
अजय सिंह चौहान | इस समय दुनिया के कई देश युद्धों में उलझे हुए हैं तो कई शीतकाल जैसे हालातों में दिख रहे हैं। इन हालातों से अलग देखें तो एक तरफ पर्यावरण ने कहर ढहाया हुआ है तो दूसरी तरफ ग्लोबल वार्मिंग भी स्वस्थ्य पर कुछ कम असर नहीं डाल रही है। इसी प्रकार से देखा जाये तो कोरोना महामारी एक बार फिर से उभरने की कगार पर है तो वहीं कई देशों में पीने के पानी का संकट गहराता दिख रहा है। यानी वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में ऐसी कई गंभीर चुनौतियाँ मौजूद हैं, जो संयुक्त रूप से आपातकाल जैसे हालात की ओर इशारा कर सकती हैं, लेकिन यह कहना कि पूर्ण रूप से ‘वैश्विक आपातकाल’ बन रहा है, स्थिति पर निर्भर करता है। वैसे तो उपलब्ध जानकारियों और आंकड़ों के आधार पर यहां एक बहुत ही लंबी लिस्ट बन सकती है किंतु उनमें से कुछ प्रमुख वैश्विक मुद्दों का विश्लेषण करना जरूरी हो जाता है।
सैन्य तनाव और संघर्ष –
सर्वप्रथम तो भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे नवनीर्मित तनाव दुनियाभर के लिए चिंताजनक हैं। भारत ने पाकिस्तान के चार एयरबेस पर मिसाइल हमले किए, जिसके जवाब में पाकिस्तान ने ड्रोन और मिसाइल हमलों की कोशिश की, जो नाकाम रही। हालाँकि, दोनों देशों ने फिलहाल युद्धविराम पर सहमति जताई है। लेकिन यह कब तक जारी रह सकती है कहना निश्चित नहीं है। युद्ध की यह स्थिति क्षेत्रीय स्थिरता के लिए एक बहुत ही बड़ा जोखिम बनी हुई है। भारत और पाकिस्तान से हट कर दुनिया के अन्य हिस्सों में देखें तो लेबनान में हिज्बुल्लाह और इजरायल के बीच चला आ रहा संघर्ष (2023 से अभी तक) और सोमालिया में अल-शबाब की गतिविधियाँ, वैश्विक सुरक्षा को अस्थिर कर रहे हैं।
आर्थिक अनिश्चितता –
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट्स के अनुसार, वैश्विक अर्थव्यवस्था 2025 के अंत तक मंदी की ओर बढ़ती दिख रही है। वैश्विक आर्थिक वृद्धि दर 2024 में 2.9ः थी, जो 2025 में घटकर 2.4ः रहने का अनुमान है। व्यापार तनाव, विशेष रूप से टैरिफ और भूराजनैतिक जोखिम, मुद्रास्फीति को बढ़ा रहे हैं। विकासशील देशों में रोजगार सृजन और निर्धनता में कमी जैसे लक्ष्य और भी चुनौतीपूर्ण हो गए हैं। वैश्विक व्यापार 2025 के अंत तक 33 ट्रिलियन डाॅलर तक पहुँच सकता है, लेकिन व्यापारिक तनाव और नीतिगत अनिश्चितताएँ जोखिम भी बढ़ा रही हैं।
स्वास्थ्य और महामारी –
कोरोना वायरस के मामलों में 2025 में कुछ देशों, जैसे ब्रिटेन और सिंगापुर, में तेजी देखी जा रही है जिसके अंतर्गत सिंगापुर में 5 से 11 मई 2025 के बीच 25,900 नए मामले सामने आए, और विभिन्न अस्पतालों में भर्ती मरीजों की संख्या 30 प्रतिशत बढ़ी है। भारत में भी नए मामलों को लेकर चिंता बढ़ रही है, हालाँकि स्थिति अभी 2020-21 जैसी गंभीर नहीं है। विश्व स्वास्थ्य असेम्बली 2025 में एक नई वैश्विक महामारी पर चर्चा हो रही है, जो भविष्य की महामारियों से निपटने के लिए वैश्विक सहयोग को मजबूत करने का एक प्रयास है।
खाद्य संकट और कुपोषण –
ग्लोबल रिपोर्ट आॅन फूड क्राइसिस 2025 के अनुसार, संघर्ष, जलवायु परिवर्तन, और आर्थिक व्यवधानों के कारण 2024 में वैश्विक कुपोषण के मामले 26.9 मिलियन से बढ़कर 30.4 मिलियन हो गए। सूडान और गाजा जैसे क्षेत्रों में स्थिति विशेष रूप से गंभीर है।
जलवायु आपातकाल –
जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिसके लिए 2025 को ‘अंतरराष्ट्रीय हिमनद संरक्षण वर्ष’ घोषित किया गया है। ताजिकिस्तान जैसे देशों में एक तिहाई ग्लेशियर पहले ही पिघल चुके हैं, जिससे जल सुरक्षा पर खतरा मंडरा रहा है। इसी प्रकार से कुछ मौसमी घटनाएँ, जैसे बाढ़ और अल-नीनो, खाद्य आपूर्ति को नुकसान पहुँचा रही हैं।
