वर्तमान वैश्विक परिदृश्य पर नजर डाली जाये तो स्पष्ट रूप से देखने में मिलता है कि विकास की अनगिनत गाथाओं की श्रृंखला बनाने के बावजूद भारत सहित पूरे विश्व में किन्हीं न किन्हीं कारणों से अशांति का वातावरण व्याप्त है। पूरे विश्व के लिए यह नितांत चिंता की बात है कि आखिर विश्व में शांति का पथ कैसे प्रशस्त हो सकता है? गहनता से विचार-विमर्श करने के बाद जब निष्कर्ष की बात आती है तो निश्चित रूप से उम्मीदें भारत पर ही आकर टिकती हैं।
भारत से उम्मीदें लगाने के पीछे कुछ ठोस कारण हैं। यह पूरे विश्व को पता है कि भारत अतीत में विश्व गुरु रहा है और ‘विश्व गुरु’ की हैसियत से पूरे विश्व को हर दृष्टि से दिशा देने का काम कर भी चुका है। आज भी मानसिक शांति के लिए तमाम विदेशी लोग भारत आकर त्याग, तपस्या और साधना के मार्ग पर चल रहे हैं।
शांति की दृष्टि से यदि देखा जाये तो विश्व को शांति की जितनी आवश्यकता है, उससे कम भारत को भी नहीं है। अब प्रश्न यह उठता है कि जब भारत स्वयं अशांत रहेगा तो दुनिया को शांति की राह पर कैसे ले जा सकता है? इस दृष्टि से बात की जाये तो भारत को सबसे पहले उन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विचार करना होगा जिनकी वजह से वह ‘विश्व गुरु’ के सिंहासन पर विराजमान रहा है यानी हमें अपने अतीत की तरफ जाना ही होगा और उन पहलुओं की पहचान कर आगे बढ़ना होगा, जिनकी वजह से भारत का डंका पूरे विश्व में बजता था और विश्व शांति के लिए हमारे राजाओं-महाराजाओं, ऋषियों-मुनियों, त्यागियों-तपस्वियों, मनीषियों एवं विद्वानों ने किया था?
इसमें कोई दो राय नहीं है कि हमारा अतीत बहुत गौरवशाली रहा है। विश्व शांति की स्थापना के लिए स्वयं नारायण ने भी पवित्र भारत भूमि पर समय-समय पर अवतार लिया है। भारत भूमि पर नारायण के अवतार लेने का उद्देश्य मात्र लोक कल्याण एवं विश्व शांति ही रहा है। त्रेता युग में जब आसुरी शक्तियों का अत्याचार चरम सीमा पर पहुंच गया तो नारायण को प्रभु श्रीराम के रूप में अवतार लेना पड़ा और उन्होंने विश्व शांति के लिए तमाम आसुरी शक्तियों का विनाश करते हुए उस समय के महाबली योद्धा रावण एवं बाली का वध किया। प्रभु श्रीराम ने यह सब लोक कल्याण एवं विश्व शांति के लिए किया। इसी प्रकार द्वापर युग में नारायण ने भगवान श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लेकर महाभारत के युद्ध में लोक कल्याण एवं विश्व शांति के लिए स्वयं उपस्थित होकर नेतृत्व किया।
भगवान श्रीकृष्ण ने न सिर्फ महाभारत के युद्ध में नेतृत्व किया अपितु उस समय उन्होंने अर्जुन को जो उपदेश दिया, वर्तमान समय में उन उपदेशों के द्वारा न सिर्फ लोगों का कल्याण हो रहा है बल्कि उन्हीं गीता के उपदेशों को अपने जीवन में ढालकर मानव जाति विश्व शांति की तरफ बढ़ना चाहती है और बढ़ भी रही है। आज भारत में गीता एक बहुत ही महत्वपूर्ण धार्मिक गं्रथ है जिस पर हाथ रख देने के बाद कोई व्यक्ति झूठ बोलने का साहस नहीं जुटा पाता है।
त्रेता और द्वापर युग के बाद मौर्य काल से लेकर विक्रमादित्य के शासन काल तक भारत की गौरव गाथा पूरे विश्व में गुंजायमान थी किन्तु धीरे-धीरे उसमें हरास होना शुरू हुआ और विदेशी लुटेरे एक-एक कर आते गये और भारत की गौरव गाथा को धूमिल करते गये। विदेशी लुटेरों को यह बात बिल्कुल भी स्वीकार नहीं थी कि भारत ‘सोने की चिड़िया’ बन कर रहे और विश्व शांति का वाहक बने। लुटेरों ने भारत की अर्थव्यवस्था पर ही सिर्फ चोट नहीं की बल्कि यहां के ज्ञान-विज्ञान, कला, जीवनशैली एवं संस्कारों को भी क्षति पहुंचाई। विदेशी लुटेरों के बाद रही-सही कोर-कसर अंग्रेजों ने अपने लंबे शासन काल में पूरी कर दी किन्तु उसके बावजूद भारत अपनी जड़ों से काफी हद तक जुड़ा रहा।
अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए एक लंबा आंदोलन चला। आजादी के लिए चले लंबे आंदोलन के बाद देश आजाद तो हुआ किन्तु भारत से जाते-जाते अंग्रेजों ने न सिर्फ भारत का विभाजन करवा दिया बल्कि देश में एक ऐसा वर्ग छोड़ गये जो जन्म से तो भारतीय है किन्तु रहन-सहन एवं सोच से एकदम अंग्रेज। इन्हीं नवनिर्मित स्वदेशी अंगे्रजों की वजह से भारत अभी भी गुलामी की मानसिकता से बाहर नहीं आ पाया है। इन्हीं के प्रभाव में आकर तमाम भारतीयों एवं युवा पीढ़ी का आकर्षण पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति की तरफ तेजी से बढ़ा है। जिस दिन भारतीय पूर्ण रूप से यह समझ जायेंगे कि हमारी सभ्यता संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान एवं अतीत पूरे विश्व में सर्वश्रेष्ठ है, उसी दिन भारत मानसिकता की गुलामी से बाहर आना शुरू कर देगा।
आज हमारे देश के इंजीनियर, डाॅक्टर, टेक्निकल, राजनेता, ऋषि-मुनि, विद्वान, योगाचार्य एवं अन्य लोग पूरी दुनिया में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं। भारत के लोग जब पूरी दुनिया में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं तो निश्चित रूप से भारत पूरी दुनिया को अपने पीछे चला भी सकता है। जिस दिन ऐसा हुआ, निश्चित रूप से भारत के लिए वह स्वर्णिम दिन होगा और ऐसा करना बेहद जरूरी भी है। इस काम को करने के लिए पूरे देश को मानसिक रूप से इस बात के लिए तैयार होना होगा कि भारत एवं विश्व में यदि शांति की स्थापना करनी है तो पूरी दुनिया को अपने पीछे चलाना ही होगा।
ज्ञान, विज्ञान, कला, धर्म, संस्कृति, अध्यात्म, रहन-सहन, व्रत-त्यौहार, परंपराएं, पर्यावरण-प्रदूषण, विकास, प्रकृति संरक्षण-संवर्धन, स्वास्थ्य, शिक्षा नीति, राजनीति आदि में यदि हम अपने गौरवमयी एवं अतीत का संतुलन एवं समन्वय कर लें तो निश्चित रूप से पूरे विश्व को भारत के पीछे चलने के लिए विवश होना ही होगा।
पूरी दुनिया का नेतृत्व करने में हमारी शिक्षा व्यवस्था की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है। हमारी अतीत की शिक्षा गुरुकुलों में गुरुओं के माध्यम से संचालित होती थी। गुरु बच्चों के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखकर शिक्षा देते थे और अतीत में हमारे गुरुजन यह स्वयं भांप लेते थे कि किस बच्चे की रुचि किस क्षेत्र में है? इसी बात को ध्यान में रखकर गुरुजन शिष्यों को शिक्षा देते थे।
तमाम रास्ते अपनाने के बाद जब भारत की सनातन संस्कृति से भारतीयों का रुझान अंगे्रज कम नहीं कर पाये तो लार्ड मैकाले ने कहा कि यदि भारत पर लंबे समय तक शासन करना है और भारतीयों को पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति के रंग में रंगना है तो गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त कर अपनी शिक्षा व्यवस्था को आगे बढ़ाना होगा। इस मकसद में अंग्रेजों को काफी हद तक कामयाबी भी मिली। उसी अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था के कारण आज हमारे देश में अनगिनत भारतीय अंग्रेज मिल जायेंगे, जो अन्य भारतीयों को भी गुलाम मानसिकता का आदी बनाने के लिए प्रेरित करते रहते हैं।
शिक्षा व्यवस्था की तरह स्वास्थ्य क्षेत्र में भी हमारा अतीत बहुत गौरवशाली रहा है। त्रेता युग से लेकर महाभारत काल मौर्य एवं विक्रमादित्य के काल तक जितनी भी लड़ाइयां लड़ी गई हैं, उनमें आयुर्वेद, प्राकृतिक एवं पारंपरिक तौर-तरीके से ही इलाज किया जाता था। उस समय तो अंग्रेजी दवाओं का नामो-निशान ही नहीं था।
अतीत में जिन बीमारियों का इलाज दादी-नानी के नुस्खों से हो जाता था, आज उसका इलाज अच्छे से अच्छे डाॅक्टर एवं अस्पताल नहीं कर पा रहे हैं। वाराणसी में एक जनसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि अतीत में एक ही वैद्य व्यक्ति की नाड़ी देखकर सभी बीमारियों को बता देते थे किन्तु आज तमाम टेस्ट करने के बाद भी बीमारी का पता नहीं चल पाता है। उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा कि भविष्य में दायें हाथ का इलाज कोई डाॅक्टर करेगा तो बायें हाथ का इलाज कोई अन्य डाॅक्टर करेगा। भविष्य में ऐसा संभव भी है।
