पति-पत्नी के बीच होने वाली प्रतिदिन की नोक-झोंक जब तलाक तक पहुंच जाये तो उस दौरान होने वाली तमाम घटनाएँ, जीवन में स्थिरता और पूर्वानुमान को बहुत अधिक बाधित करती हैं, जबकि इस दौरान उनके बच्चों को जीवन में सबसे अधिक स्थिरता की जरूरत होती है। बच्चों के जीवन में परिवार के किसी भी सगे सदस्य की मृत्यु के अलावा, तलाक ही वह सबसे तनावपूर्ण घटना होती है जो परिवार को प्रभावित कर सकती है। बच्चों को बहुत बड़ा नुकसान, साथ ही चिंता, गुस्सा और उदासी महसूस हो सकती है, क्योंकि जिस दुनिया को वे जानते हैं, वह अचानक से काफी बदल गई होती है। बच्चों को छोड़ दिए जाने या अपने माता-पिता के प्यार को खोने का डर हो सकता है। इसके अलावा, कई कारणों से, तलाक के समय परवरिश के कौशल अक्सर खराब हो जाते हैं। माता-पिता आमतौर पर पहले से व्यस्त होते हैं और एक-दूसरे के प्रति क्रोधित और शत्रुतापूर्ण हो सकते हैं। थोड़ा समझदार होने पर बच्चे स्वयं को दोषी महसूस कर सकते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि वे ही उस तलाक का कारण बने होंगे। यदि माता-पिता बच्चों की अनदेखी करते हैं या कभी-कभी और अप्रत्याशित रूप से उनसे मिलते हैं, तो बच्चे अस्वीकृत महसूस करते हैं।
माता-पिता का तलाक या अलग होना बच्चों के लिए एक मुश्किल घटना है। हालांकि, कई परिवार अपने बच्चों के साथ रहने वाले दो माता-पिता के रूप में संरचित नहीं होते हैं। परिवार कई अलग-अलग रूप लेते हैं, जैसे कि एक बच्चा और एकल माता-पिता, माता-पिता और पिछले संबंधों के बच्चों के साथ एक मिश्रित परिवार या ऐसे बच्चे जिनका पालन-पोषण, दादा-दादी या परिवार के अन्य सदस्यों या अन्य वयस्क देखभालकर्ताओं द्वारा किया जा रहा है।
एक बार जब माता-पिता अलग होने और तलाक देने का फैसला करते हैं, तो परिवार के सदस्य समायोजन के कई चरणों से गुजरते हैं। वह अवधि जब माता-पिता तलाक से पहले के समय सहित अलग होने का फैसला करते हैं उसमें उथल-पुथल अक्सर अधिकतम होती है। यह चरण अगले एक से दो वर्षों तक बना रह सकता है जिसको बच्चे बहुत ध्यान से देखते हैं। इस दौरान दौरान बच्चा माता-पिता के बीच नए रिश्ते, मुलाकात और रहने की व्यवस्था से जुझने की अवधि में होता है।
तलाक के दौरान, स्कूल के काम बच्चों और किशोरों के लिए महत्वहीन लग सकता है और स्कूल का प्रदर्शन अक्सर खराब हो जाता है। बच्चों की कल्पनाएं हो सकती हैं कि माता-पिता फिर से मेल-मिलाप करेंगे। बच्चों पर प्रभाव उम्र और विकास के स्तर के अनुसार भिन्न-भिन्न होता है, जिसे एक साधारण व्यक्ति या माता-पिता समझ नहीं पाते।
लगभग 2 से 5 वर्ष की उम्र के बच्चों को सोने में मुश्किल होना, गुस्से में बदमिजाजी करना और अलगाव की चिंता हो सकती है। उनकी दिनचर्या का वह प्रथम कौशल बिगड़ सकता है जिसके लिए उसको माता-पिता की सबसे अधिक अवश्यकता होती है। तलाक के दौरान 5 से 10 वर्ष की उम्र के बच्चों में उदासी, दुःख, तीव्र क्रोध और तर्कहीन फोबिया का अनुभव होने लगता है जो उसके लिए आगे जीवन भर तक परेशान करता है।
करीब-करीब 11 से 21 वर्ष के किशोरों में अक्सर असुरक्षित, अकेला और उदास रहने का दौर शुरू हो जाता है। कुछ बच्चे तो बहुत अधिक जोखिम भरे व्यवहार या अपराधों में लिप्त हो जाते हैं, जैसे कि अवैध नशीली दवाओं और अल्कोहल का सेवन, यौन संबंध, चोरी और हिंसा। इसके अलावा, अन्य कई बच्चों में खाने संबंधी विकार विकसित हो सकते हैं, वे विद्रोही हो सकते हैं, स्कूल छोड़ सकते हैं, या ऐसे साथियों के साथ शामिल हो सकते हैं, जो समाज में बड़े अपराध या जोखिम भरे व्यवहार में अपनी पहचान बना लेते हैं।
तलाक के दौरान या ऐसी स्थितियों में अपने बच्चों को या वयस्क होते किशोरों को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में सक्षम करना होता है जो समस्या को समझेध् ध्यान से सुने और स्थिति को जाने। काउंसिलिंग के द्वारा बच्चों को कुछ हद तक संभाला जा सकता है, लेकिन यह स्थायी समाधान नहीं होता है। क्योंकि माता-पिता से बड़ा प्रथम गुरू अन्य कोई नहीं हो सकता।
बच्चे सबसे अच्छी तरह से तब घुल-मिल कर रहते हैं जब माता-पिता भी एक-दूसरे के साथ सहयोग करें और बच्चे की जरूरतों पर ध्यान केंद्रित करें। माता-पिता को याद रखना चाहिए कि तलाक केवल पति-पत्नी के रूप में उनके रिश्ते को तोड़ता है, उनके बच्चों के माता-पिता के रूप में उनके रिश्ते और जिम्मेदारियों को नहीं। जब भी संभव हो, माता-पिता को एक-दूसरे के करीब रहना चाहिए, बच्चे की उपस्थिति में एक-दूसरे के साथ सम्मानजनक व्यवहार करना चाहिए, बच्चे के जीवन में दूसरे की भागीदारी बनाए रखना चाहिए, और मुलाकात के बारे में बच्चे की इच्छाओं पर विचार करना चाहिए।
– त्रिलोक चौहान, इंदौर से