प्रति वर्ष की 8 अप्रैल को 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के अमर बलिदानी मंगल पांडे की पुण्यतिथि आती है। वीर सावरकर ने अपनी पुस्तक ‘1857 का स्वतंत्रता समर’ में बलिदानी हुतात्माओं (हुतात्मा यानी वह व्यक्ति जिसने किसी अच्छे कार्य में अपने को हवन कर दिया हो या अपना प्राण दे दिया) के बारे में विस्तार से लिखा है। इनमें पहला नाम बलिदानी मंगल पांडे का ही है। उस पुस्तक के कुछ अंश –
अपने बंधुओं को अपनी आंखों के सामने दंडित किया जाएगा, यह सुनकर भी शांत रहने वाला बैरकपुर नहीं था। वहां स्वतंत्रता की ज्योति हर तलवार में चमकने लग गई थी परंतु इन सबसे अधिक मंगल पांडे की तलवार अधीर हो रही थी।
-उसने लपककर अपनी बंदूक उठाई और ‘मर्द हो तो उठो’, ऐसी गर्जना करते हुए परेड मैदान में कूद पड़ा। “अरे अब पीछे क्यों रहते हो ? भाइयो आओ टूट पड़ो। तुम्हें तुम्हारे धर्म की सौगंध – चलो, अपनी स्वतंत्रता के लिए शत्रु पर टूट पड़ो। ऐसी गर्जना करते हुए वह अपने स्वदेश बंधुओं को अपने पीछे आने का आह्वान करने लगा। यह देखते ही सार्जेंट मेजर ह्यूसन ने सिपाहियों को मंगल पांडे को पकड़ने का आदेश दिया। परंतु अंग्रेजों को आज तक मिले देशद्रोही सिपाही अब बचे नहीं थे। उस सार्जेंट का आदेश उसके मुंह से निकलने पर एक भी सिपाही मंगल पांडे को पकड़ने नहीं हिला। और इधर मंगल पांडे की बंदूक से सन् सन् करके निकली गोली ने उस ह्यूसन का शव तत्काल भूमि पर पटक दिया।
इसके बाद मंगल पांडे ने एक और अंग्रेज अफसर को तलवार से मार डाला। तभी वहां कर्नल व्हीलर वहां आया और मंगल पांडे को पकड़ने का आदेश देने लगा। अब फिर पुस्तक की ओर लौटें
– इधर मंगल पांडे अपने रक्तरंजित हाथ उठाकर – “मर्दों आगे बढ़ो!” ऐसी गर्जना करते हुए इधर-उधर घूम रहा था। जनरल हीर्से को यह समाचार मिलते ही वह कुछ और यूरोपियन सैनिक लेकर मंगल पांडे की ओर दौड़ता आया। अब निश्चित ही शत्रु पकड़ लेगा, यह जानकर उस देशवीर मंगल पांडे ने फिरंगियों के हाथों पकड़े जाने की अपेक्षा मृत्यु को अपनाने का निश्चय किया और अपनी बंदूक अपने ही सीने की ओर कर ली तत्काल उसकी पवित्र देह घायल हो कर गिर गई। तुरंत उस घायल युवक को अस्पताल ले जाया गया; और उस एक सिपाही ने जो बहादुरी दिखाई उससे लज्जित हो कर सारे अंग्रेज अधिकारी अपने -अपने तंबू में चले गए। यह सन् 1857 के मार्च की 29 तारीख थी।
मंगल पांडे का कोर्ट मार्शल कर जांच -पड़ताल हुई। उस जांच में वह अन्य षड्यंत्रकारियों के नाम बताए, इसके लिए बहुत प्रयास हुए। परंतु उस तेजस्वी युवक ने ‘वह किसी का नाम बताने को तैयार नहीं है,’ यह उत्तर दिया। ऐसे युवा को फांसी का दंड सुनाया गया। दिनांक 8 अप्रैल उसकी फांसी के लिए तय हुआ।
-उस सारे बैरकपुर शहर में मंगल पांडे को फांसी देने के लिए एक भी जल्लाद नहीं मिला। अंत में उस अमंगल कार्य के लिए कलकत्ता से चार जल्लाद लिए गए। दिनांक 8 अप्रैल को सुबह मंगल पांडे को फांसी स्थल की ओर ले जाया गया। चारों ओर लश्करी लोगों का पहरा था। उनके बीच से मंगल पांडे गर्व से चलता गया और फांसी पर चढ़ गया। “मैं किसी का नाम नहीं बताऊंगा” यह एक बार फिर से कहते ही उसके पैर के नीचे का सहारा निकल गया और मंगल पांडे की देह से उसकी पवित्र आत्मा आत्मा स्वर्ग चली गई।
– मंगल पांडे नहीं है, पर उसका चैतन्य सारे हिंदुस्थान में फैला हुआ है और जिस सिद्धांत के लिए मंगल पांडे मरा वह सिद्धांत चिरंजीवी हो गया।
– साभार