वैश्विक महामारी कोरोना काल में जब पूरी दुनिया के हाथ-पांव फूल गये तो उससे निपटने के लिए भारत ने ही पूरे विश्व को रास्ता दिखाने का कार्य किया। विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा कोरोना काल के लिए जो भी निर्देश दिये गये, उन सबका अतीत में भारतीय जीवनशैली में बहुत उपयोग होता था किन्तु बाद में हम लोग उसे भूल गये थे। उन सब बातों को जीवन में ढालते ही सनातन संस्कृति का डंका विश्व में फिर से बजने लगा। इसके अतिरिक्त भारतीय जीवन पद्धति में कभी भी अपने परिवार एवं अपने देश के कल्याण की भावना निहित नहीं रही है। यहां की संस्कृति में तो ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना विद्यमान रही है यानी पूरी वसुधा को ही परिवार माना गया है। आज भी जब मंदिरों में नारे लगते हैं तो वहां ‘विश्व का कल्याण हो’ के नारे लगाये जाते हैं। जाहिर सी बात है कि जिस संस्कृति में पूरे विश्व के कल्याण की भावना निहित होगी, वही तो विश्व का नेतृत्व कर सकता है और अपने पीछे पूरी दुनिया को चला सकता है।
भगवान महावीर के मात्र दो उपदेशों- ‘अहिंसा परमो धर्मः’ एवं ‘जियो और जीने दो’ को यदि पूरी दुनिया आत्मसात कर ले तो किसी बात को लेकर लड़ाई-झगड़े एवं तनाव की संभावना ही नहीं रह जायेगी और विश्व शांति के मार्ग पर चल पड़ेगा। पर्यावरण-प्रदूषण आज पूरे विश्व की बहुत भीषण समस्या है किन्तु प्रकृति की शरण में जाये बिना इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता।
हमारी सनातन संस्कृति हमें यह बताती है कि प्रकृति की तरफ हम जितना अधिक आयेंगे, उतना ही प्रदूषण, प्राकृतिक आपदा, बेमौसम सूखा-बाढ़, तूफान एवं अन्य आपदाओं से बचेंगे किन्तु उसके लिए आवश्यकता इस बात की है कि प्रकृति से सिर्फ हम उतना ही लें जितना कि हमारे जीवन यापन के लिए आवश्यक है। उससे आगे बढ़कर यदि हम प्रकृति का दोहन-शोषण करेंगे तो उसका प्रकोप झेलने से किसी भी कीमत पर बच नहीं पायेंगे। अतः इस बात की अत्यंत आवश्यकता है कि प्रकृति के संरक्षण एवं संवर्धन की तरफ विशेष रूप से ध्यान दिया जाये। हमारे व्रत, त्यौहार एवं पर्व हमें प्रकृति के करीब ले जाते हैं।
उदाहरण के तौर पर छठ पूजा प्रकृति के संरक्षण-संवर्धन का प्रमुख पर्व है तो नागपंचमी के माध्यमों से नागों का भी संरक्षण-संवर्धन किया जाता है। सनातन संस्कृति के 16 संस्कार ये बताते हैं कि जीवन कैसे जिया जाये? जिस भारत भूमि में ऋषि दधीचि ने लोक कल्याण के लिए अपनी हड्डियां दान कर दी हों, आचार्य विनोबा भावे ने भूदान आंदोलन चलाकर भूमिहीनों को भूमि देने का काम किया हो, पं. मदन मोहन मालवीय ने दान मांग कर काशी हिंदू विश्व विद्यालय की स्थापना कर दी हो, आजादी की लड़ाई में अनगिनत लोगों ने शहादत दी हो, मुगल काल में दानवीर भामाशाह ने अपनी सारी संपत्ति मातृभूमि की रक्षा के लिए महाराणा प्रताप को सौंप दी हो, उस भारत भूमि को ही यह नैतिक अधिकार है कि विश्व का पुनः नेतृत्व करे। कुल मिलाकर कहने का आशय यह है कि सतयुग से लेकर आज तक भारत की पवित्र भूमि अनगिनत गौरव गाथाओं से ओत-प्रोत है। ऐसे में भारत को विश्व शांति के लिए नेतृत्व हेतु आगे बढ़ना ही होगा।
मुझे इस बात की बेहद प्रसन्नता है कि प्रधानमंत्री नरें्रद्र मोदी जी के कुशल नेतृत्व में देश उसी दिशा में आगे बढ़ रहा है और आज प्रधानमंत्री की ख्याति पूरे विश्व में कुशल नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित होती जा रही है। अब वह दिन दूर नहीं जब पूरी दुनिया भारत के पीछे चलने के लिए विवश होगी। पूरे देश को बेसब्री से इसी बात का इंतजार है। आज नहीं तो कल ऐसा होकर रहेगा और ऐसा जरूरी भी है।
– सिम्मी जैन
दिल्ली प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य- भाजपा,
पूर्व चेयरपर्सन – समाज कल्याण बोर्ड- दिल्ली,
पूर्व निगम पार्षद (द.दि.न.नि.) वार्ड सं. 55एस।