Skip to content
26 June 2025
  • Facebook
  • Twitter
  • Youtube
  • Instagram

DHARMWANI.COM

Religion, History & Social Concern in Hindi

Categories

  • Uncategorized
  • अध्यात्म
  • अपराध
  • अवसरवाद
  • आधुनिक इतिहास
  • इतिहास
  • ऐतिहासिक नगर
  • कला-संस्कृति
  • कृषि जगत
  • टेक्नोलॉजी
  • टेलीविज़न
  • तीर्थ यात्रा
  • देश
  • धर्म
  • धर्मस्थल
  • नारी जगत
  • पर्यटन
  • पर्यावरण
  • प्रिंट मीडिया
  • फिल्म जगत
  • भाषा-साहित्य
  • भ्रष्टाचार
  • मन की बात
  • मीडिया
  • राजनीति
  • राजनीतिक दल
  • राजनीतिक व्यक्तित्व
  • लाइफस्टाइल
  • वंशवाद
  • विज्ञान-तकनीकी
  • विदेश
  • विदेश
  • विशेष
  • विश्व-इतिहास
  • शिक्षा-जगत
  • श्रद्धा-भक्ति
  • षड़यंत्र
  • समाचार
  • सम्प्रदायवाद
  • सोशल मीडिया
  • स्वास्थ्य
  • हमारे प्रहरी
  • हिन्दू राष्ट्र
Primary Menu
  • समाचार
    • देश
    • विदेश
  • राजनीति
    • राजनीतिक दल
    • नेताजी
    • अवसरवाद
    • वंशवाद
    • सम्प्रदायवाद
  • विविध
    • कला-संस्कृति
    • भाषा-साहित्य
    • पर्यटन
    • कृषि जगत
    • टेक्नोलॉजी
    • नारी जगत
    • पर्यावरण
    • मन की बात
    • लाइफस्टाइल
    • शिक्षा-जगत
    • स्वास्थ्य
  • इतिहास
    • विश्व-इतिहास
    • प्राचीन नगर
    • ऐतिहासिक व्यक्तित्व
  • मीडिया
    • सोशल मीडिया
    • टेलीविज़न
    • प्रिंट मीडिया
    • फिल्म जगत
  • धर्म
    • अध्यात्म
    • तीर्थ यात्रा
    • धर्मस्थल
    • श्रद्धा-भक्ति
  • विशेष
  • लेख भेजें
  • dharmwani.com
    • About us
    • Disclamar
    • Terms & Conditions
    • Contact us
Live
  • लाइफस्टाइल

बढ़ती सुविधाओं से बढ़ती निष्क्रियता… | Problems with Facilities

admin 4 April 2021
luxurious lifestyle in india
Spread the love

दुनिया के साथ-साथ भारत भी निरंतर तरक्की की राह पर अग्रसर है। देश हर दृष्टि से तरक्की कर रहा है। तरक्की का यह कारवां मनुष्य के जीवन में जन्म से लेकर मृत्यु तक देखने को मिल रहा है। जन्म के मामले में देखा जाये तो शिशुओं का धरती पर आगमन परखनली के माध्यम से भी हो रहा है तो अंतिम यात्रा के समय व्यक्ति चार लोगों के कंधों पर सवार होकर जाता था किन्तु अब एंबुलेंस एवं अन्य वाहनों के द्वारा सीधे श्मशान घाट पहुंच रहा है यानी संसाधनों की इतनी प्रचुरता हो गई है कि सब कुछ रेडीमेड व्यवस्था की तर्ज पर हो रहा है, बशर्ते धन की कमी नहीं होनी चाहिए। यदि धन की कमी है तो संसाधन नसीब नहीं होंगे। व्यक्ति के आम जीवन में सुबह से रात्रि तक संसाधनों की इतनी उपलब्धता है कि श्रम की नहीं के बराबर आवश्यकता पड़ती है।

रसोई से लेकर शयन कक्ष तक आराम तलबी का बोलबाला है। यह बात अलग है कि कुछ लोगों को दो वक्त की रोटी के लिए भी कठिन परिश्रम करना पड़ता है। कुल मिलाकर मेरे कहने का आशय यह है कि मानव जीवन में सुविधाएं तो बढ़ रही हैं किन्तु उसके कुछ दुष्परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं। इस बात से या तो हम अनभिज्ञ हैं या जान-बूझकर इससे मुंह मोड़े हुए हैं।