आतंकवाद और सामाजिक अशांति –
वैश्विक आतंकवाद सूचकांक 2025 के अनुसार, साहेल क्षेत्र या साहेल पट्टी जिसमें सेनेगल, गाम्बिया, माॅरिटानिया, गिनी, माली, बुर्किना फासो, नाइजर, चाड, कैमरून और नाइजीरिया आदि देश आते हैं वहां भी आतंकवाद उभरता जा रहा है। वहां से निकलकर यही विचारधारा इस्लामिक स्टेट के करीब 22 देशों में सक्रिय होती दिख रही है। तहरीक-ए-तालिबान भी पाकिस्तान में तेजी से बढ़ता जा रहा है। हैरानी की बात तो यह है कि साहेल पट्टी की लंबाई करीब 3,900 किलोमीटर है और यह अटलांटिक महासागर से लेकर लाल सागर तक फैली हुई है। इस पट्टी की चैड़ाई कुछ सौ किलोमीटर से लेकर हजारों किलोमीटर तक भी है। ऐसे में यदि यहां से एक नया आतंकवाद उभर कर दुनिया में फैलता है तो उसका असर अब तक का सबसे घातक परिणाम दे सकता है।
इसके अतिरिक्त भारत में धर्म पूछ कर और कलमा पढ़वा कर हत्याएं करना और आपराध में एक ही समुदाय की सबसे अधिक भागीदारी भी क्षेत्र में एक आपातकाल की स्थिति उत्पन्न कर रही है। इसी प्रकार से यहूदी-विरोधी और इस्लामोफोबिक घटनाएँ, विशेष रूप से अमेरिका में, 2024 में 200 प्रतिशत तक बढ़ी हैं। यह भी एक चिंता का विषय है।
हालाँकि उपरोक्त हर एक प्रकार के मुद्दे गंभीर हैं, लेकिन इन्हें पूर्ण रूप से ‘वैश्विक आपातकाल’ कहना अभी जल्दबाजी हो सकती है, क्योंकि कई क्षेत्रों में स्थिति को नियंत्रित करने के प्रयास हो रहे हैं, जैसे युद्धविराम समझौते और वैश्विक स्वास्थ्य संधि। फिर भी, सैन्य तनाव, आर्थिक मंदी, जलवायु संकट और स्वास्थ्य चुनौतियाँ मिलकर एक जटिल और अस्थिर वैश्विक परिदृश्य बना रहे हैं। सतर्कता, अंतरराष्ट्रीय सहयोग, और त्वरित नीतिगत हस्तक्षेप इन जोखिमों को कम करने के लिए आवश्यक हैं।
इसी तरह यदि हम दूसरी तरह देखें तो वर्तमान युद्धक हालात और वैश्विक चुनौतियों को देखते हुए ‘दुनिया का अंत’ जैसे विचार भावनात्मक रूप से तीव्र हो सकते हैं, लेकिन वैज्ञानिक और तार्किक दृष्टिकोण से भी इसकी संभावना को समझना जरूरी हो जाता है। क्योंकि युद्ध एक ऐसी स्थिति या अवधि है जिसमें केवल दो देशों या कुछ ही लोगों के बीच लड़ाई नहीं होती है। युद्ध में आम तौर पर कई घातक हथियारों, सैन्य संगठन और सैनिकों का निर्दय तरीके से इस्तेमाल होता है। युद्ध एक ऐसी स्थिति है जिसमें एक राष्ट्र दूसरे पर बल का उपयोग करके अपने अधिकारों को लागू करवाने का प्रयास अपने तरीके से करता है और उसमें सफलता भी पाना चाहता है।
क्षेत्रीय संघर्ष –
भारत-पाकिस्तान तनाव – हाल के समाचारों के अनुसार, भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ा है, विशेष रूप से ‘आॅपरेशन सिंदूर’ के बाद, जिसमें भारत ने आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई की। भले ही दोनों देशों ने युद्धविराम की घोषणा की हो, लेकिन परमाणु हथियारों की मौजूदगी के कारण स्थिति संवेदनशील बनी हुई है। कुछ स्रोतों में तीसरे विश्व युद्ध की आशंका जताई गई है, लेकिन यह अभी अनुमान और भविष्यवाणियों तक सीमित है। मध्य पूर्व ऐशिया में इजरायल, गाजा, लेबनान, और हिज्बुल्लाह के बीच संघर्ष और सीरिया, यमन, ईरान जैसे क्षेत्रों में अस्थिरता भी वैश्विक शांति के लिए खतरा बनी हुई है। यूक्रेन-रूस युद्ध, साहेल क्षेत्र में आतंकवाद और म्यांमार, सूडान जैसे देशों में सशस्त्र संघर्ष वैश्विक अस्थिरता को बढ़ा रहे हैं।
परमाणु युद्ध की आशंका –
