अजय चौहान || महाराष्ट्र की इला गंगा नदी के पास ही में स्थित एलोरा गांव की चरणानंद्री पहाड़ियों को काट कर तैयार की गई एलोरा की गुफाओं में से प्रमुख संरचना जिसे हम कैलाश मंदिर के नाम से जानते हैं यह दुनियाभर के लिए रहस्यमय मन्दिर बना हुआ है। इसमें की कुछ विशेष गुफाएं तो आम पर्यटकों के लिए पिछले कुछ दशकों तक भी खुली हुईं थीं, लेकिन, अब उन्हें पूरी तरह से बंद कर दिया गया है। उन्हें क्यों बंद किया गया है इसके कई कारण आज सिर्फ हमारे लिए ही नहीं बल्कि दुनियाभर के वैज्ञानिकों के लिए रहस्य बने हुए हैं?
कैलाश मंदिर के उन रहस्यों में पहला रहस्य तो ये है कि इस मन्दिर जैसा अन्य कोई मन्दिर, देश या दुनिया में कहीं ओर क्यों नहीं है? जबकि इस मंदिर के निर्माण के बाद भी तो कई सैकड़ों भव्य मंदिरों का निर्माण हुआ ही है, उन मंदिरों में इस प्रकार की टेक्नोलाॅजी उपयोग में क्यों नहीं लायी गयी? इस मंदिर को लेकर दुनियाभर के बड़े से बड़े शोधकर्ताओं और आर्किलोजिस्ट द्वारा खुद से पूछे जाने वाले प्रश्नों की बात करें तो वे यहां आकर स्वयं भी उलझ जाते हैं और इस आश्चर्यजनक सरंचना को लेकर हैरत में पड़ जाते हैं।
दुनियाभर के आर्किलोजिस्ट, वैज्ञानिक और रिसर्चर जब इस स्थान पर आते हैं और इन संरचनाओं को साक्षात् देखते हैं तो वे खुद के द्वारा खुद से पूछे जाने वाले कई प्रश्नों के ढेरों तले दब जाते हैं, और जब वे वापस अपने-अपने देशों में जाते हैं तो इसको लेकर इतिहास के दस्तावेजों में खो जाते हैं। वे फिर यहाँ आते हैं, फिर रिसर्च करते हैं, लेकिन वे तब भी सन्तुष्ट नहीं हो पाते हैं। क्योंकि इस बारे में उन्हें कहीं भी कोई जवाब नहीं मिल पाता है।
कैलाश मन्दिर के निर्माण को लेकर वर्तमान में हमें जो आधे- अधूरे साक्ष्य और संकेत मिलते हैं उनके अनुसार कोकसा नामक किसी वास्तुकार ने इस मंदिर का निर्माण किया था, और उस समय की किसी रानी के नाम पर ही इस मंदिर का नाम ‘मणिकेश्वर’ रखा गया था जिसे आज हम कैलाश मंदिर के नाम से जानते हैं।
हालांकि कई जानकार इससे बिलकुल भी सहमत नहीं लगते, क्योंकि ऐतिहासिक तथ्यों में हमें कोकसा नामक इस वास्तुकार के नाम का उल्लेख 11 वीं से 13 वीं शताब्दी के मध्य के अभिलेखों में मिलता है। कहा जाता है कि कोकसा राज मिस्त्री और मूर्तिकार के साथ एक समय में करीब 400 से 500 लोग काम करते थे, जिन्होंने इस मंदिर पर काम किया है। जबकि इस हिसाब से यह काम संभव ही नहीं है।
लेकिन, यह 100 प्रतिशत सच है कि आज भी यदि हमारी सरकार द्वारा भारतीय पुरातत्व विभाग या कुछ स्वतंत्र आर्किलोजिस्ट और जानकारों को इन गुफाओं में जाने की इजाजत दे देती है, तो संभव है कि बहुत कुछ खुलासे हो सकते हैं। आज समय की मांग भी यही है कि हर व्यक्ति को यहां इस कैलाश मंदिर परिसर के तमाम गुप्त स्थानों और परिसरों की जानकारी होनी चाहिए और उसके लिए रिसर्च करने का अधिकार भी मिलना चाहिए।
एक तथ्य यह भी सच है कि यदि हम इस कैलाश मंदिर परिसर को वैदिक दृष्टिकोण से देखें तो इसमें कुछ भी रहस्यमय नहीं लगेगा। क्योंकि भारत के आर्किलोजिस्ट भी बाहरी दुनिया के अन्य सभी आर्किलोजिस्ट यानी पुरातत्त्वविद् की तरह ही इसे भी प्रमाणित करने में सक्षम हैं।
लेकिन, क्योंकि हमें तो इस कैलाश मंदिर के पुरातात्विक साक्ष्य नहीं, बल्कि हमें तो इसके निर्माण से जुड़े रहस्यों और उदेश्यों के बारे में जानकारियां चाहिए। क्योंकि आज तक के वैज्ञानिक दृष्टिकोण में हम सब इतना तो समझ ही चुके हैं कि पुरातत्व क्या होता है। लेकिन अब हमें यह जानना है कि इसके रहस्य क्या हैं? इसलिए यहां पुरातात्विक खोजों की नहीं बल्कि रहस्यों की जानकारी चाहिए।
यह भी 100 प्रतिशत सच है कि कैलाश मंदिर से जुडी सम्पूर्ण जानकारियों और रहस्यों के लिए जब तक हिन्दू धर्म की तमाम पौराणिक पांडुलिपियों को नहीं खंगाला जाएगा तब तक कुछ भी कहना संभव नहीं है। क्योंकि हमें सिर्फ पौराणिक साक्ष्यों से ही इस बात का पता चल पायेगा कि जो काम आज भी असम्भव हुआ करते हैं वो कार्य हमारे पूर्वज आज से हजारों वर्ष पहले कैसे कर पाए होंगे?
