श्चित रूप से कानून किसी भी ताकतवर व्यक्ति के गिरेबान तक पहुंचने में सक्षम है और पहुंच भी रहा है। आज ऐसे तमाम ताकतवर लोग जेल में हैं जिन्हें कभी लगता था कि वे अपने पैसे और पावर के दम पर कानून की आंखों में धूल झोंकते रहेंगे किन्तु कभी-कभी ऐसी घटनाएं देखने-सुनने को मिल जाती हैं जिससे यह सोचने के लिए विवश होना पड़ता है कि आखिर य ह सब क्या हो रहा है? ऐसी घटनाओं से लोगों का कानून व्यवस्था से न सिर्फ विश्वास डगमगाता है बल्कि कानून का मजाक भी उड़ता है।
हिन्दुस्तान के तमाम हिस्सों में देखने को मिल रहा है कि जिंदा लोग सरकारी कागजों में ‘मृत’ घोषित कर दिये गये हैं। ऐसे लोगों को अपने को जिंदा साबित करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ती है। बिना किसी कसूर के बेवजह रुपये-पैसे खर्च करने पड़ते हैं।
कई बार सरकारी विभागों की लापरवाही के कारण तथा कुछ लोग अपने रिश्तेदारों की जमीन आदि हड़पने के लिए अधिकारियों के साथ मिलीभगत करके जिंदा होने के बावजूद उन्हें मृत घोषित करवा देते हैं। अकेले उत्तर प्रदेश में ही 40 हजार से अधिक ऐसे लोग बताये जाते हैं जिन्हें जिंदा होने के बावजूद सरकारी कागजों में मृत दिखा दिया गया है। अन्य राज्यों में भी इस तरह के मामले सामने आते रहते हैं।
वर्ष 1977 में उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जनपद के एक 22 वर्षीय व्यक्ति लाल बिहारी को जब यह पता चला कि उसके चाचा ने उसकी जमीन हड़पने के लिए एक अधिकारी को रिश्वत देकर उन्हें मृत घोषित करवा दिया है तो उन्होंने स्वयं को जिंदा साबित करने के लिए लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ी।
अपनी इस लंबी लड़ाई के दौरान लाल बिहारी ने अपने नाम के आगे मृतक शब्द जोड़कर ‘लाल बिहारी मृतक’ लिखने लगा। अंततोगत्वा 17 वर्ष बाद 1994 में लाल बिहारी को कामयाबी मिली और वे अपने को जिंदा साबित करवाने में कामयाब हुए। इस प्रकार से परेशान लोगों की मदद करने के लिए लाल बिहारी ने ‘उत्तर प्रदेश मृतक संघ’ नामक संगठन का गठन भी किया। इस प्रकार की घटनाएं सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही नहीं घटित होती हैं बल्कि ऐसी समस्याएं पूरे देश में हैं।
इस संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आखिर कानून के माध्यम से इतनी बड़ी लापहरवाही कैसे हो जाती है? इस प्रकार की लापरवाही में जो अधिकारी संलिप्त होते हैं, उनके खिलाफ इतनी सख्त कार्रवाई होनी चाहिए जिससे अन्य भ्रष्ट लोगों के लिए नजीर बने। इस प्रकार की घटनाओं को देखकर लोगों में कानून के प्रति अविश्वास तो पनपता ही है, साथ ही साथ कानून का उपहास भी उड़ने लगता है। ऐसी घटनाओं से बचने के लिए बहुत व्यापक स्तर पर सख्ती की आवश्यकता है।
– जगदम्बा सिंह