अजय सिंह चौहान || आज भारत की विडंबना ये है की यहां चर्च का फादर अब उन गलियों तक में भी पहुंचने लगा है जहां ठीक से धूप भी नहीं पहुंच पाती है। जबकि इसके लिए हम हमारे कथावाचकों, ब्राह्मणों और मंदिरों के पुजारियों को कोसते हैं, लेकिन किसी ने दिमाग नहीं लगाया और न ही किसी ने हिम्मत दिखाई की इसके लिए किसी नेता, किसी पार्टी या किसी सरकार से भी सवाल कर लिया जाय। इसी प्रकार चादर के अविष्कारक अर्थात मौलानाओं ने भी भारत के हिंदूवादी राजनेताओं सहित गली-गली में उगने वाली मजारों पर भी अपना अधिकार सुरक्षित करने का कार्य शुरू कर दिया है।
असल में हम हिंदुओं को इस बात का ज्ञान होना चाहिए की दुनिया के सभी क्रिस्चियन देशों, सरकारों और बिजनेसमैन, चर्च यहां तक की क्रिस्चियन समाज के आमजन के द्वारा भी धर्म परिवर्तन को प्रायोजित किया जाता है और इसके लिए धन उगाही की जाती है। और फिर उसी धन को गैर क्रिस्चियन आबादी वाले देशों में खूब खर्च किया जाता है। यहां तक कि बड़ी से बड़ी सरकारों और नेताओं को भी खरीद लिया जाता है। उसी धन के माध्यम से कई देशों में तो कानून तक में भी बदलाव करवा लिए जाते हैं या फिर सरकारों को ही गिरा दिया जाता है। जैसे की भारत में भी अक्सर ऐसा होता ही रहता है।
अब बात करते हैं हमारे कथावाचकों, गरीब ब्राह्मणों और मंदिर के पुजारियों की जिनको हम इसलिए कोसते हैं क्योंकि वे भी हिंदू धर्म के लिए इसी तरह से कार्य क्यों नहीं करते। तो यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि भारत में इसके लिए न तो कोई भी सरकार, न कोई नेता, न कोई बड़ा व्यापारी आदि ऐसा काम करता है और न सहयोग करता है। क्योंकि हमारे संविधान में इसके लिए ऐसा कोई कानून या प्रावधान ही नहीं है की हम बड़े स्तर पर हिदू धर्म का प्रचार कर सकें।
दूसरी बात ये है की विदेशी फंड भारत में इतना अधिक आता है की इसको कोई भी सरकार या नेता रोकना चाहते हैं तो उनको रिश्वत या फिर अन्य कई लालच देकर मुंह बंद करा दिया जाता है और उन्हीं सबूतों के सहारे उन लोगों को ब्लैकमेल किया जाता है।
हमारे अधिकतर नेताओं के ऐसे अन्य कई दूसरे ऐसे कुकर्म भी होते हैं जिनके खुलने या समाज में आने के डर से वो चुप हो जाता हैं और चर्च उन्हीं का लाभ लेकर घुसपैठ कर जाता है। इसीलिए हमारे नेता भी हमेशा चर्च के दबाव में ही रहते हैं। यानी वे इनको लालच देकर या इनकी कोई भी कमजोर नस पकड़ लेते हैं। जैसे भ्रष्टाचार, बलात्कार, रिश्वत आदि। यानी हमारे नेता उन्हीं के दबाव में रहकर उनको ही हर तरह का लाभ देते हैं। इन सब के लिए क्रिस्चियन समाज खूब धन बहाता है। क्योंकि उसका समाज इसी काम के लिए धन जमा करता है।
अब बात करते हैं हिंदू धर्म की। तो हमारे मंदिर तो सरकार के कब्जे में हैं। यानी जितना भी चढ़ावा आदि आता है वो सब सरकार कब्जा कर लेती है। इसलिए मंदिर भी इसमें सहयोग नहीं कर सकते। मंदिरों में पुजारी और मंदिर ट्रस्ट तो एक नौकर की तरह ही होते हैं। जबकि मंदिरों का पैसा भी सरकार उल्टा चर्च और मस्जिदों में बांट देती है।
रही बात हमारे कथा वाचकों की तो वे अपनी जान हथेली पर लेकर चलते हैं। अगर कोई कथावाचक अपने धर्म के लिए कुछ ज्यादा ही अच्छा करने का प्रयास करता है तो वो चर्च की नजर में आ जाता है। फिर सरकार, नेता या पुलिस उनको डरा धमका कर रखते हैं, क्योंकि उनमें से कई नौकरशाह चर्च के उसी धन के लालच में ब्लैकमेल होते रहते हैं।
हमारे शंकराचार्य जी भी इसलिए विवश हैं क्योंकि उनको जनता और सरकार दोनो का समर्थन नहीं है। फिर भी वे इसमें धर्म का प्रचार करने का प्रयास करते हैं तो नेता या सरकार आदि इनपर झूठे इल्जाम मढ देते हैं। जैसे की शंकराचार्य जी ने केदारनाथ मंदिर से 230 किलो सोने की चोरी की आवाज उठाई तो किसी ने उनका साथ नहीं दिया और उल्टा हमारा मीडिया भी उन्हीं के पीछे पड़ गया और उनको झूठा साबित करने में लग गया। लेकिन सच क्या है ये तो मीडिया और सरकार दोनो ने नहीं बताया। इसी तरह गाय की रक्षा के लिए भी हमारे शंकराचार्य जी आंदोलन कर रहे हैं लेकिन मीडिया इसका भी प्रचार नहीं कर रहा है। यानी मीडिया में भी चर्च का पैसा लग रहा है या फिर पत्रकारों को भी नेताओं की भांति ही ब्लैकमेल किया जा जा रहा है।
तो ऐसी बहुत सारी अलग अलग समस्याएं हैं जो आज हिंदुओं के लिए हमारे नेताओं ने ही खड़ी कर रखी है। ये वही नेता हैं जिनको हम ही चुनते हैं। यानी हम अपनी जड़ें खुद ही खोद रहे हैं।