अजय सिंह चौहान ॥ कामख्या माता का शक्तिपीठ मंदिर (Kamakhya Shakti Peeth Temple) ब्रह्मपुत्र नदी (Brahmaputra River) के किनारे बसे गुवाहाटी शहर के पश्चिम में निलाचल पर्वत पर स्थित है। यह पवित्र स्थान राज्य के प्राचीनतम धर्मस्थलों और मंदिरों में सबसे प्रमुख माना जाता है। मान्यता है कि इस स्थान पर माता सती का योनि भाग गिरा था, उसी से कामाख्या नामक इस महापीठ की उत्पत्ति हुई थी। यह भी मान्यता है कि देवी का योनि भाग होने की वजह से यहां माता आज भी हर वर्ष रजस्वला होती हैं।
कामख्या माता के इस शक्तिपीठ (Kamakhya Shakti Peeth Temple) की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस मंदिर के गर्भगृह में देवी की कोई मूर्ति नहीं है बल्कि एक कुंड-सा आकार है, जिसमें सदैव पानी भरा रहता है। यह कुंड ही योनि भाग के रूप में पूजा जाता है जो हमेशा फूल-पत्तियों से ढका रहता है।
कामाख्या मंदिर से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर ब्रह्मपुत्र नदी (Brahmaputra River) बीचोंबीच भस्मांचल नामक एक प्राकृतिक टापू पर उमानंद भैरव या अघौरी शिव का मंदिर है जो इस शक्तिपीठ के भैरव माने जाते हैं। उस भस्मांचल टापू पर पहुंचने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कामाख्या देवी के दर्शनों से पहले उमानंद भैरव के दर्शन अवश्य करना चाहिए। उमानंद को शिव का अवतार कहा जाता है। कहा जाता है कि यह वही जगह है जहां देवी सती के वियोग में शिव ने एकांतवास लिया था। कहा जाता है कि उमानंद ने क्रोध में आकर इसी टापू पर कामदेव को भस्म कर दिया था। तभी से इस टापू का नाम भस्मांचल पड़ा है।
भस्मांचल नामक इस टापू पर अनेकों महिला एवं पुरूष तांत्रिकों, अघोरी साधुओं और पुजारियों को वाम साधना में लीन देखा जा सकता है। कहा जाता है कि दुनियाभर के वाम साधक यहां साधना करने के लिए एक बार जरूर आते हैं। इस स्थान को तंत्र की उत्पत्ति और तंत्र के अंत का स्थान भी कहा जाता है। रात के समय इस टापू का माहौल भयानक और डरावना हो जाता है इसलिए अंधेरा होने से पहले ही आम श्रद्धालु यहां से निकल जाते हैं।
इसके अलावा यहां इस मंदिर में पशु बलि की परंपर भी प्राचीनकाल से चली आ रही है। जिसके लिए बकरा, भैंसा, कबूतर, मछली आदि की बलि दी जाती है, लेकिन मादा पशु की बलि नहीं दी जाती। इसके अलावा यहां लौकी और कद्दू भी बलि के तौर पर चढ़ाया जाता है।
माना जाता है कि मछन्दरनाथ, गोरखनाथ, ईस्माइलजोगी और लोनाचमारी जैसे कई तंत्र साधक इस जगह पर साधना करने आते थे और यहीं से उन्होंने अपनी साधना पूर्ण की थी।
कामख्या मंदिर (Kamakhya Temple) एक अनूठी संरचनात्मक शैली में बना हुआ है। दूर से देखने पर मंदिर की आकृति मधुमक्खी के छत्ते के आकार में बनी दिखती है। यह मंदिर तीन भागों में बना हुआ है, जिसमें तीनों ही अलग-अलग मंदिर हैं। इनमें से एक मुख्य मंदिर है जबकि दो अन्य भागों में अन्य देवताओं की मूर्तियां हैं। इतिहासकारों के अनुसार मंदिर की यह इमारत मध्ययुगीन शैली की संरचनाओं में से मिलती-जुलती है।
मंदिर संरचना की बात करें तो इस मंदिर का मुख्य गर्भगृह एक गुफानुमा छोटे कमरे जैसा और हल्के अंधेरे में डूबा हुआ रहता है। इसमें नार्थ-इस्ट निर्माण शैली की विशेषता स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है। मंदिर के अंदर और बाहर की सभी दिवारों पर कई देवी-देवताओं की मूर्तियां उकेरी हुई हैं।
इतिहासकारों के अनुसार इस मंदिर की प्राचीन इमारत को 15वीं शताब्दी के शुरूआत के समय में हुसैन शाह नामक एक आक्रमणकारी ने बुरी तरह से तोड़-फोड़ करके इसका नामोनिशान मिटा दिया था और मंदिर का कीमती सामान लूट कर इस स्थान को लगभग मिट्टी में मिला दिया था। जबकि, 1515 से 1540 इसवी में कूच राजवंश की रियासत के राजा विश्वसिंह के शासनकाल में इस मंदिर का आंशिक जिर्णोद्धार करके एक बार फिर से पूजा-पाठ के लायक बना दिया था।
राजा विश्वसिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र नरनारायण ने अपने शासनकाल सन 1540 से 1587 इसवीं के दौरान इस मंदिर का पुनर्निमाण करवाया जो 1565 इसवीं में बनकर तैयार हुआ।
इतिहासकारों का मानना है कि इस मंदिर का पुनर्निमाण ठीक उसी स्थान पर किया गया है। इसके अलावा इसमें उपयोग की गई अधिकतम सामग्री को भी उसी नष्ट किये गये प्राचीन मंदिर के अवशेषों को इकट्ठा करके ही किया गया है।
कामाख्या देवी (Kamakhya Shakti Peeth) का यह शक्तिपीठ मंदिर ब्रह्मपुत्र नदी (Brahmaputra River) के किनारे बसे गुवाहाटी शहर में स्थित है। गुवाहाटी असम राज्य की राजधानी और नार्थ-इस्ट का सबसे बड़ा और व्यस्त शहर भी है। यहां जाने के लिए सबसे अच्छा मौसम अक्टूबर से मार्च का माना जा सकता है। इसके अलावा यह भी ध्यान रहे कि बारिश के मौसम में यहां जाना बेकार हो सकता है। क्योंकि जून से सितंबर के बीच होने वाली यहां की मानसून की जोरदार बारिश से रंग में भंग हो सकता है।
खासकर इस मंदिर (Kamakhya Shakti Peeth) का दौरा करने का सबसे अच्छा समय दुर्गा पूजा के दौरान सितंबर-अक्टूबर के महीनों के बीच का कहा जा सकता है। वैसे इसके अलावा भी कुछ विशेष अवसरों के दौरान तो यहां भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है।
गुवाहाटी देश के लगभग हर भाग से रेल, सड़क और हवाई यात्रा से जुड़ा हुआ है। इसलिए यहां जाने में कोई समस्या नहीं होती। कामाख्या मंदिर (Kamakhya Shakti Peeth) गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से मात्र 6 किलोमीटर दूर है। यह नार्थइस्ट क्ष्ओत्र का सबसे बड़ा और व्यस्त स्टेशन है, इसलिए यहां के लिए देश के लगभग हर भाग से प्रतिदिन के लिए रेल की सुविधा मिल जाती है। सड़क के रास्ते जाने के लिए भी यहां की बस सेवा में कोई समस्या नहीं है। इसके अलावा गुवाहाटी में ही एयरपोर्ट भी है, जहां नियमित उड़ाने की सुविधा है।