अजय सिंह चौहान || क्या आपने कभी किसी अन्य के घर में जाते ही वहां एक अजीब सी नकारात्मक ऊर्जा और घुटन जैसे माहौल को महसूस किया है? या फिर किसी के घर में जाते ही वहां एकदम सुकून और सकारात्मक ऊर्जा का भी एहसास किया है? यदि नहीं तो आज यहां हम आपको बतायेंगे कि किसी के घर में नकारात्मकता और सकारात्मकता का यूं ही एहसास नहीं होने लगता, बल्कि इसके पीछे भी एक प्रकार का ऐसा विज्ञान छूपा हुआ होता है जिसको हम मानने को तैयार ही नहीं होते।
लेकिन, यहां हमें यह भी जान लेना चाहिए कि हमारे पूर्वजों ने आज से हजारों वर्ष पहले ही घरों में पनपने वाली नकारात्मकता को जान लिया था और उसका हल भी खोज निकाला था। लेकिन, उसके पहले यहां हम आपको संक्षिप्त में यह भी बतायेंगे कि आखिर घरों में ये नकारात्मकता और सकारात्मकता कब, कैसे और क्यों आती है?
तो, अक्सर हमें महसूस होता कि जब हम किसी अन्य के घरों में जाते हैं तो वहां से तुरंत वापस आने का मन होने लगता है। ऐसे घरों में एक अलग तरह की नेगेटिविटी यानी की नकारात्मका का वातावरण महसूस होने लगता है। यदि ऐसे वातावरण वाले घरों के बारे में गौर किया जाये तो हमें साफ समझ में आ जाता है कि उन घरों में आये दिन किसी न किसी बात को लेकर परिवार के सदस्यों के बीच मनमुटाव, चुगली, निंदा, कलह या फिर लड़ाई-झगड़े आदि होते रहते हैं। ऐसे घरों और परिवारों के सदस्यों के बीच आपसी प्रेम और सामंजस्य की बेहद कमी रहती है, जिसके कारण वहां मात्र कुछ ही पलों में एक अजीब सी बेचैनी होने लगती है।
जबकि दूसरी तरफ कुछ ऐसे घर भी होते हैं जहां का वातारण हमेशा सकारात्मक उर्जा से भरा रहता है। सकारात्मक ऊर्जा से भरे ऐसे घर-परिवारों के हर एक सदस्य के चेहरे खिलखिलाते और प्रफुल्लित महसूस होते हैं। ऐसे परिवारों के हर सदस्य का व्यवहार सकारात्मक होता है तथा मेहमानों की आवभगत और धार्मिक वातावरण हमेशा बना रहता है। फिर चाहे उन घरों और परिवारों की आर्थिक स्थिति कितनी भी कमजोर ही क्यों न हो। ऐसे घरों में हम घंटों बैठकर भी इस बात का एहसास नहीं कर सकते कि हम किसी अन्य या अनजान के घर में बैठे हैं या फिर हम वहां अपना समय बर्बाद कर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर ऐसा सकारात्मक वातावरण हमें मंदिरों में ही महसुस होता है। यही कारण है कि हम उसी सकारात्मक ऊर्जा को अपने अंदर समाहित करने के लिए मंदिरों में बिना किसी लालच के अपने आप ही खिंचे जाते हैं। आज के दौर में भी मंदिर जैसा सकारात्मक वातावरण हर एक घर में भले ही न मिले, लेकिन, कुछ घरों में तो अवश्य ही मिल जाता है।
यहां ध्यान रखने वाली बात ये भी है कि आज हम सब जिस प्रकार के तनाव भरे वातावरण में जी रहे हैं उसको देखते हुए हम सभी के घर-परिवारों में एक अजीब सी नकारात्मकता और घुटन जैसे माहौल को महसूस करना आम बात हो चुकी है। जिन घरों का वातावरण नकारात्मकता से भरा रहता है उन घरों के हर एक सदस्य को चाहिए कि वे किसी भी प्रकार से प्रयास करें कि उनके घरों में होने वाले आपसी कलह, निंदा और विवाद आदि को टालने का वे सब मिलकर प्रयास करें, तभी उनके घर-परिवार की नकारात्मकता दूर होगी और सकारात्मकता आ पायेगी। इसीलिए हमारे सभी प्रमुख धार्मिक गं्रथों में कहा जाता है कि यदि घर का वातावरण स्वस्थ्य और खुशहाल होगा तो उसमें रहने वाले लोग भी स्वस्थ और प्रफुल्लित रहेंगे।
