![Raja Nahar Singh Palace Faridabad](https://i0.wp.com/dharmwani.com/wp-content/uploads/2021/05/Raja-Nahar-Singh-Palace-Faridabad.jpg?fit=576%2C338&ssl=1)
अजय सिंह चौहान || दिल्ली से सटे बल्लभगढ़ के महान राजा नाहर सिंह (History of Raja Nahar Singh) देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम में शहीद होने वाले अग्रणी क्रांतिकारियों में शामिल थे। अंगे्रजी हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाने वाले, देश की आजादी के लिए फांसी पर झूलने वाले, सन 1857 के स्वतंत्रता आंदोलन की आग को हवा देने वाले और उस आंदोलन का नेतृत्व करने वाले महान क्रांतिकारियों में से एक महान योद्धा और क्रांतिकारी जाट राजा नाहर सिंह का आज के दौर में दूर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि उनके इतिहास के बारे में उन्हीं की कर्मभूमि और उसके आसपास के क्षेत्र यानी दिल्ली-एनसीआर के ही अधिकतर लोगों को ठीक से नहीं मालूम है कि राजा नाहर सिंह कौन थे?
तो फिर देश के बाकी हिस्सों में रहने वाले लोगों से क्या उम्मीद की जा सकती है। जी हां, हम बात कर रहे हैं उन्हीं महान क्रांतिकारी और वीर योद्धा राजा नाहर सिंह की जिनकी जन्मस्थली तो दिल्ली से सटे हरियाणा राज्य के फरीदाबाद में बल्लभगढ़ के सैक्टर 4 में स्थित है लेकिन उनका कर्मक्षेत्र और युद्ध क्षेत्र आज के इस दिल्ली-एनसीआर का अधिकतर भाग हुआ करता था।
महान जाट राजा नाहर सिंह का इतिहास बताता है कि उन्होंने किस प्रकार से अंगे्रजी हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाई थी और देश की आजादी के लिए वे फांसी झूल गए थे। अपनी रियासत को उन्होंने जीते जी पूरी तरह सुरक्षित रखा था।
राजा नाहर सिंह (History of Raja Nahar Singh) चाहते तो अंग्रेजो से हाथ मिला कर अपनी आगे आने वाली पीढ़ी के लोगों को अरबो-खरबों के मालिक बना देते और खुद भी किसी रियासत के मालिक बन कर मौज करते और अंगे्रजों के पालतू बन कर रह सकते थे। लेकिन, उनका यह दूर्भाग्य रहा कि जिस देश और देशवासियों के लिए उन्होंने खुद को बलिदान कर दिया था उन्हीं लोगों ने आज उन्हें भूला दिया है।
जो इतिहास वे रच कर गए थे, उस इतिहास को ही आज के इतिहासकारों ने फाड़ दिया और न जाने कैसे-कैसे मक्कारों के नाम उस इतिहास में जोड़ दिए। इसके उदाहरण के तौर पर साफ-साफ देखा जा सकता है कि राजा नाहर सिंह को जिस स्थान पर इंडिया कंपनी ने 9 जनवरी सन 1858 को लाल किले के ठीक सामने चांदनी चैक में फांसी पर लटका दिया था, आज उसी स्थान का कैसे सरेआम अपमान किया जा रहा है।
राजा नाहर सिंह के वंशजों और क्षेत्रीय लोगों के द्वारा आजादी के बाद से कई बार मांग की गई कि उस स्थान पर राजा जी की मूर्ति लगवा दी जाय। लेकिन, मूर्ति तो क्या किसी भी प्रकार की किताबों और पत्रिकाओं में उन्हें सम्मना तक नही दिया जा रहा है। यानी जो काम 1857 के स्वतंत्रता आंदोलन की विफलता और राजा नाहर सिंह को फांसी देने के बाद ब्रिटिश सरकार करना चाहती थी वही काम 1947 में मिली देश की आजादी के बाद काले अंग्रेजों ने कर दिखाया।
दरअसल राजा नाहर सिंह (History of Raja Nahar Singh) से जुड़े ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि राजा नाहर सिंह को फांसी देने के बाद ब्रिटिश सरकार ने भरपूर कोशिश करी थी कि उनसे जुड़े सभी प्रकार के दस्तावेज और उनसे जुड़ी हर प्रकार की निशानियों को नष्ट कर दिया जाय, ताकि उनकी प्रेरणा लेकर स्वतंत्रता आंदोलन के लिए दूसरे क्रांतिकारी ना पैदा हो सके। इसलिए उनसे संबंधित जो भी सामान सा निशानियां अंगे्रजों के हाथ लगी थीं उन सभी को नष्ट करवा दिया गया था।
यानी आज हम यह भी कह सकते हैं कि जो काम 1857 के स्वतंत्रता आंदोलन की विफलता और राजा नाहर सिंह को फांसी देने के बाद ब्रिटिश सरकार करना चाहती थी वही काम 1947 में मिली देश की आजादी के बाद काले अंग्रेजों ने और वंशवाद करने वाले इतिहासकारों ने कर दिखाया और राजा नाहर सिंह से संबंधित अधिकतर जानकारियों और उनके युद्ध और पराक्रम से जुड़े आंकड़ों और कारनामों को भूला दिया या जानबूझ कर नष्ट कर दिया या करवा दिया गया।
हालांकि, अब उनकी याद और उनके ऐतिहासिक तथ्यों या उनके वजूद के नाम पर राजा नाहर सिंह महल के नाम से बल्लभगढ के सैक्टर 4 में मात्र एक महल ही खड़ा है। और राजा नाहर सिंह का अस्तित्व भी तभी तक बचा हुआ है जब तक वह महल वहां खड़ा है। हालांकि, इस महल को देखने के लिए बहुत ही कम लोग वहां जाते हैं। लेकिन, जो लोग वहां जाते हैं उन्हें भी ठीक से यह नहीं मालूम कि राजा नाहर सिंह कौन थे, और क्या थे?
अगर कोई यह महल देखना चाहता है तो उसके लिए हम बता दें कि देश की राजधानी दिल्ली के करीब होने के कारण यहां तक आने के लिए लगभग हर प्रकार के साधन आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। यहां का सबसे नजदिकी मेट्रो स्टेशन भी राजा नाहर सिंह जी के नाम से ही बनाया गया है।
दिल्ली के हजरत निजामउद्दीन रेलवे स्टेशन से इसकी दूरी लगभग 28 किलोमीटर है। फरीदाबाद का रेलवे स्टेशन भी यहां से लगभग 11 किलोमीटर दूर है और अगर आप सूरजकुंड भी घूमने जा रहे हैं तो वहां से भी इसकी दूरी लगभग 16 किलोमीटर है।