बढ़ती सुविधाओं से यदि निष्क्रियता बढ़ रही है और उसके कुछ दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं तो इस समस्या से मुंह मोड़ना किसी भी रूप में उचित नहीं होगा। दुष्परिणामों से कैसे निजात पाई जाये, इसका समाधान तो खोजना ही होगा। शारीरिक निष्क्रियता से लोगों में तमाम तरह की बीमारियां पनप रही हैं। शुगर, डायबिटीज जैसी बीमारियों के बारे में तो कहा जाता है कि अधिक आरामतलबी की स्थिति में और अधिक बढ़ती हैं। शारीरिक सक्रियता से इन पर काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन के मुताबिक अत्यंत सुविधाओं के बीच 45 करोड़ से अधिक लोग मानसिक विकारों से ग्रस्त हैं।

मोबाइल, लैपटाॅप, कंप्यूटर एवं अन्य आधुनिक उपकरणों के अत्यधिक प्रयोग से बच्चों का न तो शारीरिक रूप से पूरा विकास हो पा रहा है और न ही मानसिक रूप से। शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए इस बात की अत्यधिक आवश्यकता है कि बच्चों को आॅनलाइन खेलों के साथ शारीरिक रूप से खेले जाने वाले खेलों की तरफ भी अग्रसर किया जाये।

अपने देश की प्राचीन जीवनशैली में बच्चे सुबह से शाम तक मिट्टी में खेलते, कूदते एवं दौड़ते थे। इसके साथ-साथ अखाड़े में जाकर लोटते-पोटते भी थे, इससे उनका सर्वांगीण विकास होता था किन्तु अब वह स्थिति नहीं रही इसलिए बच्चों का शारीरिक विकास तो अवरुद्ध हो ही रहा है, साथ-साथ बच्चों का मानसिक रूप से भी पूर्ण विकास नहीं हो पा रहा है।

भारतीय समाज में एक बहुत ही पुरानी कहावत प्रचलित है कि ‘तंदुरुस्ती हजार नियामत है यानी स्वस्थ शरीर ईश्वर की हजार देनों के बराबर है।’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सराहनीय प्रयासों से आज पूरा विश्व योग के महत्व को समझते हुए उस तरफ आकर्षित तो हुआ है किन्तु मात्र योग से ही बात बनने वाली नहीं है। मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिए श्रम यदि जरूरी है तो वह करना ही होगा। श्रम को प्रतिष्ठा का विषय बनाकर उससे दूरी बनाना उचित नहीं कहा जा सकता है। नौकरों-चाकरों एवं मजदूरों पर जरूरत से अधिक आश्रित होना भी अच्छी बात नहीं है। इनसे जितनी जरूरत हो उतना श्रम लिया जाये और यदि कुछ श्रम स्वयं कर लिया जाये तो अच्छा ही होगा। श्रम करना अपने स्वभाव में यदि विकसित कर लिया जाये तो और अच्छा होगा क्योंकि परिश्रम मानव जीवन का मूल आधार है।

वैसे भी, यदि वर्तमान में भारत सहित पूरे विश्व का विश्लेषण किया जाये तो पूरा विश्व श्रमजीवी एवं बुद्धिजीवी स्तर पर विभाजित है। तमाम बुद्धिजीवियों को यह लगता है कि वे अपनी बुद्धि कौशल से ऐशो-आराम की जिंदगी बिता रहे हैं किन्तु वे अपने जीवन में थोड़ा-सा ऐशो-आराम का मोह त्याग कर अपने दैनिक जीवन में शारीरिक श्रम को भी शामिल कर लें तो मानसिक सक्रियता के साथ-साथ उनकी शारीरिक सक्रियता भी बनी रहेगी और शारीरिक रूप से अपना भरण-पोषण करने वाले श्रमजीवियों के मन में यह भावना नहीं पनपेगी कि उनके जीवन में ऐशो-आराम कहां लिखा है? शारीरिक श्रम करना तो ईश्वर ने उनके मुकद्दर में ही लिख दिया है।