वास्तु शास्त्र भी यही कहता है कि किसी भी घर की दिवारों के भीतर अच्छी या बुरी जो भी बहस होती है, या फिर घटनाएं घटित होती हैं उस घर की हर एक दीवार उन सभी बातों को न सिर्फ सुनती और देखती हैं बल्कि उन्हें अपने अंदर सोखती भी रहती हैं, और बाद में उसी के आधार पर उस स्थान या उस घर के वातावरण को नकारात्मकता और सकारात्मकता में बदल देती हैं। और फिर इसके बाद वही दिवारें न सिर्फ उन घरों में रहने वाले हर एक सदस्य को, बल्कि वहां आने वाले मेहमानों को भी उस नकारात्मकता और सकारात्मका का एहसास करा देती हैं।
यही कारण है कि सनातन के समस्त ऋषि-मुनियों तथा विज्ञानियों और जानकारों ने इस विषय पर सबसे अधिक महत्व दिया है कि यदि आपके घरों में हमेशा धार्मिक विचारों का अदान-प्रदान, पूजा पाठ और दीवाली या अन्य किसी भी तीज त्यौहार या उत्सव जैसा वातावरण बना रहता है तो वहां हमेशा सकारात्मकता देखी जाती है। उदाहण के तौर पर ऐसा स्थान हमें अपने आसपास के किसी भी छोटे या बड़े मंदिरों में देखने को मिल जाता है।
अब यहां सवाल आता है कि ‘‘कोप भवन’’ आखिर है क्या और इससे जुड़ा विज्ञान क्या है? तो कोप भवन के विज्ञान से जुड़े महत्व पर यदि हम प्राचीन भारत की बात करें तो हमें रामायण, महाभारत, पुराणों तथा अन्य ग्रंथों में एक बहुत ही प्रचलित शब्द का पता चलता है, और वो है “कोप भवन”। यदि हम अपने पुराणों को पढ़ते हैं तो पता चलता है कि उन दिनों “कोप भवन” का प्रचलन मात्र कुछ खास घरों या महलों में ही नहीं बल्कि आम प्रजाजनों के घरों में भी हुआ करता था।
कोप भवन के बारे में बताया जाता है कि यह एक विशेष प्रकार का कमरा या एक छोटा सा महल होता था जो हर राज परिवार के महल के आसपास ही में कहीं अलग से तैयार किया जाता था, जहां बैठकर सिर्फ और सिर्फ घर-परिवार के सदस्य अपने आपसी मनमुटाव, विवाद, कलह, और लड़ाई-झगड़े आदि को आपस में मिल-बैठ कर सुलझाते थे। यानी, इस कोप भवन शब्द से हमें इस बात का ज्ञान होता है कि उस समय हमारे पूर्वज सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा को अलग-अलग रखने का प्रयास करते थे। इसीलिए वास्तुशास्त्र के अनुसार उन्होंने हजारों वर्ष पहले ही कोप भवन जैसी व्यवस्था को जन्म दिया था, ताकि उनके घर-परिवार को नकारात्मकता से बचाया जा सके।
रामायण में हमें कोप भवन के महत्व का सबसे अधिक पता चलता है कि किस प्रकार से महारानी कैकेई ने राजा दशरथ से अपनी मांगों को मनवाने के लिए अपने शयन कक्ष का नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ महल में बने कोप भवन यानी उस विषेष कक्ष में जाकर ही अपनी इच्छा प्रकट की थी। और क्योंकि महारानी कैकेई स्वयं भी जानती थी कि उनकी वह इच्छा एक प्रकार से नकारात्मकता से भरी हुई थी इसलिए उन्होंने इस विषय पर बात करने के लिए महल के किसी भी हिस्से उचित नहीं समझा और सिर्फ कोप भवन का ही इस्तमाल करना उचित समझा था।
