
पुराण भारत का सच्चा इतिहास है। पुराणों से ही भारतीय जीवन का आदर्श, भारत की सनातन, संस्कृति तथा भारत के विद्या वैभव के उत्कर्ष का वास्तविक ज्ञान प्राप्त होता है प्राचीन भारतीयता की झाँकी, भारत के वास्तविक उत्कर्ष की झलक पुराणों में ही प्राप्त होती है। पुराण न केवल इतिहास है, अपितु वेद के गूढ तत्त्वों की अनुपम व्याख्या है।
इसमें विश्व कल्याण के त्रिविध उन्नति का सुन्दर सोपान प्रस्तुत किया गया है। पुराणों का प्रधान गौरव यह है कि वेदनेनेति नेति’ और ‘यतो वाचो निवर्तन्ते अप्राप्य मनसा सह’ कह कर जिस परम तत्त्व का प्रतिपादन किया है, पुराणों ने उसको सर्वसाधारण के समक्ष सगुण- शाकार रूप में लाकर उपस्थित कर दिया। पुराणों के भगवान् दीनबन्धु अनाथनाथ तथा पतितपावन के रूप में जीवमात्र के अभिन्न सहयोगी तथा दुःख-दर्द के सच्चे साथी हैं।
हरिवंशपुराण वेदार्थप्रकाशक महाभारत ग्रन्थ का अन्तिम पर्व है। इसमें महाभारत के अन्तिम तीन पर्वो को सम्मिलित किया गया है ‘हरिवंशस्ततः पर्व पुराणं खिलसंज्ञितम् (महा० आदि० २८२)। इसलिये यह ‘हरिवंशपुराण’ और ‘हरिवंश पर्व’ इन दोनों नामों से विख्यात है यह हरिवंशपर्व, विष्णुपर्व और भविष्यपर्व तीन भागों में विभक्त है। भविष्यपर्व में इसके पठन-पाठन और श्रवण की महिमा बताते हुए कहा गया है—’जो फल अठारहों पुराणों के सुनने से मिलता है, वह अकेले हरिवंशपुराण को सुनने से ही प्राप्त हो जाता है।
हरिवंशपुराण को सुनने पर शरीर, वाणी और मन के द्वारा उपार्जित पापों का उसी प्रकार संहार जाता है, जैसे सूर्य के उदय होने पर अन्धकार का नाश हो जाता है जो हरिवंशपुराण को सुनता है और सुनाता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर भगवान् विष्णु के परम धाम को प्राप्त करता है।’ पुत्रप्राप्ति की कामना से तो हरिवंशपुराण के श्रवण की परम्परा भारत में चिरकाल से ही प्रचलित है। इसके श्रवण से पुत्रहीन को पुत्र और निर्धन को धन की प्राप्ति होती है।
इस पुराण के हरिवंशपर्व में सृष्टि प्रक्रिया एवं भूतसृष्टि का वर्णन, वेन और पृथु का चरित्र, वैवस्वत मनु के कुल का वर्णन, धुन्धुमार की कथा, इक्ष्वाकुवंश का वर्णन, पितृकल्प, इन्द्र के स्थानच्युत होने की कथा, त्रिशंकु की कथा, श्रीकृष्ण का प्राकट्य, भगवान् विष्णु के अवतारों की कथाएं, भगवान् विष्णु की योगनिद्रा तथा देवताओं के अंशावतारों का वर्णन है। इसके विष्णुपर्व में श्रीकृष्णावतार का विस्तृत वर्णन, पूतना वध, वृन्दावन-निवास, वर्षा वर्णन, कालियनाग दमन, धेनुकासुर और प्रलम्बासुर का वध, गोवर्धन-धारण, गोपियों के साथ क्रीड़ा, अक्रूर की व्रजयात्रा, केशीवध, कुवलयापीड, चाणूर एवं मुष्टिक- वध, कंस-निधन, उग्रसेन का राज्याभिषेक, गुरुकुल-निवास, जरासंध आक्रमण कालयवन-संहार, द्वारका निर्माण, श्रीकृष्ण-बलराम-विवाह, पारिजातहरण आदि भगवान् श्रीकृष्ण की समस्त लीलाओं का अत्यन्त ही मनोहर विवेचन किया गया है। इसके भविष्यपर्व में भविष्य के राजवंशों एवं कलियुग का वर्णन, पुष्कर प्रादुर्भाव, वराह, नृसिंह और वामन अवतार की कथा का विस्तृत वर्णन, श्रीकृष्ण की कैलाश यात्रा, पौण्ड्रक वध आदि प्रसंगों की अत्यन्त सुन्दर व्याख्या प्रस्तुत की गयी है। संक्षेप में भगवद्भक्ति एवं रहस्यात्मक कथानकों की दृष्टि से यह पुराण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
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