उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं राजस्थान के पूर्व राज्यपाल जो भाजपा के दिग्गज नेता थे, उन्हें आज भले ही सिर्फ हिन्दुत्व के नायक के रूप में याद किया जा रहा है किन्तु वास्तव में देखा जाये तो उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने सुशासन की बुनियाद रखी।
वर्ष 1991 में जब वे पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने पूरे प्रदेश में एक सख्त संदेश दिया कि अब प्रदेश में किसी तरह की गुंडागर्दी नहीं चलेगी। उस समय जब वे कहीं भाषण देने जाते थे तो उनका एक बहुत ही प्रसिद्ध डायलाग होता था कि प्रदेश में जो सामान्य अपराधी हैं, वे सुधर जायें या प्रदेश की सीमा छोड़कर चले जायें या फिर अपनी जगह जेल में ले लें। इसके अतिरिक्त जो बहुत ही खतरनाक अपराधी हैं, उन्हें ऊपर भेज दिया जायेगा यानी मौत के घाट उतार दिया जायेगा।
वास्तव में देखा जाये तो कल्याण सिंह जी ने न सिर्फ सुशासन की बुनियाद मजबूत की बल्कि प्रदेश को अपराधमुक्त करने की दिशा में बहुत ही महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया था। आज उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिस तरह अपराधियों का सफाया करने में लगे हैं, कमोबेश उसकी बुनियाद कल्याण सिंह ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में ही रख दी थी जिसका लाभ वर्तमान में प्रदेश को बखूबी मिल रहा है।
लोकतंत्र में भाषा की मर्यादा जरूरी
अभी हाल ही में केन्द्रीय मंत्री नारायण राणे को महाराष्ट्र पुलिस ने इसलिए गिरफ्तार कर लिया कि एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ अमर्यादित बयान दे दिया था। दरअसल, स्वतंत्रता दिवस के मौके पर अपने भाषण में उद्धव ठाकरे यह भूल गये थे कि देश को आजाद हुए कितने वर्ष हो गये? निश्चित रूप से मुख्यमंत्री को यह पता होना चाहिए कि देश को आजाद हुए कितने वर्ष हो गये? अपने भाषण के दौरान वह पीछे मुड़कर यह बात पूछते नजर आये। इसी बात को लेकर श्री नारायण राणे ने एक जगह बोल दिया कि अगर मैं वहां होता तो उन्हें एक जोरदार थप्पड़ मारता।
यह बात बिल्कुल सही है कि श्री नारायण राणे को ऐसी बात नहीं बोलनी चाहिए थी किन्तु इस प्रकार की अमर्यादित भाषा का प्रयोग करने वाले नारायण राणे अकेले ही नहीं हैं। ऐसी भाषा का प्रयोग करने वाले नेताओं की श्रृंखला बहुत लम्बी है। अब सवाल यह उठता है कि क्या सबकी गिरफ्तारी हुई? इस पत्र के माध्यम से मेरे कहने का आशय यह है कि मात्र गिरफ्तारी ही इस समस्या का समाधान नहीं है बल्कि राजनीति में सभी दलों को मिलकर इस प्रकार का वातावरण बनाने की आवश्यकता है कि किसी भी नेता को अमर्यादित टिप्पणी की आवश्यकता ही न पड़े किन्तु ऐसा वातावरण बनाने के लिए सभी को मिलकर प्रयास करना होगा।