सात्विक और तामस भोजन क्या है?
उच्छिष्टमवशिष्टं वा पथ्यं पूतमभीप्सितम् ।
भक्तानां भोजनं विष्णोर्नैवेद्यं सात्विकं मतम्।।
अर्थात – विष्णु भगवान को भोग लगाकर सुपथ्य, इच्छित और पवित्र नैवेद्य को जो भक्त खाते हैं, वही सात्विक भोजन है।
इन्द्रियमोदिजननं शुक्रशोणितवर्द्धनम् ।
भोजनं राजतं शुद्ध- मायुरारोग्यवर्द्धनम् ॥
अर्थात – जो इन्द्रियों को प्रसन्न करता है, जिससे वीर्य और रुधिर (रक्त) की वृद्धि होती है, जिससे आयु की दृद्धि होती है और जिससे शरीर नीरोग रहता है, उस भोजन को राजस भोजन कहते हैं |
तामस भोजन क्या है?
अतः परं तामसानां कट्वम्लोष्ण- विदाहिकम्।
पूतिपय पितं ज्ञेयं भोजनं तामसप्रियम् ।।
अर्थात – कटु (तीखा), खट्टा, गरम, जले हुए और वासी भोजन को तामस भोजन कहते हैं और यह तामसी पुरुषों को प्रिय होता है।
साविकानां वने वासो ग्रामे वासस्तु राजसः ।
तामसं द्यूत- मयादितदनं परिकीर्तितम् ||
अर्थात – वन में रहना सात्विक है, ग्राम का निवास राजस है और तामस पुरुष जुए के स्थान में अथवा मय के स्थान में रहते हैं।
न दाता स हरि: किञ्चित् सेवकस्तु न याचकः । तथापि परमा प्रीतिस्तयोः किमिति शाश्वती ।।
अर्थात – न तो श्रीहरि किसी भक्त को कुछ देते हैं और न वह भक्त कुछ याचना करता है, परन्तु फिर भी श्रीहरि और भक्त पुरुष की सदा परस्पर परम-प्रीति मालूम होती है, यह श्राश्चर्य की बात नहीं है।
संकलन – अजय चौहान