सनातन धर्म के करीब-करीब हर एक प्राचीन गं्रथ में इतिहास, विज्ञान, गणित और मनोविज्ञान के विषय में विस्तार से समझाया हुआ है। लेकिन इसके बाद भी आज हमारी मानसिकता कुछ इस प्रकर की हो चुकी है कि जब तक कि हमें किसी भी विदेशी डाॅक्टर, विदेशी विश्वविद्यालय या फिर किसी भी घटिया से घटिया विदेशी कंपनी या उनमें काम करने वाले किसी भी प्रकार के सिरफिरे विज्ञानी, डाॅक्टर या फिर प्रोफेसर आदि की मुहर लगी हुई जानकारी न मिल जाये तब तक हम उस जानकारी को सच मानने को तैयार ही नहीं हैं।
उदाहरण के तौर पर, हम यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि भगवान राम ने अपनी सेना के माध्यम से लंका तक जाने के लिए एक पुल का निर्माण करवाया था, लेकिन, फिर भी जब तक नासा वाले अपने सेटेलाईट के माध्यम से उसकी फोटो लेकर यह साबित नहीं कर देता कि यह सच है या झूठ हम खुद भी मानने को ही तैयार नहीं हैं कि वह पुल मानव निर्मित है या प्राकृतिक है। यानी नासा के कहने के बाद ही भारत के पढ़े-लिखे लोगों और वैज्ञानिकों ने इस बात को स्वीकारा था कि हां वह पुल प्राकृतिक नहीं बल्कि मानव निर्मित है।
इसी प्रकार जो लोग कहते हैं कि हमारे वेदों और पुराणों में जो विज्ञान और ज्ञान है हमारे आज के वैज्ञानिकों ने उन सभी की खोज कर ली है और अब वेदों और पुराणों का कोई महत्व नहीं रह गया है, तो यहां हम ये भी बता दें कि जो लोग ऐसा कहते हैं उन्हें यह भी जान लेना चाहिए कि हमारे महान गं्रथों में करीब 12 प्रकार के विमानों का जिक्र किया गया है और उन सभी के अपने अलग-अलग प्रकार थे और उनकी अपनी अलग-अलग खुबियां भी होती थीं, जबकि आज तो मात्र दो या तीन प्रकार के विमानों का अविष्कार ठीक से नहीं हो पाया है। और जो कुछ भी अभी तक हो पाया है वो भी हमारे ही वेदों से लेकर तैयार किया गया है।
यहां एक आम भारतीय को यह भी जा लेना जरूरी है कि जिन राईट ब्रदर्स को विमान के अविष्कार का श्रेय दिया जाता है वे भारत में आकर दक्षिण भारत के मंदिरों में कई-कई दिनों तक इस तकनीक की खोज करते रहते थे, तब कहीं जाकर वे ये कारनामा कर पाये थे।
इसी प्रकार आज भी एक आम हिंदू को वेदों के बारे में इतनी बड़ी गलतफहमी है कि वेदों की रचना लगभग साढ़े तीन हजार वर्ष पहले ही हुई थी। हैरानी तो यह है कि हममें से 90 से 95 प्रतिशत आम लोग यही मानते आ रहे हैं। लेकिन, सच तो यह है कि आज से लगभग साढ़े तीन हजार वर्ष पहले इनकी रचना नहीं, बल्कि पुर्नरचना यानी पुनर्लेखन का कार्य हुआ था। जबकि सच तो ये है कि इन वेदों की रचना आज से लाखों-करोड़ों वर्ष पहले ही हो चुकी थी।
एक आम हिंदू और हिन्दुस्तानी को अपने पूर्वजों के उच्च कोटि के ज्ञान और उनके अविष्कारों पर गर्व होना चाहिए, न कि विदेशी लोगों के आधे अधूरे और अधकचरे ज्ञान पर। हमारी वैदिक और पौराणिककाल की उपलब्धियां अपने गौरवपूर्ण और स्वर्णिम इतिहास की झलक आज भी दिखला रहीं हैं।
आज एक आम भारतीय व्यक्ति तथा व्यक्तित्व के संघर्षपूर्ण जीवन में सामाजिक विज्ञान और मनोविज्ञान के साथ पश्चिमी सभ्यता का कैमिकल युक्त विज्ञान इस प्रकार से संघर्ष कर रहा है कि हमारे सामाजिक विज्ञान और मनोविज्ञान के दोनों ही क्षेत्रों पर हावी होकर उसे न सिर्फ परास्त कर रहा है बल्कि दिन प्रतिदिन उसमें इस प्रकार से जहर घोलता जा रहा है कि एक आम भारतीय का मनोविज्ञान निस्तेज होता जा रहा है।
– अशोक सिंह