यदि सभी लोग थोड़ा बहुत अपने जीवन में शारीरिक श्रम को शामिल कर लेंगे तो श्रम के आधार पर समाज में बढ़ रही कटुता एवं खाई को भी पाटने में मदद मिलेगी। उदाहरण के तौर पर सड़क पर यदि कोई भीख मांगते हुए दिखता है तो तमाम लोग यह नसीहत देते हुए दिखते हैं कि ईश्वर ने हाथ-पैर दुरुस्त दिये हैं तो भीख क्यों मांग रहे हो, मेहनत एवं काम करके कमाओ-खाओ।

किसकी रोटी कैसे चल रही है? इस प्रकरण में मुख्य बात यह है कि शारीरिक श्रम के अभाव में निष्क्रियता पनपती है और निष्क्रियता के कारण तमाम बीमारियां घेर लेती हैं जबकि यह सर्वविदित है कि व्यक्ति यदि शारीरिक रूप से स्वस्थ होगा तो वह मानसिक रूप से भी स्वस्थ होगा। वैसे भी वैज्ञानिक शोधों से यह साबित हो चुका है कि श्रम करते रहने से शरीर के विषैले तत्व पसीने में बह कर बाहर आ जाते हैं और इससे बीमारियों की संभावना कम हो जाती है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि शारीरिक रूप से शिथिलता ही सभी शिथिलताओं की जड़ है।

शहरी जीवन में नींद न आना एक बहुत बड़ी समस्या बनती जा रही है जबकि भारतीय प्राचीन जीवनशैली में श्रम एवं नींद का गहरा संबंध रहा है। बड़े-बुजुर्ग आज भी बच्चों को यह समझाया करते हैं कि श्रम करने से नींद खूब अच्छी आती है। ऐसा प्रत्येक स्तर से साबित भी हो चुका है। ऐसे में उत्तम भाग्य प्राप्त होने के बावजूद यदि थोड़ा-बहुत श्रम नियमित रूप से किया जाये तो अति उत्तम कार्य साबित होगा।

शारीरिक सक्रियता एवं स्वास्थ्य की दृष्टि से ग्रामीण जीवन को सबसे उत्तम माना गया है क्योंकि वहां सुबह से लेकर रात्रि सोने तक जीवनयापन से जुड़े जितने भी कार्य हैं उनमें अधिकांश शारीरिक श्रम से ही जुड़े हैं। पशुओं की देखभाल एवं खेती-बाड़ी के सभी कार्य ग्रामीण लोगों को चुस्त-दुरुस्त रखते हैं। गांवों में दरवाजों पर झाड़ू लगाना, चारे की मशीन, फावड़ा-कुदाल चलाना, कुएं से पानी निकालना, पशुओं को चारा देना आदि कार्य शारीरिक श्रम से ही जुड़े हुए हैं, इससे व्यक्ति स्वस्थ रहता है। गांवों में बच्चे भी पशुपालन एवं खेती-बाड़ी में घर वालों का हाथ बंटाते हैं इससे उनकी भी शारीरिक सक्रियता बनी रहती है। प्राचीन जीवनशैली में बच्चे आनंदित होकर नदियों, तालाबों एवं नहरों में तैरा करते थे इससे उनकी सक्रियता बनी रहती थी।

हालांकि, बदलते वक्त के साथ ग्रामीण जीवनशैली में भी निष्क्रियता ने अपनी जगह बनानी शुरू कर दी है किन्तु उसके बावजूद वहां अभी स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी हद तक अच्छा है। गांवों की जीवनशैली को देखते हुए ही भारतीय सभ्यता-संस्कृति में एक बात कही गई है कि ईश्वर ने गांवों की रचना की और इंसानों ने शहरों की यानी ईश्वर भी ग्रामीण जीवनशैली को ही पसंद करता है। वैसे भी कहा जाता है कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है। यह भी अपने आप में सत्य बात है कि हिन्दुस्तान के सभी लोग यदि बाबूगिरी करने लगेंगे तो सबके लिए रोजी-रोटी की व्यवस्था कैसे होगी? कहने का आशय यह है कि यदि सभी लोग लिखने-पढ़ने का ही काम ढूंढ़गे तो खेती-बाड़ी कौन करेगा?

