कृपया पञ्चाङ्ग देखना खुद भी सीख ले और घर के अन्य सदस्यों एवं बच्चों को भी पञ्चाङ्ग देखना अवश्य सिखाएं क्योंकि यही समय की मांग है, अन्यथा बाद में पछताना पडेगा.
अपनी संस्कृति के दिवस और जयन्तियां भी याद रखें और उन्हे भी मनायें —
क्योंकि भारतीय संस्कृति की आलोचना करते हुए अंग्रेजों ने कहा था कि- “ये लोग
आखिर 365 दिनों में 1660 व्रत पर्व कैसे मानते हैं ये लोग?”
इसी प्रकार कि विवेचना के अभाव में भारतीय समाज चुप रहा। तभी तो धीरे धीरे उन लोगों ने इसका लाभ उठाते हुए आज एक हजार से अधिक बेवजह के “डे” घोषित कर दिये हैं। लेकिन अब जाकर हम लोग जवाब मांगते है 365 दिनों में एक हजार से अधिक “डे” की क्या जरूरत पड़ गयी?
जबकि व्रतराजग्रन्थ के अनुसार ऋषिप्रोक्त संकल्प ही व्रत कहलाता है और एक दिन में यदि 5 व्रत या पर्व है तो आप संकल्प लेकर उन 5 को पूरा कर सकते हैं.
आप खुद ही सोचिये के यदि –
० यदि मातृनवमी थी तो मदर्स डे क्यों लाया गया?
० यदि कौमुदी महोत्सव था तो वेलेंटाइन डे क्यों लाया गया?
० यदि गुरुपूर्णिमा थी तो टीचर्स डे क्यों लाया गया?
० यदि धन्वन्तरि जयन्ती थी तो डाक्टर्स डे क्यों लाया गया?
० यदि विश्वकर्मा जयंती थी तो प्राद्यौगिकी दिवस क्यों लाया?
० यदि सन्तान सप्तमी थी तो चिल्ड्रन्स डे क्यों लाया गया?
० यदि नवरात्रि और कंजिका यानी कन्या भोज था तो डॉटर्स डे क्यों लाया?
० रक्षाबंधन है तो सिस्टर्स डे क्यों?
० भाईदूज है ब्रदर्स डे क्यों?
० आंवला नवमी, तुलसी विवाह मनाने वाले हिंदुओं को एनवायरमेंट डे की क्या आवश्यकता?
० केवल इतना ही नहीं – नारद जयन्ती ब्रह्माण्डीय पत्रकारिता दिवस है।
० पितृपक्ष सात पीढ़ियों तक के पूर्वजों का पितृपर्व है।
० नवरात्रि को स्त्री के नवरूप दिवस के रूप में स्मरण कीजिये।
भारतीय पर्व बहुत ही समृद्ध हैं. इसलिए इन्हें अवश्य मनाईये। संस्कृति विस्मरण और रूपांतरण के लिए छोटी चीजें, अश्रेष्ठ संस्कृति लायी गयी।
नव संवत्सर यानि सनातन धर्म के नए वर्ष को एक षड्यंत्र के तहत “अप्रैल फूल डे” घोषित करके एक जनवरी को “हैप्पी न्यू ईयर” कर दिया गया! उन लोगों ने अपनी नदियों, पहाड़ों, झीलों को बचाया, केवल भारत की नदियों को नष्ट करने के लिए ताकत झोंकी। तभी तो उनकी अमेज़न, टेम्स, वोल्गा, दजला, मिसिसिपी, मिसौरी नदियां सुरक्षित हैं, जबकि हमारी गंगा, यमुना, कावेरी, कृष्णा, नर्मदा, गोदावरी जैसी पवित्र नदियां नहीं।”
अब, अभी और आज, यही समय है पृथ्वी के सनातन भाव को स्वीकार करना ही होगा। यदि हम समय रहते नहीं चेते तो हम अपनी जड़ों से बिलकुल काट जाएंगे और वे हमारे शस्त्र, शास्त्र, वेद, संस्कृत को वे ही हमें अपना बताकर पढ़ाने आ जाएंगे! ऐसे में हमारे पास इसका एक ही उपाय है, अपनी जड़ों की ओर लौटें। अपने सनातन मूल की ओर लौटें, व्रत, त्यौहारों पर्वों को मनामनाएं, अपनी संस्कृति और सभ्यता को जीवंत रखें।
इसीलिए जीवन में हमारे लिए भारतीय पंचांग अपनाना चाहिए क्योंकि भारत अपने पर्वों, त्यौहारों से लेकर मौसम की भी अनेक जानकारियां सहज रूप से जान व समझ लेता है।
हर वर्ष नियमित रूप से अपने क्षेत्र में प्रचलित पारम्परिक पञ्चाङ्ग खरीदें जिनकी गणना पारम्परिक सारिणियों द्वारा बनती हो और आधुनिक खगोलविज्ञान पर आधारित न हो।
क्योंकि हमारे परंपरागत पञ्चाङ्ग का लक्ष्य है हिन्दुओं के धार्मिक व्रत−पर्व आदि का सही ज्ञान देना। सभी हिन्दुओं को सारे नक्षत्रों और राशियों के नाम कण्ठस्थ कर लेने चाहिये और बच्चों को भी रटा देना चाहिये।
आप कितने ही व्यस्त क्यों न हों, प्रतिदिन कम से कम एकाध मिनट के लिये ही उस दिन का पञ्चाङ्ग अवश्य देख लें — पञ्चाङ्ग के पाँच अङ्गों का उस दिन का ज्ञान अवश्य होना चाहिये और उस दिन के प्रमुख पर्वों और व्रतों का। एक मिनट से अधिक नहीं लगेगा।
जो लोग पञ्चाङ्ग नहीं देख और समझ पाते वे सच्चे सनातनी नहीं बन सकते, भले ही लाख हिन्दू−हिन्दू चिल्लायें।”
केवल पंचांग श्रवण का भी पुण्य होता है:–
तिथिवारं च नक्षत्रं योग: करणमेव च।
यत्रैतत्पञ्चकं स्पष्टं पञ्चांङ्गं तन्निगद्यते।।
जानाति काले पञ्चाङ्गं तस्य पापं न विद्यते।
तिथेस्तु श्रियमाप्नोति वारादायुष्यवर्धनम्।।
नक्षत्राद्धरते पापं योगाद्रोगनिवारणम्।
करणात्कार्यसिद्धि:स्यात्पञ्चाङ्गफलमुच्यते।
पञ्चाङ्गस्य फलं श्रुत्वा गङ्गास्नानफलं लभेत्।।
तिथि, वार, नक्षत्र, योग, तथा करण- इन पाँचों का जिसमें स्पष्ट मानादि रहता है, उसे पंचांग कहते हैं। जो यथासमय पंचांग का ज्ञान रखता है, उसे पाप स्पर्श नहीं कर सकता। तिथि का श्रवण करने से श्री की प्राप्ति होती है, वार के श्रवण से आयु की वृद्धि होती है, नक्षत्र का श्रवण पाप को नष्ट करता है, योग के श्रवण से रोग का निवारण होता है, और करण के श्रवण से कार्य की सिद्धि होती है। यह पंचांग श्रवण का फल है। पंचांग के फल को सुनने से गंगा स्नान का फल प्राप्त होता है।
भारत का ‘लोकल’ कैलेण्डर है पंचांग।
जिससे होती भारतीय व्रत पर्वों की पहचान।
व्रत पर्वों पर होता है धर्म कर्म उपवास दान।
उत्सव और पर्व हैं सनातन की शक्ति महान।