
इस प्रकार यदि देखा जाये तो यह स्पष्ट हो जाता है कि दुनिया में जहां कहीं भी उथल-पुथल मची हुई है उसमें हथियारों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है। वैश्विक स्तर पर यदि हथियारों को समाप्त कर दिया जाये या हथियारों की संख्या को सीमित कर दिया जाये तो तबाही का मंजर कम होना शुरू हो जायेगा। हथियारों की बात की जाये तो उसके प्रकार भी बदलते जा रहे हैं। रासायनिक एवं जैविक हथियार सहित तमाम तरह के हथियार पूरी दुनिया को दहशत में डाले हुए हैं।
जीवाणुओं एवं विषाणुओं के माध्यम से जो तबाही हो रही है, उसे भी हथियारों का ही रूप माना जाना चाहिए। अभी पूरी दुनिया ने देखा कि ‘कोरोना’ नामक वाइरस ने कितनी तबाही मचाई? कोरोना वाइरस के बारे में कहा गया कि यह चीन की प्रयोगशाला से निकला है। पूरी दुनिया में तमाम लोगों ने यह माना कि ऐसा चीन ने जान-बूझकर किया। सच क्या है, यह तो जांच के बाद पता चलेगा किन्तु इसमें कोई शक नहीं कि ‘कोरोना वाइरस’ से घातक आज तक कोई हथियार नहीं बन पाया। डेंगू, चिकनगुनिया एवं अन्य कोई बीमारी बहुत व्यापक स्तर पर होती है तो यही कहा जाता है कि इसके पीछे कोई न कोई वाइरस है। ये वाइरस पूरी दुनिया में देखते-देखते इतना फैल जाता है कि उस पर नियंत्रण करना बहुत मुश्किल हो जाता है।
आजकल ‘लंपी’ नामक वाइरस की चर्चा बहुत जोरों पर है। यह वाइरस कैसा है, कहां से आया, इस पर नियंत्रण कैसे किया जा सकता है, इसकी चर्चा बहुत जोर-शोर से हो रही है। यदि इन सब बिंदुओं पर विचार किया जाये तो इन्हें हथियारों की श्रेणी में ही रखा जाना चाहिए।
हथियार सिर्फ मानव जाति को ही नुकसान नहीं पहुंचाते हैं बल्कि सृष्टि के समस्त प्राणियों को नुकसान पहुंचाते हैं। साथ ही साथ पूरे ब्रह्मांड को दूषित भी करते हैं। दूसरे विश्व युद्ध में अमेरिका द्वारा जापान के नागाशाकी और हिरोशिमा पर गिराये गये परमाणु बम के दुष्प्रभाव आज भी देखने को मिलते हैं। आज पूरी दुनिया में आतंकवादी, नक्सलवादी, नस्लवादी एवं अन्य तरह के तत्व जिन हथियारों का प्रयोग कर रहे हैं, उससे सृष्टि के समस्त जीवों का अस्तित्व संकट में आ गया है। अब सवाल यह उठता है कि जब सभी समस्याओं की जड़ में हथियारों की होड़ ही है तो उससे निपटने एवं बचने के उपाय क्यों न किये जायें? सृष्टि के समस्त प्राणियों का अस्तित्व यदि बचाये रखना है तो वैश्विक स्तर पर हथियारों से दूरी बनानी ही होगी।
अब सवाल यह उठता है कि जिन देशों के आर्थिक स्रोत का प्रमुख जरिया ही हथियारों की बिक्री है तो उनको यह बात कैसे समझ में आयेगी कि प्राणियों के अस्तित्व के लिए हथियारों से दूरी बनाना बहुत जरूरी है। हथियारों से दूरी बनाने के लिए वैश्विक स्तर पर कैसे वातावरण बनेगा और दुनिया इसके लिए कैसे प्रेरित होगी तो इसके लिए पूरी दुनिया को घूम-फिर कर भारतीय सनातन संस्कृति की शरण में आना ही होगा। यह बात मैं बार-बार किसी न किसी संदर्भ में अपने लेखों में लिखती रही हूं कि दुनिया हथियारों से दूरी के लिए तभी प्रेरित होगी जब पूरे विश्व के लोग भारतीयों की तरह पूरी वसुधा को अपना परिवार मानें और ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के मार्ग पर आगे बढ़ें।