कुल मिलाकर यहां बात यह हो रही है कि जैसे-जैसे व्यक्ति के पास सुविधाएं आ रही हैं, वैसे-वैसे श्रम के मामलों में वह आलसी बनता जा रहा है और इसी आलस्य की वजह से शारीरिक निष्क्रियता बढ़ रही है और इसी निष्क्रियता की वजह से लोग नई-नई बीमारियों के चंगुल में फंसते जा रहे हैं। हालांकि, यह बात सभी को पता है कि निष्क्रियता से क्या नुकसान हैं? जब समस्या सभी को पता है तो उसका निदान भी आसानी से हो सकता है और यह समस्या भी कोई मुश्किल नहीं है। मेरा यह सब लिखने का मूल मकसद यही है कि जीवन में जहंा कहीं भी श्रम करने का अवसर मिले, उसका लाभ अवश्य उठाना चाहिए। जीवन में सक्रिय रहने का यही सबसे बड़ा मंत्र एवं उपाय है।

शहरी जीवन में भी तमाम सुख-सुविधाओं के बीच ऐसे तमाम अवसर आते हैं जिनका लाभ उठाकर अपने को सक्रिय रखा जा सकता है। उदाहण के तौर पर आफिस में यदि मौका मिले तो यथा संभव लिफ्ट के साथ-साथ आने-जाने के लिए जीने यानी सीढ़ियों का भी प्रयोग करते रहना चाहिए।

सब्जी एवं राशन लेने के लिए स्वयं जाया जाये तो सक्रियता बनी रहेगी। बच्चों को स्कूल एवं ट्यूशन भेजते समय जितना अधिक पैदल चला जाये उतना ही अच्छा होगा। आफिस की तमाम व्यस्तताओं के बीच समय निकालकर थोड़ा बहुत पैदल चलते रहना चाहिए। इस प्रकार जितने भी अवसर मिले अपने को स्वस्थ बनाये रखने के लिए हर उपाय करते रहें। शारीरिक श्रम की आड़ में यदि प्रतिष्ठा या स्टेटस कहीं से जरा भी रोड़ा बनता नजर आये तो अपने धार्मिक, पौराणिक एवं आध्यात्मिक गौरवशाली गाथाओं से भी मदद ली जा सकती है।

उदाहरण के तौर पर देखा जाये तो जगत जननी माता सीता अयोध्या के चक्रवर्ती राजा दशरथ की पुत्रवधू एवं भगवान श्रीराम की अर्धांगिनी थीं तो मिथिला नरेश जनक की पुत्री भी थीं उसके बावजूद वे प्रभु श्रीराम के साथ जंगल में वनवास के लिए चल पड़ीं और उनके मन में यह भाव कभी न आया कि वे तो एक राजा की पुत्री और एक राजा की पुत्रवधू हैं तो उनकी मदद कोई भी कर सकता है और उन्हें जिस स्थिति में रहना पड़ रहा है उससे छुटकारा मिल सकता है किन्तु उनके मन में तनिक भी प्रतिष्ठा या स्टेटस की बात नहीं आई। इससे भी बहुत महत्वपूर्ण बात यह है कि लंका विजय के पश्चात माता जानकी को अयोध्या से पुनः वन में अकेले महर्षि बाल्मीकि के आश्रम में जाना पड़ा तो तब वे एक राजा यानी मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम की पत्नी थीं।

नारी होते हुए भी माता जानकी ने वन जाते समय किसी भी प्रकार की सुख-सुविधा लेने से इनकार कर दिया। यहां एक बात यह भी महत्वपूर्ण है कि माता जानकी के महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में जाने के बाद प्रभु श्रीराम भी राजा होते हुए भी सामान्य व्यक्ति की तरह जीवन बिताने लगे यानी जिस तरह माता जानकी वन में रहती थीं, कमोबेश उसी के अनुरूप प्रभु श्रीराम अयोध्या में भी जीवनयापन करने लगे यानी प्रतिष्ठा एवं स्टेटस की बात कहीं दूर-दूर तक भी नहीं थी।

