मुझे उस समय बड़ा ही अटपटा लगता है जब कोई व्यक्ति- यह कहता है कि भारत वर्ष 1300 वर्षों तक पराधीन रहा। कोई इस काल को एक हजार
वर्ष कहता है, तो कोई नौ सौ या आठ सौ वर्ष कहता हैं।
जब इसी बात को कोई नेता, कोई बुद्धिजीवी, प्रवचनकार या उपदेशक कहता है। तो मेरी यह अटपटाहट छटपटाहट में बदलजाती है, और जब कोई इतिहासकार इसी प्रकार की मिथ्या बातें करता है तो मन क्षोभ से भर जाता है।
जबकि इन सारे घपलेबाजों की इन घपलेबाजियों को रटा हुआ कोई विद्यार्थी जब यह बातें मेरे सामने दोहराता है तो भारत के भविष्य को लेकर मेरा मन पीड़ा से कराह जाता है।
जिस जाति को या जिस देश को अपना सार्थक इतिहास बोध नहीं होता है, वह जाति या वह देश वैश्विक प्रतियोगिता में अधिक समय तक अपना अस्तित्व नहीं बचा पाता है।
यह सत्य है कि भारत ने सदियों तक अपनी संस्कृति, अपने धर्म और अपनी पहचान को बचाए रखने के लिए अनवरत संघर्ष किया। इस दीर्घकालीन संघर्ष में देश के नायकों के साथ क्या-क्या नहीं हुआ?
उन्होंने हर प्रकार कष्ट झेला, पीड़ाएं सहन कीं और यंत्रणाओं को सहर्ष स्वीकार किया, पर भारत को मिटने नहीं दिया। जैसे की आज का लीडर कहता है “न भारत को रुकने देगे न झुकने देगे।”
उन शूरवीरों के बलिदानों पर और उनकी दीर्धकालीन बलिदानी परंपरा पर हमें गर्व है। अब उसी परम्परा को कोई ईशवरीय शक्ति इस देश के वामपंथियों के eco system वाले इतिहास को बदल कर रास्ट्रवादी इतिहास के महापुरुषों को फिर से सम्मान दिलाना चाहती है।
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