आज का विज्ञान कहता है कि वास्तव में यह कैलाश मंदिर कोई रहस्य नहीं है, क्योंकि मानव जाति ने जो टूल्स बनाये, यह उसी का नतीजा है. यह उन शिल्पकारों की छेनी और हथोड़े का परिणाम है। विज्ञान मानता है कि कैलाश मंदिर परिसर को बनाने के लिए शुरुआत ऊपर से की गई होगी, पत्थरों को काटा गया फिर उन्हें फिनिशिंग दी गई होगी, उनके पीछे-पीछे मूर्तियों की नक्काशी भी चल रही थी, राज मिस्त्री, वास्तुकार, शिल्पकार आदि एक साथ काम कर रहे होंगे, और बस हो गया कैलाश मंदिर सहित सम्पूर्ण परिसर का निर्माण।
लेकिन आज का विज्ञान जो कहता है उसमें इसके रहस्यों के बारे में उसे खुद भी मालुम ही नहीं है तो भला वो दूसरों को क्या बताएगा? ऐसे में आज यदि कैलाश मंदिर को पुरातात्विक नज़र से नहीं बल्कि रहस्यों के तौर पर देखें तो बेसाल्ट पत्थरों को काटकर बने इस मंदिर का वेस्ट मटेरियल मंदिर के आसपास तो क्या दूर-दूर तक भी दिखाई नहीं देता है। यह एक सबसे बड़ा प्रश्न भी है और रहस्य भी।
इसके अलावा कुछ अन्य रहस्यों को देखे तो उनमें इतने सारे बेसाल्ट पत्थरों को काटना और तराशना किसी साधारण मनुस्य या मशीन से तो आज भी संभव ही नहीं है। इसके अलावा, कैलाश मंदिर के नीचे कई रहसयमई गहरी गुफाएं और कक्ष भी हैं जो पूर्ण रूप से बेसाल्ट पत्थरों को ही काट कर तैयार की गई है, तो फिर तहखाने के तौर पर इन्हें बनाने का उद्देश्य और रहस्य क्या हो सकता था।
कैलाश मंदिर का यह सम्पूर्ण क्षेत्र जिन पत्थरों को काटकर तैयार किया गया है वह पूर्ण रूप से बेसाल्ट पत्थर है. माना जाता है कि बेसाल्ट पत्थर तब बनता है जब ज्वालामुखी का लावा पृथ्वी की सतह पर तेजी से ठंडा होता है। यही कारण है कि यह पृथिवी पर उपलब्ध सबसे अधिक सघन और मजबूत पत्थरों में से एक होता है, और यही कारण है कि मानव निर्मीत किसी भी प्रकार के औजार या मशीन को अभी तक इतने बड़े आकार वाले क्षेत्र के सम्पूर्ण बेसाल्ट पत्थरों पर इतनी बारीकी के साथ इस्तमाल करना आज तक भी विज्ञान के लिए संभव नहीं है।
हालाँकि कुछ ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर इसको साबित करने का प्रयास किया गया है। लेकिन यहाँ भी व्यावहारिक तौर पर संभव ही नहीं है. क्योंकि कुछ ऐतिहासिक तथ्य कहते हैं कि मनुष्यों के द्वारा लगातार 18 से 20 वर्षों तक यहाँ करीब 4 लाख टन से भी अधिक पत्थरों के मलबे को वहां से बाहर ले जाया गया होगा। जबकि इसमें सबसे बड़ा रहस्य तो यह है कि आज भी यदि करीब 7,000 लोग लगातार 12 घंटों तक बिना रुके काम करते हैं, तब भी वे 18 से 20 वर्षों में केवल 85,000 टन पत्थरों को ही काट सकते हैं।
इसके अलावा, इस सम्पूर्ण कैलाश मंदिर परिसर के हर एक स्थान पर सूक्ष्म कारीगरी के साथ गुफाओं का निर्माण कार्य, अति सुन्दर मूर्तियों को तराशना और वह भी उत्तम अलंकरण के साथ, भला मनुष्य के लिए कैसे सम्भव हो सकता है। कैलाश मंदिर की एक अन्य और सबसे खास रहस्यमई बात यह भी है कि इस मंदिर की गुप्त गुफाओं में से किसी एक में से रेडिएशन कैसे और क्यों आ रहा है।
आजकल रेडिएशन भले ही एक सामान्य शब्द बन गया है, लेकिन, आश्चर्य और रहस्य तो इस बात पर है कि आज से सैकड़ों – हज़ारों वर्ष पहले के समय से लेकर आज तक भी वही तरंगें या कणों के रूप में अंतरिक्ष से आने वाली ब्रह्मांडीय रेडिएशन भला इसी स्थान पर कब, कैसे और क्यों आ सकती है?
ऐसे में यह कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि, किसी साधारण मनुष्य ने नहीं बल्कि किसी पारलौकिक अदृश्य या देविय शक्ति की सहायता से या फिर एलियंस के द्वारा ही इस कैलाश मंदिर का निर्माण कार्य किया गया होगा, और यही 100 प्रतिशत सत्य भी है। लेकिन विज्ञान है कि इस बात को मानता नहीं है और अपने ज्ञान के दम पर इसके रहस्यों को जान भी नहीं पाता है।