हमें इस बात के लिए सावधान भी रहना होगा कि कहीं हम वैश्विक मामलों में उलझ कर श्रम से दूर तो नहीं भाग रहे हैं क्योंकि अमूमन सभी विकसित देशों का जोर उपभोक्तावादी संस्कृति के प्रचार-प्रसार पर है और यही उनकी अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार भी है। वे तो यही चाहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति नौकरी करे और उधार लेकर जीवन जिये जिससे उनकी दुकानें भली-भांति चलती रहें और उनकी अर्थव्यवस्था दिन दूनी-रात चैगुनी तरक्की करती रहे।

कुल मिलाकर कहने का आशय यही है कि हम चाहे कितना भी सुखी-संपन्न क्यों न हों, उसके बावजूद हमें अपने जीवन में शारीरिक श्रम को अपनाना ही चाहिए। बीमारियों से बचने के लिए निष्क्रियता को त्यागना ही होगा अर्थात अस्पतालों में रोज-रोज चक्कर लगाकर अनावश्यक श्रम करने के बजाय यदि अपने दैनिक जीवन में ही नियमित रूप से श्रम को अपना स्थायी सहयोगी बना लिया जाये तो राष्ट्र एवं समाज की तमाम समस्याओं का समाधान स्वतः हो जायेगा।

– सिम्मी जैन ( दिल्ली प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य- भाजपा, पूर्व चेयरपर्सन – समाज कल्याण बोर्ड- दिल्ली, पूर्व निगम पार्षद (द.दि.न.नि.) वार्ड सं. 55एस। )

About The Author

admin

See author's posts

1,543

Related

Continue Reading

Previous: सड़कों पर बिखरता तनाव, गुस्सा और उग्र रूप
Next: जिम्मेदारी-जवाबदेही का निर्धारण हर स्तर पर नितांत आवश्यक…

Related Stories

Afghanistan and Pakistan border
  • कला-संस्कृति
  • लाइफस्टाइल
  • विशेष

पुराणों के अनुसार ही चल रहे हैं आज के म्लेच्छ

admin 25 February 2025
Ganga Snan Mantra
  • लाइफस्टाइल
  • विशेष
  • स्वास्थ्य

स्नान कैसे करें, स्नान की सही विधि क्या है ? 

admin 29 August 2024
Satvik and Tamas food in Hindi
  • लाइफस्टाइल
  • विशेष
  • स्वास्थ्य

सात्विक और तामस भोजन क्या है?

admin 23 August 2024

Trending News

वैश्विक स्तर पर आपातकाल जैसे हालातों का आभास Natural Calamities 1

वैश्विक स्तर पर आपातकाल जैसे हालातों का आभास

28 May 2025
मुर्गा लड़ाई यानी टीवी डिबेट को कौन देखता है? 2

मुर्गा लड़ाई यानी टीवी डिबेट को कौन देखता है?

27 May 2025
आसान है इस षडयंत्र को समझना Teasing to Girl 3

आसान है इस षडयंत्र को समझना

27 May 2025
नार्वे वर्ल्ड गोल्ड मेडल जीत कर दिल्ली आने पर तनिष्क गर्ग का भव्य स्वागत समारोह Nave Word Medal 4

नार्वे वर्ल्ड गोल्ड मेडल जीत कर दिल्ली आने पर तनिष्क गर्ग का भव्य स्वागत समारोह

26 May 2025
युद्धो और युद्धाभ्यासों से पर्यावरण को कितना खतरा है? war-and-environment-in-hindi 5

युद्धो और युद्धाभ्यासों से पर्यावरण को कितना खतरा है?

23 May 2025

Total Visitor

078162
Total views : 142477

Recent Posts

  • वैश्विक स्तर पर आपातकाल जैसे हालातों का आभास
  • मुर्गा लड़ाई यानी टीवी डिबेट को कौन देखता है?
  • आसान है इस षडयंत्र को समझना
  • नार्वे वर्ल्ड गोल्ड मेडल जीत कर दिल्ली आने पर तनिष्क गर्ग का भव्य स्वागत समारोह
  • युद्धो और युद्धाभ्यासों से पर्यावरण को कितना खतरा है?

  • Facebook
  • Twitter
  • Youtube
  • Instagram

Copyright ©  2019 dharmwani. All rights reserved