स्कूल प्रिंसिपल ने बहुत ही कड़े शब्दों में जब एक छोटे और गरीब किसान की बेटी ख़ुशी से पिछले एक साल की स्कूल फीस मांगी तो ख़ुशी ने कहा मैडम में घर जाकर आज पिता जी से कह दूंगी।
घर जाते ही बेटी ने माँ से पूछा – पिता जी कहाँ है?
माँ ने कहा तुम्हारे पिता जी तो रात से ही खेत में हैं.
बेटी दौड़ती हुई खेत में जाती है और सारी बात अपने पिता को बताती है!
ख़ुशी का पिता बेटी को गोद मे उठाकर प्यार करते हुए कहता है कि इस बार हमारी फसल बहुत अच्छी हुई है. अपनी मैडम को कहना अगले हफ्ता सारी फीस आजाएगी।
क्या हम मेला भी जाएंगे? ख़ुशी पूछती है.
हाँ, हम मेला भी जाएंगे और पकोड़े, बर्फी भी खाएंगे- ख़ुशी के पिता कहते हैं.
ख़ुशी इस बात को सुनकर नाचने लगती है और घर आते वक्त रस्ते में अपनी सहेलियों को बताती है की मैं अपने माँ पापा के साथ मेला देखने जाउंगी, पकोड़े बर्फी भी खाउंगी।
ख़ुशी की ये बातें सुनकर पास ही खड़ी एक बजुर्ग महिला कहती है, बेटा ख़ुशी मेरे लिए क्या लाओगी मेले से?
काकी हमारी फसल बहुत अच्छी हुई है, में आपके लिए नए कपडे लाऊंगी।
ख़ुशी कहती हुई घर दौड़ जाती है !
अगली सुबह ख़ुशी स्कूल जाकर मैडम को बताती है- मैडम इस बार हमारी फसल बहुत अच्छी हुई है, अगले हफ्ते सब फसल बिक जाएगी, तब पिता जी आकर सारी फीस भर देंगें।
प्रिंसिपल – चुप करो तुम. एक साल से तुम बहानेबाजी ही कर रही हो.
ख़ुशी चुपचाप क्लास में जाकर बैठ जाती है और मेला घूमने के सपने देखने लगती है.
कुछ देर बाद मौसम ख़राब होता है और ओले पड़ने लग जाते हैं.
तेज बारिश आने लगती है, बिजली कड़कने लगती है, पेड़ ऐसे हिलते हैं मानो अभी गिर जाएंगे।
ख़ुशी एकदम घबरा जाती है.
ख़ुशी की आँखों में आंसू आने लगते हैं. ख़ुर्शी को फिर वही डर फिर सताने लगता है, सब खत्म होने का, फसल बर्बाद होने का, फीस ना दे पाने का. स्कूल खत्म होने के बाद ख़ुशी धीरे धीरे कांपती हुई घर की तरफ बढ़ने लगती है। हुआ भी ऐसा कि सभी फसलें बर्बाद हो गईं. खुशी स्कूल में फीस जमा नही करने के कारण ताना सुनने लगी।
ख़ुशी को मेला घुमने और बर्फी खाने का शौक इस बार फिर से मन में ही रह गया।
छोटे किसानों और मजदूरों के परिवारों में जो दर्द है उसे समझने में पूरी उम्र भी गुजर जाएगी तो भी शायद वास्तविक दर्द को महसूस नही कर सकते आप।
– साभार