कोई भी व्यक्ति यदि पूरी दुनिया को अपना परिवार मान लेगा तो साम्राज्यवाद की तरफ उसका ध्यान नहीं जायेगा। महाशक्तियां कमजोर देशों का शोषण करने की बजाय उनका पोषण करेंगी। ऐसे में भगवान महावीर के दो उपदेशों – ‘अहिंसा परमो धर्मः’ एवं ‘जियो और जीने दो’ को अंगीकार करना ही होगा। भगवान महावीर के इन्हीं दो उपदेशों में पूरी दुनिया की शांति का रहस्य छिपा हुआ है।
‘अहिंसा परमो धर्मः’ का सीधा एवं स्पष्ट अर्थ है कि अहिंसा से बढ़कर दुनिया का कोई भी धर्म नहीं है। ‘जियो और जीने दो’ का सीधा सा अभिप्राय इस बात से है कि यदि कोई व्यक्ति स्वयं शांति एवं सुख से जीना चाहता है तो उसे दूसरों के प्रति भी ऐसा ही भाव रखना चाहिए। भगवान महावीर के इन दोनों उपदेशों का अध्ययन कर यदि महाशक्तियां समझ लें तो उन्हें शांति का रहस्य समझ में आ जायेगा। इस संबंध में अवश्यकता इस बात की है कि इसकी पहल स्वयं महाशक्तियों को ही करनी होगी क्योंकि कमजोर देशों के वश की बात नहीं है कि वे शांति की दिशा में कोई पहल कर सकें।
वैसे भी देखा जाये तो दुनिया में यदि कोई भीषण युद्ध होता है तो उससे उत्पन्न हुई समस्याओं से सभी देशों को दो-चार होना पड़ता है। युद्ध से जो लोग विस्थापित होते हैं उनकी जिम्मेदारी पूरी दुनिया की हो जाती है। आज वैश्विक स्तर पर शरणार्थियों की समस्या सबसे जटिल समस्या है। दुनिया में यदि कहीं भी कोई हथियार छोड़ा जाता है तो उससे न केवल मनुष्य एवं जीव-जन्तुओं की मृत्यु होती है अपितु पूरा वातावरण प्रभावित होता है यानी जल, थल एवं नभ तीनों ही प्रभावित होते हैं। हथियारों के प्रकोप से यदि धरती के जीव-जन्तु समाप्त होते हैं तो जल प्राणी भी उससे तबाह होते हैं। इसके अतिरिक्त नभ में विचरण करने वाले जीव-जन्तु भी हथियारों के दुष्प्रभावों से नहीं बच पाते हैं।
कुल मिलाकर कहने का आशय यह है कि पूरे ब्रह्मांड के प्राणियों का अस्त्तिव यदि बचाना है तो हथियारों से दूरी बनानी ही होगी अन्यथा दुनिया को विनाश के गर्त में जाने से कोई रोक नहीं सकता है। अभी हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने समरकंद में एक बहुत ही अच्छी बात यह कही कि युद्ध से किसी भी समस्या का समाधान होने वाला नहीं है। पूरी दुनिया को श्री नरेंद्र मोदी जी के इस संदेश को समझने एवं उस पर अमल करने की आवश्यकता है। इसी से प्राणियों का अस्तित्व बचाया जा सकता है। इसके अलावा अन्य कोई विकल्प भी नहीं है। आज नहीं तो कल इसी रास्ते पर आना ही होगा इसलिए इस रास्ते पर जितना शीघ्र आया जाये, उतना ही अच्छा होगा।
– सिम्मी जैन