भारत-पाकिस्तान जैसे परमाणु-सशस्त्र देशों के बीच तनाव और भविष्य मालिका जैसे ग्रंथों में परमाणु हथियारों के उपयोग की भविष्यवाणियाँ चिंता बढ़ाती हैं। हालांकि, वैश्विक शक्तियां (जैसे संयुक्त राष्ट्र) शांति प्रयासों में सक्रिय हैं, और कोई ठोस संकेत नहीं है कि परमाणु युद्ध आसन्न है। सभी जानते हैं कि परमाणु युद्ध का प्रभाव विनाशकारी होगा, हालांकि, वैश्विक समुदाय इसे रोकने के लिए कूटनीतिक और सैन्य संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहा है।
आतंकवाद और साइबर युद्ध –
साइबर आतंकवाद, जैविक हथियार और नार्को-आतंकवाद जैसे नए खतरे उभर रहे हैं। ये पारंपरिक युद्धों से अलग हैं, लेकिन समाज और अर्थव्यवस्था को अस्थिर करने की क्षमता रखते हैं।
अन्य वैश्विक चुनौतियाँ –
जलवायु संकट – ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना, चरम मौसमी घटनाएँ (जैसे बाढ़, लू, और तूफान), और खाद्य असुरक्षा वैश्विक स्थिरता को खतरे में डाल रही हैं। 2025 में 295 मिलियन से अधिक लोग गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं, जो युद्ध, जलवायु परिवर्तन, और आर्थिक संकटों का परिणाम है। जलवायु परिवर्तन से प्राकृतिक आपदाएँ बढ़ रही हैं, जैसे भारत में मई 2025 में लू और बारिश का मिश्रित प्रभाव।
महामारी का खतरा – भविष्य मालिका में 2025 में कोरोना से भी भयंकर महामारी की आशंका जताई गई है, जिसका इलाज मुश्किल हो सकता है। हालाँकि, यह एक भविष्यवाणी है और वैज्ञानिक रूप से पुष्ट नहीं है। वर्तमान में, कोविड-19 के मामले कुछ देशों (जैसे सिंगापुर, ब्रिटेन) में बढ़ रहे हैं, लेकिन वैश्विक स्तर पर 2020-21 जैसी स्थिति नहीं है।
आर्थिक अस्थिरता – वैश्विक आर्थिक वृद्धि दर 2025 में 2.4 प्रतिशत तक गिरने का अनुमान है और महंगाई बढ़ रही है। भारत-पाकिस्तान तनाव जैसे संघर्षों से कच्चे तेल की कीमतें बढ़ रही हैं, जिससे वैश्विक बाजार प्रभावित हो रहे हैं।
क्या यह ‘दुनिया का अंत’ है? –
वैज्ञानिक दृष्टिकोण – ‘दुनिया का अंत’ एक अतिशयोक्तिपूर्ण अवधारणा है। वर्तमान चुनौतियाँ युद्ध, जलवायु परिवर्तन, या महामारी निश्चित रूप से गंभीर हैं, लेकिन ये मानवता के पूर्ण विनाश की ओर नहीं ले जा रही हैं। परमाणु युद्ध या वैश्विक जलवायु आपदा जैसे परिदृश्यों का जोखिम मौजूद है, लेकिन इनके होने की संभावना कम है, क्योंकि वैश्विक शक्तियाँ और संगठन इन्हें रोकने के लिए सक्रिय हैं भी और नहीं भी।
सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण –
भविष्य मालिका जैसे ग्रंथों और कुछ अन्य जानकारियों या लेखों में एकाएक तीसरे विश्व युद्ध या महामारी जैसे डरावने परिदृश्यों का उल्लेख होने या मिलने लगा है, जो लोगों में भय पैदा करते हैं। ये भविष्यवाणियाँ अक्सर धार्मिक या सांस्कृतिक मान्यताओं पर आधारित होती हैं, न कि ठोस वैज्ञानिक सबूतों पर। फिर भी डर तो डर ही है। हालांकि, ऐसी भविष्यवाणियाँ इतिहास में पहले भी कई बार सामने आई हैं, लेकिन वे इतनी सच साबित नहीं हुईं जितनी अब दिख रही हैं।
वर्तमान में सबसे बड़े जोखिम जलवायु परिवर्तन और खाद्य असुरक्षा से दिखने लगा है, जो धीरे-धीरे वैश्विक आबादी को प्रभावित कर सकते हैं। फिर भी, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और तकनीकी प्रगति इन समस्याओं से निपटने में मदद कर रहे हैं। परमाणु युद्ध का खतरा भी पिछले कई वर्षों से मंडरा रहा है और समस्या जस की तस बनी हुई है, लेकिन वैश्विक शक्तियों जैसे अमेरिका, रूस, चीन के बीच संतुलन और परमाणु अप्रसार संधियाँ इसे रोकने में महत्वपूर्ण हैं। यह सच है कि वर्तमान युद्धक हालात और वैश्विक चुनौतियाँ निश्चित रूप से गंभीर हैं, लेकिन ये निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि इससे दुनिया का अंत हो सकता है अथवा नहीं।