और यदि महारानी कैकेई, इसके लिए कोप भवन के बजाय महल के अन्य किसी भी स्थान का इस्तमाल करतीं तो उननके विचारों और वाणी की वह नकारात्मकता और महाराज दशरथ का विलाप तथा परिवार के अन्य सदस्यों के मन की आशंकाएं, क्रोध और अन्य प्रकार के नकारात्मक विचार उस संपूर्ण महल में फैल जाते और फिर वह संपूर्ण महल ही नकारात्मकता से भर जाता। महल में रहने वाले हर एक सदस्यों पर उन सूक्ष्म नकारात्मक विचारों का असर हो सकता था इसलिए महारानी कैकेई ने कोप भवन का उपयोग किया था।
कोप भवन से जुड़े विज्ञान और उसकी नकारात्मकता का इतने सूक्ष्म तरीके से ध्यान रखा जाता था कि उसमें प्रवेश के पहले राज परिवार के किसी भी सदस्य को, फिर चाहे वो राजा या रानी ही क्यों न हो, उन्हें अपने राजसी वस्त्रों और आभूषणों का प्रवेश द्वार के बाहर ही त्याग करके बिना कोई श्रृंगार किये उसमें प्रवेश से पहले काले कपड़ों को धारण करना पड़ता था। ऐसा इसलिए क्योंकि राजसी वस्त्रों और आभूषणों आदि पर भी जब कोप भवन की नकारात्मकता का प्रभाव पड़ेगा तो वही नकारात्मका आपके साथ बाहर आ जायेगी और आपके जीवन में घर कर जायेगी।
कोप भवन से जुड़े सूक्ष्म विज्ञान पर गौर करने पर हमें यह भी मालूम पड़ता है कि, कोप भवन में रखी कोई भी वस्तु नकारात्मक ऊर्जा से भरी हुई होती थी, ऐसे में उस वस्तु का इस्तमाल यदि अनजाने में कोई बाहर का व्यक्ति कर लेता है तो उस वस्तु के अंदर समाहित नकारात्मकता के तमाम प्रवभाव उस व्यक्ति या उसके परिवार पर भी पड़ सकते हैं। यही कारण है कि कोप भवन में ऐसी कोई भी आकर्षण की वस्तु या साजो सामान भी नहीं रखे जाते थे। कोप भवन में परिवार के सदस्यों के अतिरिक्त अन्य किसी दूसरे व्यक्ति को भी प्रवेश की अनुमति नहीं होती थी, यहां तक कि किसी सैनिक या दास-दासी आदि को भी नहीं।
इसीलिए आज भी हमें इस बात की कोशिश करनी चाहिए कि यदि किसी कारण से हमारे घर-परिवार के सदस्यों के बीच मनमुटाव, कलह, या अन्य प्रकार का वाद-विवाद या दुर्भाव आता है तो किसी मंदिर में जाकर या घर के किसी एक विशेष कमरे में जाकर उसका निपटारा करना चाहिए, ताकि पूरा घर कोप भवन बनने से बच सके। यदि ऐसे किसी कलह का निपटारा आसपास के मंदिर में जाकर या पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ कर भी किया जाता है तो वहां की सकारात्मक ऊर्जा उस कलह को शांत करने में सहायता करती है और घरों में पनपने वाली नकारात्मक ऊर्जा को एकत्र होने से भी बचा लेती है।
आजकल आमतौर पर अधिकतर परिवारों के घर छोटे और एक, दो या अधिक से अधिक तीन या चार कमरों के होते हैं। ऐसे में अपने पारिवारिक माहौल में सकारात्मक ऊर्जा लाने के लिए अलग से कोप भवन या कमरे का तो सोचा भी नहीं जा सकता है। ऐसे में अन्य उपायों के तौर पर जितना हो सके घर की प्रमुख दिवारों पर देवी-देवताओं की तस्वीरें, सुंदर फूल-पौधे, गमले, सुंदर और टेराकोटा वाली कलात्मक वस्तुएं आदि से घर का श्रृंगार करना चाहिए।
इस बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए कि जिस प्रकार से आप और हम सांस लेते हैं उसी प्रकार से हमारा घर और घर की दिवारें भी सांस लेती हैं। साथ ही साथ हमारी मुस्कुराहट, हंसी, बच्चों की खिलखिलाहट और उनकी छोटी-छोटी शरारतों से बुजुर्गों को जितनी खुशी होती है उससे सदैव उनके आशीर्वाद की वर्षा होती रहती है। इसके अलावा घर परिवार की स्त्रियों के प्रति सम्मान और पुरुषों के विशेष सामथ्र्य से ही घर की दिवारें हमेशा प्रसन्न रह सकती हैं।