अजय सिंह चौहान || धर्म और अध्यात्म की प्राचीनतम नगरी और सात मोक्ष पुरियों में से एक उज्जयनी नगरी जिसे आज उज्जैन के नाम से जाना जाता है उसके अधिपति और 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक भगवान महाकाल के मंदिर के बिल्कुल नजदीक और प्राचीन रुद्रसागर झील के किनारे पर स्थित है प्रथमपूज्य भगवान श्री गणेश की एक ऐसी विशाल प्रतिमा जिसको अपने आप में अनोखी प्रतिमा कहा जाय तो आश्चर्य नहीं होगा। क्योंकि इस विशालकाय पावन मूर्ति में ऐसी कई खुबियां है जो आश्चर्यचकित करने वाली कही जा सकती है।
उज्जैन में स्थित बड़ा गणेश के इस मंदिर की स्थापना स्वतंत्रता सेनानी पंडित सूर्य नारायण व्यास के अथक प्रयासों द्वारा हुई थी। और गणेश जी की इस विशालकाय प्रतिमा के निर्माण में अनेक प्रकार के प्रयोग भी किए गए थे। जिसमें सबसे पहले तो बता दें कि भगवान गणेश की यह मूर्ति एक विशालकाय मूर्ति है इसलिए इसे बड़ा गणेश के नाम से जाना जाता है, और कहा जाता है कि गणेश जी की इस विशालकाय प्रतिमा को तैयान करने में लगभग ढाई वर्ष का समय लगा था।
भगवान गणेश की यह विशालकाल मूर्ति विश्व की सबसे ऊँची और विशाल गणेश जी की मूर्तियों में से एक मानी जाती है। यह मूर्ति करीब 18 फीट ऊंची और 10 फीट चैड़ी है। जबकि मूर्ति के दोनों ओर खड़ीं रिद्धि और सिद्धि की मूर्तियों को मानव आकार में ही दिखाया गया है। गणेश जी की इस मूर्ति की सूंड दक्षिणावर्ती दिखाई गई है जो बहुत ही कम देखने को मिलती है। कहा जाता है कि इस विशाल प्रतिमा को बनाने में सीमेंट का प्रयोग बिलकुल भी नहीं किया गया है। बल्कि सिमेंट के स्थान पर इसमें गुड़ और मेथीदाने का उपयोग किया गया है। और अन्य सामग्रियों में परंपरागत रूप से ईंट, चूने व बालू रेत का ही प्रयोग किया गया है।
गणेश जी की इस विशालकाय प्रतिमा के निर्माण में एक और खास बात यह है कि इसमें देश की सात मोक्ष पुरियों- जैसे मथुरा, माया, अयोध्या, काँची, उज्जैन, काशी व द्वारिका सहित अन्य अनेकों प्रमुख तीर्थ स्थलों की मिट्टी और पवित्र जल लाकर भी इस मूर्ति के निर्माण में उपयोग किया गया है।
बड़ा गणेश का यह मंदिर हमारे प्राचीन और वैदिक काल के उन मंदिरों की स्थिति और कर्तव्यों की भी याद दिलाता है जब हमारे परंपरागत मंदिरों और अन्य पूजा स्थलों के परिसरों में प्रचलित शिक्षा का प्रमुख केन्द्र हुआ करते थे। दक्षिण भारत के कुछ मंदिरों और उनके परिसरों में यह परंपरा तो आज भी कायम है। जबकि, देश के अन्य भागों के पूजा स्थलों या मंदिरों में अब यह परंपरा लगभग समाप्त हो चुकी है। लेकिन उज्जैन का यह बड़ा गणेश मंदिर हमारी सैकड़ों और हजारों सालों की उस परंपरा को आज भी जिंदा रखे हुए है।
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बड़ा गणेश मंदिर आज सिर्फ एक गणेश जी का मंदिर ही नहीं बल्कि हमारी प्राचीनकाल की परंपराओं और धरोहरों की रक्षा करने और उनके आदर्शों का पालन करने और ज्योतिष तथा संस्कृत भाषा पर शिक्षा प्रदान करने के लिए भी एक लोकप्रिय प्रशिक्षण केंद्र है। कई दक्षिण भारतीय मंदिर परिसरों में आज भी ज्योतिष विज्ञान, संस्कृत भाषा, पूजा-पाठ विधि और नैतिक शिक्षा का परंपरागत ज्ञान बांटा जाता है। और बड़ा गणेश का यह मंदिर उन्हीं परंपराओं को कायम रखने का एक छोटा-सा प्रयास है।
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वैसे तो यह मंदिर बड़ा गणेश के मंदिर के नाम से ही जाना जाता है लेकिन इस मंदिर का असली आकर्षण इस मंदिर के मध्य भाग में स्थित अष्टधात्तु यानी आठ धातुओं से बनी पंचमुखी हनुमान जी की एक दुर्लभ मूर्ति को बताया जाता है। इसके अलावा इस मंदिर में भगवान कृष्ण और माता यशोदा को भी मूर्ति रूप में दिखाया गया है जिसमें माता यशादा कृष्ण को स्तनपान करती हुई दिख रही है। इसके अतिरिक्त इस मंदिर परिसर में एक नवग्रह मंदिर भी बना हुआ है। और इस नवग्रह मंदिर का भी अपना एक अलग महत्व बताया जाता है।
बड़ा गणेश का यह मंदिर अपनी शिल्पकला के लिए भी प्रसिद्ध है। गणेश चतुर्थी, श्री कृष्ण जन्माष्टमी और हनुमान जयंती के अवसर पर इस मंदिर में श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या में भीड़ उमड़ती है।
उज्जैन आने वाले और भगवान महाकाल के दर्शन करने वाले श्रद्धालु बड़ा गणेश मंदिर की इस विशाल मूर्ति के दर्शनों के बिना उज्जैन की अपनी यात्रा को अधूरी मानते हैं। बड़ा गणेश के इस मंदिर के समीप ही श्री हरसिद्धि माता का शक्तिपीठ मंदिर भी स्थित है, जहां इस मंदिर से निकल कर पैदल ही जाया जा सकता है।
उज्जैन के रेलवे स्टेशन से लगभग 8 किमी उत्तर-पश्चिम में स्थित इस मंदिर तक आने के लिए शहर में चलने वाले कई संसाधन हैं जिनके माध्यम से यहां पहुंचना एक दम आसान है।
धर्म और अध्यात्म की नगरी उज्जैन जाने के लिए वैसे तो किसी भी मौसम या किसी भी दिन जाया जा सकता है लेकिन अगर परिवार के अन्य सदस्यों खासकर बच्चों ओर बुजुर्गों के साथ जाना हो तो उसके लिए सबसे अच्छा मौसम अक्टूबर से मार्च के मध्य का है। यहां जाने के लिए देश के लगभग हर भाग से रेल सेवा उपलब्ध है। हवाई मार्ग से जाने वालों के लिए यहां का निकटतम हवाई अड्डा इंदौर में है जो यहां से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर है।